मानव तस्करी मामले में भारत एक बदनाम देश हैं। देश में सबसे अधिक मानव तस्करी बंगाल, असम और छत्तीसगढ़ में होती है। कोरोना काल में भी मानव तस्करी के काफी मामले दिख रहे हैं। चाइल्स राइट्स एंड यू (क्राय) संस्था ने ‘कोविड और खोता बचपन ने 5 राज्यों की स्टेटस रिपोर्ट’ शीर्षक से एक स्टडी जारी की, यह रिपोर्ट शिवराज सिंह की अगुवाई वाले राज्य मध्य प्रदेश की तरफ ध्यान खिंचती है।
इस रिपोर्ट के अनुसार जनवरी से जुलाई 2020 के बीच मध्य प्रदेश से 5446 बच्चों के गायब होने की बात कही गई। अंतर्राष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस के मौके पर क्राय ने यह रिपोर्ट जारी करते हुए यह भी कहा कि 80% फीसदी मामलों में गुमशुदा होने वाले बच्चों में लड़कियां रहीं। एक और आंकड़ा चिंता का विषय है कि जिन पांच उत्तरी राज्यों को लेकर यह रिपोर्ट तैयार की गई, सबसे खराब आंकड़े एमपी के मिले।
क्राय ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा के साथ ही मध्य प्रदेश पर स्टडी की है। इसमें कोरोना काल में गायब हुए बच्चों की स्थिति को जानने की कोशिश की गई. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस स्टडी के डेटा को जुटाने के लिए एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट, आरटीआई और पुलिस विभाग व सरकार से मिली जानकारियों को आधार बनाया गया।
महामारी और लॉकडाउन जैसे हालात के बीच बच्चों के गुमशुदा होने की स्थिति के बारे में जानने वाली क्राय की रिपोर्ट कहती है कि पांच राज्यों में जनवरी से जुलाई 20 के बीच कुल 9453 केस सामने आए, जिनमें से 57% गुमशुदगी मामले मध्य प्रदेश में ही दिखे यानी 4371 बच्चे गायब हुए। एमपी और देश के आंकड़े व उनके विश्लेषण से पहले टीआईएसएस में फैकल्टी डॉ. महुआ निगुड़कर कहती हैं, ‘महामारी के चलते स्कूल छोड़ने वाले बच्चों, बाल विवाहों, अनाथ बच्चों की संख्या के साथ ही चाइल्ड ट्रैफिकिंग के मामले भी बढ़े. लापता बच्चों के बारे में और ज़्यादा मुस्तैदी और त्वरित एक्शन की ज़रूरत महसूस की गई।’
वहीं एनसीआरबी के आंकड़ों की बात करें तो, साल 2019 में एमपी में प्रतिदिन औसतन 30 बच्चे लापता हुए, जिनमें से औसतन 23 लड़कियां थीं। इसके मुकाबले जनवरी से जुलाई 20 के बीच रोज़ाना औसतन 26 बच्चे गायब हुए। लेकिन लॉकडाउन का एक असर यह भी हुआ कि नंबरों में कमी देखी गई। रिपोर्ट में जो विश्लेषण किया गया है, उसके मुताबिक जिन महीनों में लॉकडाउन था, तब कम बच्चे गायब हुए। इसके बावजूद जानकार इसे खतरे की घंटी क्यों बता रहे हैं।?