Dehradun News: हमारे देश के सैनिक सरहद पर दुश्मनों से हमें बचाते हैं और देश की रक्षा के लिए शहीद होते हैं तो हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, लेकिन इस बार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पर्यावरण प्रेमियों ने इन पेड़ों को शहीद का दर्जा देते हुए पूरी श्रद्धा के साथ श्रद्धांजलि दे रहे हैं। बता दें कि देहरादून के सहस्त्रधारा सड़क को चौड़ा करने का काम चल रहा है, जिसमें लगभग 2200 पेड़ों को काटने की योजना है।
ऐसे में स्थानीय लोग इस योजना के खिलाफ आंदोलन भी कर रहे हैं। इन्हीं लोगों ने काटे गए पेड़ों को शहीद का दर्जा देते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देकर मौन रखा। बच्चों से लेकर बड़ों ने देहरादून घाटी की धरोहर माने जाने वाले उन पेड़ों को श्रद्धांजलि दी, जो विकास के नाम पर काटे गए।
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पेड़ योजना के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका भी दर्ज
मालूम हो कि देहरादून की सहस्त्रधारा रोड गर्मी में भी शीतलता के लिए जानी जाती है और इसकी वजह है इसके दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ होते हैं लेकिन, अब शीतलता और प्राणवायु देने वाले इन पेड़ों को काटना पड़ रहा है। वहीं, देहरादून निवासी और समाजसेवी आशीष गर्ग ने इस योजना के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका भी दर्ज की थी, जिसकी सुनवाई में हाईकोर्ट ने 972 पेड़ों को दूसरी जगह ट्रांसप्लांट करने के आदेश दिए और साथ ही इनकी पांच साल तक देख-रेख करने के आदेश भी दिए थे। इसकी रिपोर्ट हर 6 महीने के भीतर कोर्ट में सरकार को पेश करनी होगी। वहीं, मामले में पहली रिपोर्ट दिसंबर दूसरे सप्ताह में पेश होगी।
Dehradun News: शहीद होने वाले पेड़ों को पूरी श्रद्धा के साथ श्रद्धांजलि दी जा रही
जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता आशीष गर्ग का कहना है कि जिस तरह हमारे देश के सैनिक सरहदों पर दुश्मनों से हमें बचाते हैं और हमारी रक्षा के लिए शहीद होते हैं तो हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, ठीक उसी तरह वृक्ष देश के अंदर 24 घंटे ऑक्सीजन देकर प्रदूषण से बचाकर ग्रीनहाउस गैस को कम करके पानी संचित कर पक्षियों और दूसरे कीट पतंगों को सहारा देकर मानव को नि:स्वार्थ सेवा देते हैं, लेकिन व्यक्ति अपने फायदे की वजह से पेड़ों के बारे में जरा भी नहीं सोचता हैं। उन्होंने आगे कहा कि शहीद होने वाले इन पेड़ों को पूरी श्रद्धा के साथ श्रद्धांजलि दी गई है।
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पेड़ हमारे पर्यावरण को बचाते हैं
‘मेड बाय बीटीडी’ और ‘सिटीजन फॉर ग्रीन दून’ जैसे समाजसेवी संगठनों के साथ-साथ स्थानीय लोगों का भी इन पेड़ों से बेहद लगाव है। वहीं, देहरादून समाजसेवी निलेश राठी ने कहा कि केंद्र सरकार की नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी और स्मार्ट सिटी के तहत गाइडलाइन को फॉलो करते हुए यह काम नहीं किया जा रहा है। ट्रैफिक जाम को कम करने का मतलब नहीं है कि पेड़ों को शहीद किया जाए।
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वहीं, सिटीजन फॉर ग्रीन दून के सचिव हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि देहरादून घाटी अपनी हरियाली और अपने मौसम के लिए खास माना जाता है, लेकिन जब इसे हरा और ठंडा बनाने वाले पेड़ ही नहीं रहेंगे तो पर्यटक भी देहरादून में नहीं आएंगे।
जहां एक तरफ स्थानीय जनता और पर्यावरण प्रेमी इन पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ वन विभाग और लोक निर्माण विभाग ने शपथ पत्र दाखिल कर कहा है कि सड़क को चौड़ी करने के लिए 1700 को पेड़ों का काटना भी जरूरी है। बाकी अन्य पेड़ों को दूसरी जगह लगाया जाएगा।
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