हमारे देश भारत की आजादी के इतने सालों बाद भी हम शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए हैं। सरकार की काफी कोशिशों के बावजूद भी शिक्षा के क्षेत्र में शत प्रतिशतता हासिल नहीं हुई है। लेकिन हमारे समाज से ही कुछ लोग ऐसे सामने निकल कर आते हैं जो वास्तव में इस क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं। और जब वो समाज के विकास में योगदान करने को ठान लेते हैं तो फिर जहां चाह वहां राह । रास्ते की अड़चनें  भी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।  हो वो हर हाल में अपने उद्देश्यों को पूरा करने में लग जाते हैं। आज हम आपको ऐसे  ही एक उत्साही और भारत के लिए कुछ करने का जज्बा लिए एक होनहार नवयुवक से परिचय कराते हैं। अरॉन फोगाट  की उमर महज 15 साल की है । अरॉन अभी भी टीनएजर है । वो रहता तो अमेरिका की न्यू जर्सी में हैं, लेकिन उसका दिल अपने देश भारत के लिए धड़कता है।1

राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है सीकर। यह इलाका अपने मंदिरों औऱ राजस्थानी हवेलियों के लिए जाना जाता है। इसी इलाके से कुछ सालों पहले अरॉन के माता पिता अमेरिका के न्यू जर्सी शहर करियर की नई संभावनाओं की तलाश में गए थे। लेकिन अपनी मिट्टी से उनका नाता बना रहा। वे नियमित तौर पर भारत आते रहे। जब अरॉन का जन्म हुआ तो वो उसे भी साथ लाने लगे । ऐसे में धीरे धीरे अरॉन भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ता चला गया।2

बचपन की मीठी यादें उसे बड़े होने पर भी उसे भारत खींच लाती। यहां उसके नाना नानी भी रहते हैं तो यहां भारत आना उसके लिए दोहरी खुशी का कारण हो जाता। अरॉन के नाना श्री पी आर धायल भूतपूर्व चीफ़ कमिश्नर इंकम टैक्स हैं। दो साल पहले जब अरॉन भारत आया तो नाना ने उसे अपने शुरुआती जीवन के बारे में बताया कि किस तरह उन्होंने ग़रीबी और कई विपरीत परिस्थितों को पार करते हुए शिक्षा पाई थी और इंकम टैक्स में चीफ़ कमिश्नर के ओहदे पर पहुंचे थे। इस तरह शिक्षा के मह्त्व को अरॉन फोगाट ने बखूबी पहचान लिया ।3

भारत में रहते हुए उसने देखा कि एक बहुत बड़े वर्ग को आर्थिक दिक्कतो की वजह से शिक्षा से वंचित रह जाना पड़ रहा है। ऐसे में उसने अपने नाना की प्रेरणा से समाज के एक तबके को अपने दम पर शिक्षा देने की ठानी। यहां रहते हुए उसने गरीब और अनाथ बच्चों के दो समूह (जो  अपना घर “ और मन्ना चिल्ड्रेनस होम“  अनाथालय में रहते हैं ) को अपने बलबूते शिक्षा देने की शुरुआत की। अरॉन ने पढ़ाने की शुरुआत अंग्रेजी से शुरु की। अरॉन की यह शुरुआत रंग लाई। बच्चों को उसकी क्लास में रुचि जग गई। उसने दो साल में अपने बचत के पैसों से सब बच्चों को किताबें  और खेल का सारा सामान भी उपलब्ध कराया। अरॉन अंग्रेजी ऐसे पढ़ाता है कि एक बार में ही बच्चों के दिल औऱ दिमाग में  बैठ जाती है।4

लेकिन जल्द ही जब अरॉन के न्यू जर्सी के अपने स्कूल प्रिंस्टन डे स्कूल की छुटियां समाप्त हुई और स्कूल खुला तो अरॉन को मजबूरन अपने दोस्तों को छोड़ कर वापस अमेरिका लौटना पड़ा। फिर तो भारत में उसके क्लास के बच्चे मायूस हो गए। लेकिन जब हौसलों को पंख मिलते हैं तो मंजिल खुद ब खुद आसान हो जाती है। अरॉन ने इसका भी तोड़ निकाला। अपने माता पिता  और नाना के मिल रहे लगातार सहयोग की वजह से उसने भारत मे जयपुर के इन अनाथालयों के ही एक कमरे में वीडियो कॉंफ्रेंसिंग का उपकरण सेट कर के अमेरिका के अपने घर से ही बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने लगा। अरॉन के छात्र एक बार फिर दुगुने उत्साह से अपना पाठ समझने लगे। अरॉन के छात्रों के चेहरे पर एक बार फिर मुस्कान थी ।

अरॉन के दिल में इन बच्चों के लिए बहुत कुछ करने का जज्बा है। इसके लिये उसने एक “Helping One By One” संस्था भी खोल ली है जिसके माध्यम से वो अगले वर्ष सीकर के कस्तूरबा सेवा संस्थान” और जयपुर के  ममता” अनाथालय के बच्चों को भी अपनी इस मुहिम से जोड़ना चाहता है । वो इन ग़रीब और बेसहारा बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहता है और जिस तेजी से औऱ जिस लगन से  अरॉन के छात्र अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं उससे अरॉन की मनोकामना अवश्य सफल होगी । काश हमारे देश में हर घर में एक एक अरॉन निकले तो देश की तस्वीर ही बदल जाये।

  • By Manish Raj   

 

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