Supreme Court ने Manipur Assembly मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे पर चुनाव आयोग के विचार पर फैसला लेने में राज्यपाल देरी नहीं कर सकते हैं।
मणिपुर विधानसभा में 12 बीजेपी विधायकों के लाभ के पद के संदर्भ में अयोग्यता के मामले में चुनाव आयोग ने राज्यपाल को अपने विचार से अवगत करा दिया है लेकिन गवर्नर उस विषय में फैसला सुनाने से देरी कर रहे हैं।
राज्यपाल विधायकों की अयोग्यता का मामला लटका नहीं सकते हैं
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि मणिपुर के राज्यपाल अयोग्यता के मामले में चुनाव आयोग की सलाह के बाद उसमें देरी नहीं कर सकते हैं। उन्हें कुछ न कुछ तो फैसला लेना ही होगा।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली पीठ ने देखा कि चुनाव आयोग संबंधित मामले में अपना विचार 13 जनवरी 2021 को दिया था लेकिन राज्यपाल ने अभी तक उस पर फैसला नहीं लिया है।
सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर विधानसभा के कांग्रेसी एमएलए डीडी थाईसिल ने अर्जी दाखिल करके बीजेपी के 12 विधायकों को ऑफिस ऑफ प्रोफिट के आधार पर अयोग्य घोषित करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि सभी 12 विधायकों ने पार्लियामेंटरी सेक्रेटरीज के पद को होल्ड किया था और यह ऑफिस ऑफ प्रोफिट के दायरे में आता है।
ऐसे मामलों में गवर्नर फैसला पेंडिंग नहीं रख सकते
याचिकाकर्ता डीडी थाईसिल के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि गवर्नर फैसला पेंडिंग नहीं रख सकते हैं। हमें जानना चाहिए कि संवैधानिक अथॉरिटी क्या फैसला ले रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के इस बात से सहमत हैं कि वह फैसले से नहीं बच सकते हैं।
वहीं निर्वाचन आयोग की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने इस मामले में कहा कि चुनाव आयोग के विचार राज्यपाल के लिए बाध्यकारी हैं। राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल दूसरे केस में व्यस्त हैं लिहाजा सुनवाई टाली जानी चाहिए। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 11 नवंबर के लिए टाल दी है।
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