गुरुवार 13 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में सुने जा रहे कर्नाटक हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) मामले में दो जजों की एक राय न बनने के कारण मामलें को देश के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया है. अब ये मामला न्यायालय की बड़ी पीठ के पास जाएगा.
मध्य पूर्व का देश ईरान (Iran) भी इन दिनों बड़े स्तर पर प्रदर्शनों का सामना कर रहा है. देश की नैतिकता पुलिस (Moral Police) द्वारा 13 सितंबर को 22 वर्ष की महसा अमिनी नाम की युवती को Hijab नहीं पहनने के लिए गिरफ्तार करने और तीन दिन बाद, यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई.
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दो जजों की अलग-अलग राय
कर्नाटक हिजाब मामले पर अपना आदेश सुनाते हुए जस्टिस सुधांसु धूलिया ने कहा कि, “यह पसंद की बात है, कुछ ज्यादा नहीं, कुछ कम नहीं.” जस्टिस धूलिया ने अपील की अनुमति देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया.
वहीं दूसरे न्यायाधीश जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब प्रतिबंध को सही ठहराया है. इसके साथ ही कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों को खारिज कर दिया, जिसने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के आदेश को बरकरार रखा था.
सुप्रीम कोर्ट के जजों की अलग-अलग राय के बाद हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला लागू रहेगा. क्योंकि एक जज ने याचिका को खारिज किया है और दूसरे ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. हाई कोर्ट का फैसला तब तक जारी रहेगा जब तक किसी बड़े बेंच का फैसला नहीं आ जाता है.
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क्या था कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला?
कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने 129 पेज के फैलले में कहा था कि हिजाब इस्लाम के अनुसार अनिवार्य नहीं है. फैसले में हाईकोर्ट ने कुरान की आयतों और कई इस्लामी ग्रंथों का हवाला भी दिया था.
कहां से शुरू हुआ पूरा मामला?
हिजाब मामले की शुरूआत 01 जुलाई 2021 को कर्नाटक के उडुप्पी जिले के पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स द्वारा छात्राओं के लिए तय किये गए दिशानिर्देशों के साथ हुई.
हालांकि जुलाई 2021 में कोविड-19 के चलते कॉलेज बंद था, वहीं जब कोविड लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से खुला तो कुछ छात्राओं को पता चला कि उनकी सीनियर छात्राएं हिजाब पहनकर आया करती थीं. इन छात्राओं ने इस आधार पर कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी.
उडुपी जिले में सरकारी जूनियर कॉलेजों की पोशाक को कॉलेज विकास समिति (College Development Committee- CDC) तय करती है और स्थानीय विधायक (Local MLA) इसके प्रमुख होते हैं. भाजपा विधायक रघुवीर भट्ट (जो इस कॉलेज समिति के अध्यक्ष भी हैं) ने इस मामले में मुस्लिम छात्राओं की मांग को अस्वीकार करते हुए उन्हें क्लास के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दी.
31 दिसंबर 2021 में छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज कैंपस में घुसने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें बाहर ही रोक दिया गया था.
कॉलेज प्रशासन द्वारा हिजाब की अनुमति न देने के बाद लड़कियों ने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया था और जनवरी 2022 में उन्होंने (लड़कियों ने) कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर एक याचिका दायर कर दी थी.
इसके बाद 11 दिन तक चली सुनवाई के बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने 25 फरवरी को इसपर अपना फैसला सुनाया था जिसमें कोर्ट ने माना कि हिजाब धार्मिक लिहाज से जरूरी नहीं है, इसीलिए शैक्षणिक संस्थानों में इसे पहनने की इजाजत नहीं दी जा सकती.
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हिजाब मुद्दा
हिजाब (कुछ मुस्लिम महिलाओं द्वारा सार्वजनिक रूप से पहना जाने वाला वस्त्र) मुद्दा धर्म की स्वतंत्रता पर कानूनी सवाल भी उठाता है कि क्या हिजाब पहनने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है या नहीं.
कर्नाटक सरकार द्वारा पारित किये गए एक एक आदेश में कहा गया है कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों (Pre-University Colleges) के छात्र-छात्राओं को कॉलेज के प्रशासनिक बोर्ड द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य होगा. आदेश में आगे कहा गया है कि यदी किसी संस्थान का कोई ड्रैस कोड़ नहीं है तो ‘‘समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े’’ नहीं पहने जा सकेंगे. कर्नाटक सरकार का ये आदेश विभिन्न कॉलेजों में हुए प्रदर्शनों के बाद जारी किया गया था.
हिजाब विवाद मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य के इसी आदेश के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को केवल जरूरी और निर्धारित ड्रेस / वेशभूषा ही पहननी चाहिये.
