Environment News: हमारे देश में गज यानी हाथी को राजा भी कहा जाता है। इसे गजराज बुलाएं तो किसी को भी गुरेज नहीं होगा। हिंदू आध्यात्म से लेकर भारतीय विरासत पशु का दर्जा प्राप्त हाथी की बात ही अलग है। तेजी से बढ़ रहे पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव और इंसान की बढ़ती इच्छाओं के आगे अब हाथियों की संख्या देश में तेजी के साथ घटती जा रही है। साल 1980 के दशक तक एशिया में लगभग 93 लाख हाथी थे, अब महज 50 हजार ही बचे हैं।
मानवीय गतिविधियों में बढ़ोतरी और अतिक्रमण के कारण वन संसाधनों में लगातार कमी आ रही है। इसी कारण वन्य जीव-जंतुओं की संख्या और उनके आवासीय क्षेत्र भी प्रभावित होते जा रहे हैं। अब एशियाई हाथी भी इससे बच नहीं सके हैं। पिछले कुछ दशकों में एशियाई हाथियों का आवास भी कम हुआ है. वहीं, हाथी-दांत के लिए भी हाथियों का बड़े पैमाने पर इनके अवैध शिकार से भी ये लुप्तप्राय स्थिति में पहुंच चुके हैं।
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Environment News: ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ की रेड लिस्ट में शामिल हुए हाथी
हाथियों की घटती संख्या का जिम्मेदार सड़क एवं रेल दुर्घटनाएं भी हैं। जहां अचानक ट्रेन के सामने आकर ये दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। बावजूद इसके न सरकार और ही प्रशासन उनके प्रति संवेदनशील नहीं हैं। यही वजह है कि शिकार से लेकर दुर्घटना को कम करने पर लगाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। पूरे एशिया में इनकी स्थिति चिंताजनक है। इसी कारण हाथी जैसे सहज उपलब्ध होने वाले प्राणी को भी ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ की रेड लिस्ट में शामिल किया गया है।
Environment News: भौगोलिक बदलाव और खाने की कमी से छोड़ा पुराना आवास
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पर्यावरण मंत्रालय से जारी आंकड़ों के अनुसार बीते 15 वर्षों में महाराष्ट्र और गोवा में हाथियों की तादाद यकायक बढ़ी है। ध्यान योग्य है कि बांदीपुर, मुदुमलाई, वायनाड, नागरहोले से हाथी इंसानों की बस्ती में आए हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के जिला कोल्हापुर में भी कई सारे हाथी आ गए थे।जब इनके बारे में शोध किया गया तो पता चला कि ये असम से महाराष्ट्र तक पहुंचे हैं।हाथी पहली बार अक्टूबर 2002 में डोडा मार्ग से गोवा से सटे सिंधुदुर्ग जिले में पहुंचे थे।
गौरतलब है कि हाथी दक्षिण भारत में बहुतायत में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ वषों से वहां पर उत्पन्न जलसंकट, विषम भौगोलिक परिस्थिति और घटते जंगलों की वजह से इन्होंने अपना पुराना आवास छोड़ दिया।शाकाहारी जीवों के लिए प्राकृतिक स्तोत्रों के संकट, घनेणी और रानमोडी जैसी वनस्पतियों में कमी, इन्हें हाथी खाते हैं।इनमें आई कमी से हाथियों को अपना पुराना आवास छोड़ना पड़ा।
Environment News: ठंडे बस्ते में गई प्रोजेक्ट हाथी परियोजना
पूरे देश में प्रोजेक्ट टाइगर को लेकर सरकार कई कदम उठा रही है, लेकिन हाथियों के संरक्षण के लिए शुरू की गई प्रोजेक्ट हाथी परियोजना अभी तक ठीक से परवान ही नहीं चढ़ी है। योजना की सुस्त रफ्तार की वजह हाथी-दांत की बढ़ती तस्करी, स्थानीय लोगों द्वारा उनके आवास को क्षति पहुंचाना, पर्यावरण प्रदूषण मुख्य कारण है। हालांकि पर्यावरणविद और वन्यजीव संरक्षण के मुद्दे पर कार्य कर रहे कार्यकर्ता समय-समय पर प्रशासन को घेरते हैं।
हाथियों के लिए तय 29 संरक्षित क्षेत्र में भी हाथी कई परेशानियों में घिरे हैं।
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