चिपको आंदोलन का नाम लेते ही पर्यावरण प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा का चेहरा सामने आता है। इन्होंने जंगलों को अपने बच्चे की तरह प्यार किया और लोगों को जंगलों की रखवाली करने के लिए प्रोत्साहित भी किया। गांधी जी के सिद्धांत पर चलने वाले सुंदर लाल बहुगुणा अब हमारे बीच नहीं रहे। कोरोना संक्रमण के कारण शुक्रवार को इनका निधन हो गया। सुंदर लाल बहुगुणा 8 मई को कोरोना संक्रमित हुए थे। कोरोना से जंग लड़ते हुए इन्होंने दुनिया को अलविदा कह दया है। 94 वर्षीय सुंदर लाल बहुगुणा की हालत बीती रात बुधवार को खराब हुई थी ऋषिकेश के एम्स में आंदोलनकारी का इलाज चल रहा था, आज इन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए विदा बोल दिया है।

सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के टिहरी के पास एक गांव में 9 जनवरी 1927 को हुआ था। अपने जीवन काल में उन्होंने कई आंदोलनों की अगुवाई की, निधन की खबर सुनते ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट कर दुख जताया है।

तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट कर लिखा, “चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।”

महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया, जिसने पूरे देश में अपना एक व्यापक असर छोड़ा। इसी दौरान शुरू हुआ चिपको आंदोलन भी इसी प्रेरणा से शुरू किया गया अभियान था। तब गढ़वाल हिमालय में पेड़ों की कटाई के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाया गया। मार्च 1974 को कटाई के विरोध में स्थानीय महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गईं, दुनिया ने इसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना।

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