हाई कोर्ट के इस निर्णय ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने वाले छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुस्लिम लड़कियों को ‘उचित आवास’ के सिद्धांत (Principle of ‘Reasonable Accommodation’) पर आधारित स्कार्फ / हिजाब पहनने की अनुमति देने के समर्थन में दिये गए एक तर्क को भी खारिज कर दिया था.
अन्य फैसले
वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि दाढ़ी रखना इस्लामिक अभ्यासों का अनिवार्य अंग नहीं है.
वर्ष 2015 में केरल उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जिनमें अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिये ड्रेस कोड के निर्धारण को लेकर चुनौती दी गई थी मेंCBSE को निर्देश दिया था कि वे उन छात्र-छात्राओं की जांच के लिये अतिरिक्त उपाय करें जो ‘’अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप, लेकिन ड्रेस कोड के विपरीत, पोशाक पहनते हैं.’’
आमना बिंट बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (2016) मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की अधिक बारीकी के साथ जांच की. इस मामले में न्यायालय ने माना कि हिजाब पहनने की प्रथा एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन सीबीएसई के उस नियम (अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिये ड्रेस कोड) को भी रद्द नहीं किया गया. न्यायालय ने एक बार फिर 2015 में “अतिरिक्त उपायों” और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी.
हालांकि स्कूल द्वारा निर्धारित ड्रेस के मुद्दे पर एक और बेंच ने फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामले में अलग तरीके से फैसला सुनाया. इस मामले में केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी.
संविधान के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार सभी व्यक्तियों को ‘‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को निर्बाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार प्राप्त है.’ संविधान के अनुसार इस अधिकार को लेकर राज्य सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो.
हालांकि जैसा अन्य सभी मूल अधिकारों के मामले में होता है वैसे ही इस अधिकार को भी राज्य द्वारा लोक व्यवस्था (Public Order), सदाचार, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के आधार पर बदला या फिर प्रतिबंधित किया जा सकता है.
कहां से आया हिजाब?
पाकिस्तान के इतिहासकार डॉ. मुबारक अली ने जर्मन मीडिया समूह DW से बातचीत में बताया कि, ‘भारतीय उपमहाद्वीप में पर्दा कब आया, इस बारे में कोई लिखित दस्तावेज मौजूद नहीं है.’ उनके मुताबिक, ‘जब तुर्क और मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया, उस वक्त उनकी महिलाएं मुंह नहीं छिपाती थीं. उस वक्त के इतिहासकार लिखते हैं कि मुगल और तुर्क महिलाएं घुड़सवारी करती थीं, पोलो खेलती थीं, यहां तक कि शराब भी पिया करती थीं. उन्हें मर्दों के बराबर का दर्जा भले ही नहीं था लेकिन वे निकाब (Niqab) भी नहीं पहनती थीं.’ अली के अनुसार, दक्षिण एशिया में पर्दा मिडल क्लास की महिलाएं करती हैं. अली ने बताया कि, 16वीं सदी में सम्राट अकबर के बाद मुगल काल में मध्यम वर्ग उभरा. उस आर्थिक तबके की महिलाएं खुद को पवित्र दिखाने के चक्कर में पर्दा करने लगीं.
मामले के जानकारों के अनुलार भारत, पाकिस्तान और बांग्लोदश में बुर्का, हिजाब पहनने का चलन पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ा है. अली के अनुसार, सुनी देश ‘सऊदी अरब के प्रभाव के चलते दक्षिण एशिया में ज्यादा लोग बुर्का पहनने लगे. इसके अलावा इस्लामिक राजनीतिक दलों की भी इसमें भूमिका रही.’ एक्सपर्ट्स के अनुसार, पिछले तीन-चार दशकों में बुर्का, निकाब और हिजाब का इस्तेमाल बढ़ा है. अली इस हिजाब पहनने के चलन को क्षेत्र में इस्लामिक कट्टरपंथ के विकास से जोड़कर देखते है.
कई अरब देशों में 1960-70 के दशक में दक्षिण एशिया के शहरों में रहने वाली काफी महिलाओं ने धार्मिक कपड़ों के खिलाफ क्रांति की और पश्चिमी स्टाइल (Western Style) के कपड़े पहनने लगीं. काबुल में तो महिलाएं स्कर्ट तक पहना करती थीं. हालांकि, 1980s में सऊदी के वहाबी इस्लाम (Wahhabi Islam) के उभार के साथ हिजाब आया जो केवल सिर और गर्दन कवर करता है. सऊदी के वहाबी इस्लाम को अन्य के मुकाबले काफी सख्त माना जाता है.