इस समय देश के पश्चिमी राज्य गुजरात (Gujarat) में चुनाव हो रहे हैं जिनको लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. भाजपा की और से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने चुनावी प्रचार की कमान संभाल रखी तो वहीं प्रमुख विरोधी दल कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) मोर्चा थामे हुए हैं, इसके अलावा पहली बार गुजरात के चुनावी समर मे उतर रही आम आदमी पार्टी (आप) की और से पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान जमकर प्रचार कर रहे हैं. आज हम आपको बता रहे हैं Madhav Singh Solanki के KHAM फार्मूले के बारे में..
KHAM के आसरे 1985 के गुजरात चुनाव में कांग्रेस को 182 में से 149 सीटें मिलीं थी. 1985 में BJP की टैली 9 से बढ़कर सिर्फ 11 तक ही पहुंच पाई. ये गुजरात का वो ऐतिहासिक चुनाव रहा जिसके बाद न तो कांग्रेस कभी इस प्रदर्शन को दोहरा पाई और न ही BJP जो पिछले 27 साल में लगातार जीत हासिल करने के बावजूद ऐसा दमदार प्रदर्शन कर पाई है.
वो नेता जिन्होंने बदल दी थी गुजरात की राजनीति
यूं तो गुजरात से मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेता निकले हैं, लेकिन अगर हम गुजरात में जातीय समीकरणों को साधने वाले राजनीतिज्ञों की बात करें तो सबसे पहला नाम मावध सिंह सोलंकी (Madhav Singh Solanki) का आएगा. 30 जुलाई 1927 को भरूच जिले के पिलुदरा गांव में एक साधारण क्षत्रिय परिवार में जन्में सोलंकी ने गुजरात की सियासत में पहली बार नया प्रयोग किया जिसे KHAM समीकरण कहा जाता है.

KHAM समीकरण के जरिए गुजरात की राजनीति पूरी तरह से बदल गई थी. KHAM प्रयोग के चलते 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 149 सीटों के साथ गुजरात मे ऐतिहासिक बहुमत मिला. आजतक कांग्रेस के इस रिकार्ड कोई भी तोड़ नहीं पाया है.
सोलंकी ने गुजरात की जातीय राजनीति में पटेल – ब्राह्मण – बनिया त्रिगुट के सामने अपना ही KHAM समीकरण लाकर खड़ा कर दिया. इस सोशल इंजीनियरिंग के दम पर उन्होंने गुजराती मतदाताओं के एक बहुत बड़े धड़े तक सीधी पहुंच बनाई जिसका नतीजा ये हुआ कि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने 141 सीटें जीतीं और करीब 51 फीसदी वोट हासिल किए. इन चुनावों में BJP को महज 9 सीटें ही मिल पाई थी.
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Madhav Singh Solanki का सियासी कैरियर
माधव सिंह सोलंकी जब बड़े हुए तो इंदुलाल याज्ञनिक के संपर्क में आए. इंदुलाल ने गुजरात राज्य बनाने के लिए आंदोलन चलाया था. याज्ञनिक की मदद सोलंकी ने अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वो इंदुलाल याज्ञनिक द्वारा निकाली जाने वाली ‘ग्राम विकास’ नामक पत्रिका से जुड़ गए और एडिटिंग का काम करने लगे. लेकिन आर्थिक तंगी के चलते पत्रिका जल्द ही बंद हो गई. इसके बाद सोलंकी को गुजरात समाचार में नौकरी मिल गई. लेकिन इससे होने वाली कमाई से परिवार का पेट भरना मुश्किल हो रहा था तो इसलिए सोलंकी ने फैसला किया कि वो वकालत की पढ़ाई करेंगे, ताकि परिवार की जरूरतों को पूरा किया जा सके.
1950 के दशक में सोलंकी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी. लेकिन, उन दिनों गुजरात भी बॉम्बे प्रेसिडेंसी (Bombay Presidency) का हिस्सा था. उस समय बॉम्बे प्रेसिडेंसी के कांग्रेस उप मुख्यमंत्री बाबू जशभाई पटेल ने सोलंकी को राजनीति में आने के लिए कहा. लेकिन सोलंकी ने उनको कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद साल 1957 में बॉम्बे प्रेसिडेंसी में चुनाव को लेकर जब उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हुआ तो उसमें माधव सिंह सोलंकी का नाम भी था. सोलंकी ने बॉम्बे प्रेसिडेंसी की दक्षिण भोड़साड़ सीट से चुनाव लड़ा और जीता. सोलंकी साल 1957 से 1960 तक बॉम्बे प्रेसिडेंसी की विधानसभा के सदस्य रहे.
1 मई 1960 को गुजरात राज्य के गठन के बाद साल 1960 में गुजरात राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए. इसमें सोलंकी की जीत हुई. माधव सिंह सोलंकी साल 1968 तक लगातार विधानसभा के सदस्य रहे. साल 1962 में उनको राजस्व मंत्री बनाया गया. इसके बाद भी सोलंकी लगातार मंत्री बनते रहे. लेकिन, मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए माधव सिंह सोलंकी को 24 दिसंबर 1976 तक का इंतजार करना पड़ा, इसी दिन उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन उनका ये कार्यकाल ज्यादा वक्त तक नहीं रह पाया. 10 अप्रैल 1977 को उनको अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
सोलंकी का KHAM समीकरण और गुजरात की सत्ता
साल 1980 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए. कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी माधव सिंह सोलंकी पर थी. इस बार सोलंकी ने नया सियासी दांव चला. सोलंकी इस बार KHAM समीकरण लेकर चुनाव रण में उतरे. KHAM एक तरह की सियासी जातीय गोलबंदी थी.

