भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने शुक्रवार 6 जनवरी 2023 को दिल्ली (Delhi) में की गई एक विशेष पत्रकार वार्ता में बताया कि 12-13 जनवरी को डिजिटल माध्यम से भारत (India) ‘वॉइस आफ गलोबल साउथ’ (Voice of Global South Summit) शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इस सम्मेलन में दक्षिण के कई देशों सहित विकासशील देशों (Developing Countries) को अपने मुद्दों का साथ-साथ चिंताओं और प्राथमिकताओं को रखने का मौका मिलेगा।
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Voice of The Global South सम्मेलन को लेकर और क्या कहा गया?
विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने पत्रकारों को बताया कि, ‘‘इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये 120 देशों को न्योता भेजा गया है।” सम्मेलन के मुख्य विषय के बारे में बोलते हुए क्वात्रा ने बताया कि इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘यूनिटी आफ वॉयस, यूनिटी आफ पर्पज’ (Unity of Voice and Unity of Purpose) है।
क्वात्रा ने कहा कि 12 से 13 जनवरी के बीच आयोजित किए जाने वाले इस शिखर सम्मेलन की संकल्पना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ‘‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास” के साथ-साथ भारत के ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के मंत्र से प्रेरित है। उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि भारत विकासशील देशों की आवाज एवं चिंताओं को वैश्विक मंचों पर रखने के मामले हमेशा से ही सबसे आगे रहा है।
इसके साथ ही विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि कर्ज और मुद्रास्फीति का दबाव भी अर्थव्यवस्थाओं के ढांचागत मानदंडों साफ तौर पर दिखाई दे रहा है, ऐसे में इस सम्मेलन के आयोजन से वैश्विक दक्षिण (Global South) सहित विकासशील देशों (Developing Countries) को अपने मुद्दों, चिंताओं और प्राथमिकताओं को रखने का एक अच्छा मौका मिलेगा। इस बारे मे पूछे जाने पर कि इस सम्मेलन में भारत के किन-किन पड़ोसी देशों को न्योता भेजा गया है, क्वात्रा ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया बल्कि इतना ही कहा कि इसको लेकर जल्द ही जानकारी साझा कर दी जाएगी।

10 सत्र होंगे आयोजित
भारत द्वारा आयोजित किए जाने वाले इस सम्मेलन में उन देशों के लिए भी एक मौका होगा जो G-20 हिस्सा नहीं हैं। इसके साथ ही इस सम्मेलन से भारत विकासशील देशों की समस्याओं के समाधान के लिए एक मंच उपलब्ध कराना चाहता है। इस सम्मेलन में 10 सत्र होंगे जिसमें से 2 सत्र राष्ट्राध्यक्षों (Head of States) के बीच और 8 सत्र मंत्रियों (Ministerial Level) के सत्र के होंगे। राष्ट्राध्यक्षों के सत्र में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद रहेंगे।
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क्या है Global South?
‘ग्लोबल साउथ’ के तहत मौटे तौर पर एशिया (Asia), अफ्रीका (Africa) और दक्षिण अमेरिका (South America) के विकासशील देश शामिल हैं। वहीं, ‘ग्लोबल नॉर्थ’ में अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे विकसित देश शामिल हैं।
ज्यादातार लोगों का मानना है कि ये वर्गीकरण इसलिए भी किया गया है, क्योंकि इन देशों में, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य देखभाल के पैरामीटर्स में काफी समानताएं हैं। हालांकि, ग्लोबल साउथ के दो बड़े देशों भारत और चीन ने पिछले कुछ दशकों में आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है।
कितने आधार पर बांटे जाते हैं देश?
दुनिया के ज्यादातर देशों को प्रथम विश्व, द्वितीय विश्व और तृतीय विश्व के देशों के रुप में जाना जाता है। जिसमें से प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व के देश कोल्ड वार के दौरान अमेरिका, सोवियत संघ के सहायक देशों और गुट-निरपेक्ष (Non Aligned) देशों को परिभाषित करते हैं। भारत को हमेशा से ही तीसरी दुनिया का देश कहा जाता है, क्योंकि भारत गुट-निरपेक्ष देशों का नेतृत्वकर्ता था।
क्या हैं दक्षिण देशों में समानताएं?
दुनिया के अधिकांश वैश्विक दक्षिणी देशों (Global South) को किसी न किसी का गुलाम (Colonial) बनने का इतिहास रहा है। UNSC में स्थायी सट न होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इन देशों की बात को कम ही सुना जाता है। इसके साथ ही अधिकांश वैश्विक दक्षिणी देशों के आज भी विकासशील रहने या फिर कम विकसित होने के कारण भी इनको कम प्राथमिकता दी जाती है।
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