कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव शुक्रवार को उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति एम वैंकेया नायडू को सौंपा। इस नोटिस पर सात दलों के 64 मौजूदा सांसदों के हस्ताक्षर हैं। हालांकि इस मुद्दे पर विपक्ष एक जुट नहीं है। कुछ प्रमुख दलों ने इससे दूरी बना रखी है।
LIVE update: हम चाहते हैं कि राज्यसभा के सभापति इस प्रस्ताव को स्वीकार करें, हमारे पास CJI को हटाने के पांच बड़े कारण हैं-गुलाम नबी आजाद
— APN न्यूज़ हिंदी (@apnlivehindi) April 20, 2018
64 सांसद के हस्ताक्षर
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा- हमने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। हमने संविधान के अनुच्छे 270 और 124 के तहत प्रस्ताव का नोटिस दिया है। हमने इसके लिए पांच आधार बताए हैं। राज्यसभा के सभापति 50 सांसदों के समर्थन पर भी फैसला कर सकते हैं। हमने 71 सांसदों के हस्ताक्षर वाला नोटिस दिया है। इनमें से 7 का कार्यकाल खत्म हो चुका है। लिहाजा, संख्या 64 सांसदों की है।
#NEWS: सीजेआई के खिलाफ महाभियोग पर सहमति, 60 सांसदों संग कांग्रेस का महाभियोग प्रस्ताव, 7 दलों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए pic.twitter.com/4JyBX2k5cP
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कपिल सिब्बल ने की कॉंफ्रेंस
उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने वैंकेया नायडू से मुलाकात के बाद प्रेंस कॉंफ्रेंस की और कहा कि “देश जरूर जानना चाहेगा कि हमने ये कदम क्यों उठाया? हम भी नहीं चाहते थे कि ये दिन देखना पड़े। न्यायपालिका से सर्वोच्च स्तर की ईमानदारी की अपेक्षा होती है। सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच अंदरूनी कलह है। चार सीनियर जजों ने 12 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर चीफ जस्टिस के तौर-तरीकों के बारे में बात की थी।”
LIVE UPDATE: महाभियोग के लिए हमारे पास जरुरत से ज्यादा सांसद हैं. हमने 71 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव दिया है-@INCIndia नेता, कपिल सिब्बल
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खतरे में न्यायपालिका की आजादी
सिब्बल ने कहा, “जजों ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ऑर्डर में नहीं है। चीफ जस्टिस को सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए।” “सुप्रीम कोर्ट के जज खुद यह कह रहे हैं कि न्यायपालिका की आजादी खतरे में हैं। ऐसे में क्या देश को कुछ नहीं कर ना चाहिए और खाली हाथ बैठे रहना चाहिए?”
LIVE UPDATE: CJI दीपक मिश्रा ने पद का गलत इस्तेमाल किया, उनके प्रशासनिक फैसलों से लोगों को नाराजगी रही, चार जजों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ा-@INCIndia नेता, कपिल सिब्बल
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CJI के खिलाफ कांग्रेस के 5 आरोप
सिब्बल ने राज्यसभा के सभापति को सौंपे सांसदों के नोटिस का हवाला देते हुए वो पांच आरोप बताए, जिनके आधार पर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस लाया गया है।
1.पहले आरोप के बारे में उन्होंने कहा, “हमने प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज और एक दलाल के बीच बातचीत के टेप भी राज्यसभा के सभापति को सौंपे हैं। ये टेप सीबीआई को मिले थे। इस मामले में चीफ जस्टिस की भूमिका की जांच की जरूरत है।”
2.“एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ सीबीआई के पास सबूत थे, लेकिन चीफ जस्टिस ने सीबीआई को केस दर्ज करने की मंजूरी नहीं दी।”
3. “जस्टिस चेलमेश्वर जब 9 नवंबर 2017 को एक याचिका की सुनवाई करने को राजी हुए, तब अचानक उनके पास सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से बैक डेट का एक नोट भेजा गया और कहा गया कि आप इस याचिका पर सुनवाई नहीं करें।”
4. “जब चीफ जस्टिस वकालत कर रहे थे तब उन्होंने झूठा हलफनामा दायर कर जमीन हासिल की थी। एडीएम ने हलफनामे को झूठा करार दिया था। 1985 में जमीन आवंटन रद्द हुआ, लेकिन 2012 में उन्होंने जमीन तब सरेंडर की जब वे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए गए।”
5. “उन्होंने संवेदनशील मुकदमों को मनमाने तरीके से कुछ विशेष बेंचों में भेजा। ऐसा कर उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया।”
महाभियोग की चर्चा को सुप्रीम कोर्ट ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण
वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर विपक्षी दलों की बैठक के बीच सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। एक एनजीओ की जनहित याचिका में कहा गया है कि आर्टिकल 121 के तहत जब तक संसद में किसी जज को हटाने का प्रस्ताव नहीं रखा जाता, तब तक सांसद किसी जज के बारे में इस तरह पब्लिक फोरम में चर्चा नहीं कर सकते। चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की चर्चा को सुप्रीम कोर्ट ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। साथ ही कहा कि हाल के दिनों में जो कुछ हुआ है, वह परेशान कर देने वाला है।
मीडिया रिपोर्टिंग पर बैन की मांग पर AG से मांग
याचिका में कहा गया है, ‘सार्वजनिक रूप से चर्चा के चलते सवालों के घेरे में आया कोई भी जज सुचारू रूप से अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा सकता है, इस तरह की चर्चा से न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी बाधित होती है।’ जनहित याचिका (PIL) में मीडिया को महाभियोग के मसले पर रिपोर्टिंग से रोकने की मांग भी की गई है। कोर्ट ने महाभियोग को लेकर हो रही मीडिया रिपोर्टिंग पर बैन की मांग पर अटॉनी जनरल से राय मांगी है।
अगर यह नोटिस मंजूर होता है और विपक्ष प्रस्ताव लाने में कामयाब हो जाता है तो देश के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ विधायिका की तरफ से यह ऐसा पहला कदम होगा।