KHAM समीकरण में क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान (K- Kshatriya, H- Harijan, A- Adivasi, M- Muslim) वोटर्स को गोलबंद करना था. जिसमें सोलंकी कामयाब भी हुए और जब चुनावी नतीजे आए तो सूबे में कांग्रेस ने सबको धूल चटा दी थी. कांग्रेस को 141 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जबकि विरोधी दल को सिर्फ 8 सीटें मिली थीं.
गुजरात में 82 जातियों को रोजगार और शिक्षा में 10 फीसदी का आरक्षण
गुजरात में प्रचंड जीत के बाद 7 जून 1980 को माधव सिंह सोलंकी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सोलंकी की सरकार की चर्चा इसलिए सबसे ज्यादा था कि उनके मंत्रिमंडल में एक भी सवर्ण नेता नहीं था. इतना ही नहीं, सोलंकी की सरकार ने साल 1981 में एक बड़ा फैसला किया. सरकार ने गुजरात में 82 जातियों को रोजगार और शिक्षा में 10 फीसदी का आरक्षण दे दिया. इसके बाद गुजरात में हंगामा खड़ा हो गया. इसके बावजूद सोलंकी ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.
माधव सिंह सोलंकी की सरकार ने सिर्फ आरक्षण लागू ही नहीं किया. उन्होंने साल 1985 में चुनाव से पहले एक और बड़ा फैसला किया. इस बार सीएम सोलंकी ने राणे कमीशन की सिफारिशों को राज्य में लागू कर दिया. राणे कमीशन के मुताबिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण की सीमा 28 फीसदी कर दी गई और इसमें 82 जातियों की जगह 104 जातियों को शामिल कर लिया गया. इसको लेकर गुजरात में खूब विरोध प्रदर्शन हुए.
राणे कमीशन के विरोध के बीच 1985 में ही विधानसभा चुनाव का ऐलान किया गया. वहीं, इंदिरा गांधी की हत्या और सोलंकी के KHAM समीकरण के सहारे कांग्रेस ने इस चुनाव में रिकॉर्ड बना दिया. कांग्रेस ने 149 सीटों पर जीत दर्ज की. गुजरात में इतनी बड़ी जीत आज तक किसी पार्टी को नहीं मिली है.

11 मार्च 1985 को माधव सिंह सोलंकी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. माधव सिंह सोलंकी ने जब तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली तो उसके बाद गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन तेज हो गया. गुजरात में हिंसा होने लगी. सोलंकी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. 6 जुलाई 1985 को सोलंकी ने पद से इस्तीफा दे दिया. माधव सिंह सोलंकी को 10 दिसंबर 1989 में चौथी बार सीएम पद की शपथ ली और 83 दिन बाद 4 मार्च 1990 तक इस पद पर बने रहे.
इसके बाद साल 1991 में केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी तो सोलंकी को विदेश मंत्री बनाया गया. लेकिन बोफोर्स घोटाले में एक बयान के चलते 1992 में उनको पद से हटा दिया गया. 94 साल की उम्र में माधव सिंह सोलंकी का 2021 में निधन हो गया.