Asola Bhatti Wildlife Sanctuary की नीली झील होगी विकसित, पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटन के विकास पर जोर

Asola Bhatti Wildlife Sanctuary :

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Asola Bhatti Wildlife Sanctuary की नीली झील होगी विकसित, पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटन के विकास पर जोर
Asola Bhatti Wildlife Sanctuary की नीली झील होगी विकसित, पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटन के विकास पर जोर

Asola Bhatti Wildlife Sanctuary : दिल्ली-हरियाणा सीमा पर बने अरावली पर्वतीय क्षेत्र के दक्षिणी दिल्ली रिज पर करीब 32.71 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है असोला भाटी सेंचुरी। इसकी लोकेशन भी कई मायनों में बेहद खास है, क्‍योंकि ये दक्षिणी दिल्ली और हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों के उत्तरी हिस्से में पड़ता है।मालूम हो कि अरावली तेंदुआ वन्यजीव गलियारे का हिस्सा भी है जोकि राजस्थान के सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान से दिल्ली रिज तक फैला हुआ है।

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Asola Bhatti Wildlife Sanctuary

Asola Bhatti Wildlife Sanctuary : दिल्‍ली विकास प्राधिकरण ने इसे विकसित किया है।इसका थोड़ा और विकास करने पर वन विभाग ध्‍यान दे रहा है। इसी क्रम में यहां बने वन्यजीव अभयारण्य में नीली झील को पुनर्विकसित करने की योजना है।इसके साथ ही झील के आसपास ग्रास एंफिथियेटर, बायो टायलेट्स, नेचर ट्रेल और ई-वेहिकल्स की व्यवस्था भी जाएगी। इसके लिए वन विभाग सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग के विशेषज्ञ इंजीनियरों की मदद लेगा।

Asola Bhatti Wildlife Sanctuary : जानिए झील के बारे में

असोला भाटी माइंस में करीब 35 वर्ष पहले बंद हुए खुदाई के कार्य से वहां दशकों पहले गहरे गड्ढे हो गए थे। जिनमें स्वच्छ नीला जल भरकर नीली झील का रूप दे दिया गया। ये झील सेंचुरी के मुख्य द्वार से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अधिकारियों के अनुसार, ग्रास एंफिथियेटर के चारों ओर सुंदर चट्टानें भी लगाई जाएंगी, वहीं जब तक विभाग ई-वेहिकल्स नहीं खरीद लेता तब तक लोग झील के आसपास निजी वाहनों से भी घूम सकेंगे।

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Asola Bhatti Wildlife Sanctuary

गौरतलब है कि घने जंगल से करीब 14 किलोमीटर की दूरी कच्चे रास्ते से तय कर नीली झील तक पहुंचा जाता है। नीली झील को टूरिस्ट लोकेशन के तौर पर विकसित करने के लिए सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही यहां बने ऊबड़-खाबड़ और कच्चे रास्तों पर झील तक साइनेज बोर्ड भी लगाए जाएंगे।ध्‍यान योग्‍य है कि नीली झील ही यहां रहने वाले जानवरों के लिए पेयजल का प्राथमिक स्त्रोत भी है। यहां तेंदुए, सियार, नीलगाय, बंदर और नेवले इत्यादि पानी पीने के लिए आते हैं।

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