Karnataka में Climate Change का असर, गिरते जलस्‍तर में यूरेनियम की बढ़ती मात्रा ने बढ़ाई चिंता!

Climate Change : पूर्वी कर्नाटक का इलाका 92,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।भूवैज्ञानिकों के अनुसार यहां की खेती मुख्‍यत: दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है।ऐसे में यहां मानसूनी बारिश में अंतर के चलते राज्य में सूखा पड़ा है।

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Climate Change in Karnataka top news
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Climate Change : कर्नाटक में जलवायु परिवर्तन का असर साफ नजर आ रहा है।जानकारी के अनुसार पूर्वी कर्नाटक के दक्षिण-पूर्वी भाग में बारिश में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।जबकि उत्तरी भाग में 1 फीसदी की गिरावट देखी गई है। औसत वार्षिक वर्षा के 650 मिमी होने का अनुमान लगाया गया।हालांकि, पिछले दो दशकों के दौरान वर्षा वितरण असमान रहा है।

कर्नाटक में जलवायु परिवर्तन परिदृश्य पर जारी की गई एक रिपोर्ट में आंकड़े इस बात की तस्‍दीक करते हैं।पर्यावरण विभाग की ओर से जारी एक सर्वे में कर्नाटक के पूर्वी हिस्से के 73 गांवों के भूजल का रासायनिक विश्लेषण किया गया।इनमें से 78 फीसदी स्थानों में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई। इसका स्तर असुरक्षित पाया गया।
जानकारी के अनुसार कर्नाटक भारत का छठा सबसे बड़ा राज्य है। इसका क्षेत्रफल 191,791 वर्ग किलोमीटर है। करीब 6.84 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में 30 जिले आते हैं।
पूर्वी कर्नाटक का इलाका 92,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।भूवैज्ञानिकों के अनुसार यहां की खेती मुख्‍यत: दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है।ऐसे में यहां मानसूनी बारिश में अंतर के चलते राज्य में सूखा पड़ा है।पिछले दो दशकों यानी 2001-19 तक की बात करें तो लगभग 80 फीसदी तालुका सूखाग्रस्त हो चुके हैं।वहीं सूखा प्रभावित क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा कर्नाटक के उत्तरी भाग में स्थित है।

Climate Change and Uranium Findings.
Uranium Findings in Water.

Climate Change: भूजल का अत्यधिक दोहन

Climate Change: यहां की राजधानी बेंगलुरु और इसके उपनगरों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 2.5 करोड़ की आबादी यहां निवास करती है।आबादी का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण है।करीब 2 करोड़ लोग पीने के पानी और कृषि के लिए सीधे भूजल पर ही निर्भर हैं।

केंद्रीय भूजल बोर्ड से प्राप्‍त रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018-19 में, राज्य के लगभग 25 फीसदी क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ।कर्नाटक के पूर्वी हिस्‍से में भूजल पर आधारित सिंचाई, अनियमित वर्षा, शहरी विकास, कई बार सूखे के बाद भूजल की बढ़ती मांग आदि के कारण जल स्तर में गिरावट देखने को मिली।

Climate Change ki khabar
Uranium Findings in Water.

Climate Change: प्राकृतिक कारण जिम्‍मेदार

Climate Change: विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा निर्धारित सुरक्षा सीमा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है, जबकि भारत के परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने प्रति लीटर 60 माइक्रोग्राम की उच्च सुरक्षा सीमा निर्धारित की है।
यह अध्ययन दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन एनवायर्नमेंटल रेडियोधर्मिता, मंगलौर यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया।सर्वे में लगातार बढ़ते प्रदूषण के लिए मानवीय गतिविधियों की जगह प्राकृतिक कारणों को जिम्मेदार ठहराया है।

शोधकर्ताओं ने राज्य के पूर्वी हिस्से के 73 गांवों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि 57 गांवों में यूरेनियम की मात्रा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक थी, जबकि उनमें से 48 में 60 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक की सांद्रता पाई गई।

वैज्ञानिकों के अनुसार तुमकुर और चित्रदुर्ग जिलों के एक-एक गांव में, कोलार में पांच और चिक्काबल्लापुर जिले के सात गांवों में यूरेनियम की मात्रा 1,000 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक थी। 

Climate Change:जानिए यूरेनियम के दुष्‍प्रभाव

यूरेनियम के संपर्क में आने से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। मसलन तत्काल प्रभाव में सिरदर्द, बुखार, उल्टी आना शामिल है। हालांकि, लंबे समय तक इसके संपर्क में जहां महीनों से लेकर वर्षों तक रहने पर, लीवर, हड्डियों और फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।यहां के शोधकर्ताओं ने बताया कि कोई भी बोरवेल जहां से पानी का नमूना लिया गया था, वह कहीं भी परमाणु सुविधाओं या शहरी अपशिष्ट निपटान के आस-पास का इलाका नहीं था।

Climate Change: आखिर भूजल में क्‍यों अधिक रही यूरेनियम की मात्रा ?

शोधकर्ताओं से प्राप्‍त रिपोर्ट में बताया गया कि यूरेनियम की अधिक मात्रा भूजल में गिरावट और कर्नाटक के भूगर्भीय बनावट का परिणाम है।दरअसल
गामा-रे स्पेक्ट्रोमेट्रिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि पश्चिमी भाग की तुलना में कर्नाटक के पूर्वी हिस्से में पोटेशियम, यूरेनियम और थोरियम की अधिकता है।जिसे भूवैज्ञानिक पूर्वी और पश्चिमी धारवाड़ क्रेटन के रूप में जानते हैं। जिन्हें पूर्वी और पश्चिमी धारवाड़ क्रेटन कहा जाता है। 

कर्नाटक प्रमुख रूप से प्राचीन ग्रेनाइट, गनीस और शिस्टोज चट्टानों से बना है। जिसे हार्ड रॉक टेरेन कहा जाता है।कठोर चट्टानों में, पानी गहराई में आमतौर पर अपक्षय क्षेत्र (मिट्टी की परत) के आधार पर होता है। जल तालिका का निर्माण करता है। अपक्षयित क्षेत्र जितना मोटा होगा, ऑक्सीकृत परत की मोटाई उतनी ही अधिक होगी। यह खनिजों में यूरेनियम के ऑक्सीकरण को बढ़ावा देता है।

बेंगलुरु के शहरी और ग्रामीण इलाकों में रेडॉन की एक उच्च सामग्री के परिणामस्वरूप बेंगलुरु ग्रामीण जिले के तीन गांवों में यूरेनियम के उच्च स्तर का पता चला है। अवथी गांव के नमूनों में उच्च यूरेनियम 174 से 942 माइक्रोग्राम प्रति लीटर था, जबकि कोडागुर्की गांव के नमूनों में 356 माइक्रोग्राम प्रति लीटर यूरेनियम था। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किए गए अवलोकनों से मेल खाता है।यहां के गुडला मुद्दनहल्ली जिले के एक नमूने में भी डब्ल्यूएचओ की निर्धारित सीमा से अधिक यूरेनियम की मात्रा पाई गई।

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