मज़लूमों की आवाज कहे जाने वाले कवि Adam Gondvi की आज जयंती, सियासी दुनिया को दिखाया करते थे आईना, पढ़ें उनकी मशहूर रचनाएं

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adam gondvi
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Adam Gondvi: जाने-माने कवि अदम गोंडवी की आज जयंती है। अदम गोंडवी का असली नाम रामनाथ सिंह था और वे उत्तर प्रदेश के गोंडा के रहने वाले थे। उनका जन्म 22 अक्टूबर को गोंडा के आटा ग्राम में हुआ था। उनकी माता का नाम मांडवी सिंह और पिता का नाम देवी कलि सिंह था।

सत्ता को चुनौती देने वाले कवि

अदम गोंडवी की रचनाओं की बात की जाए तो वे सत्ता को चुनौती देने वाले कवि थे। वे जनता की उन अपेक्षाओं की आवाज थे जो पूरी नहीं हुई थीं। देश की शासन व्यवस्था की समस्याओं को मुखर तरीके से लोगों के बीच रखना हो या समाज में अमीरी-गरीबी के बीच के फर्क को बताना हो गोंडवी इस हुनर में माहिर थे। आप उनकी इस रचना से ही अंदाजा लगा सकते हैं:

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है

लगी है होड़ – सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

गोंडवी ने जिया सादगी भरा जीवन

अदम गोंडवी समाज में शोषितों और वंचितों की आवाज थे। गरीब जनता के दुख -दर्द को अपना समझ लिखने वाले कवि गोंडवी की रचनाएं सीधे लोगों के दिलों को छूती हैं। अदम गोंडवी को जानने वाले बताते हैं कि उनका लिबास सादगी भरा रहता था। वे मुशायरों और कवि सम्मेलनों में घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़े मटमैले कुरते और गले में सफ़ेद गमछा डाले पहुंचते थे।

राजनेताओं पर व्यंग्य

सियासी दुनिया की बड़ी से बड़ी शख्सियतों को गोंडवी बख्शते नहीं थे। राजनेताओं पर लिखी उनकी ये रचना आप पढ़कर समझ सकते हैं कि गोंडवी कैसे सत्ता को आईना दिखाया करते थे।

काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो हवाश में

गोंडवी की रचनाओं को आप पढ़ेंगे तो समझ आएगा कि वे शब्दों की सजावट की जगह सीधे -सपाट तरीके से अपनी बात लोगों के बीच रखा करते थे।

अदम गोंडवी को लिखने पढ़ने वाले बताते हैं कि उन्हें हिंदी के कवि नागार्जुन पसंद थे। नागार्जुन की कविता ‘बहुत दिनों तक चूल्हा रोया’ याद हो तो गोंडवी की जरा ये रचना पढ़िए-

भूक के एहसास को शेर-ओ-सुख़न तक ले चलो

या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक़ के जल्वों से वाक़िफ़ हो गई

उस को अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझ को नज़्म-ओ-ज़ब्त की तालीम देना ब’अद में

पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख़्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोके में लोग

इस शहर को रौशनी के बाँकपन तक ले चलो

उनकी चर्चित रचनाओं की बात की जाए तो इसमें ‘धरती की सतह पर’ और ‘समय से मुठभेड़’ जैसे संग्रह शामिल हैं। 18 दिसंबर 2011 को लखनऊ में इस कवि ने दुनिया को अलविदा कहा।

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