अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा होती है। पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त रहता है। ये नजारा साल में केवल एक बार ही आता है। इसे रास पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा या कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। कहते हैं कि है कि इस दिन आसमान से अमृत वर्षा होती है। क्योंकि चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त रहता है।
शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाई जाती है और फिर रात को चंद्रमा की रौशनी में रख दी जाती है। बासी खीर का सेवन अगले दिन प्रसाद की तरह किया जाता है। चंद्रमा की चांदनी में रखी हुई खीर खाने से शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती। मान्यता यह भी है कि इस दिन पूर्णिमा का व्रत रखने और पूजन करने वाले व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और उम्र लंबी होती है।
शरद पूर्णिमा का दिन
पूर्णिमा आरम्भ: अक्टूबर 30, 2020 को 17:47:55 से
पूर्णिमा समाप्त: अक्टूबर 31, 2020 को 20:21:07 पर.
कृष्ण की वंदना
वहीं इस दिन श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा दूध की तरह चमकने वाली है। चंद्रमा की किरणें कान्हा के चरणों की वंदना करेंगी। इसके लिए ठाकुर जी भी जगमोहन में विराजमान हो बांसुरी वादन करेंगे। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए हजारों कृष्ण प्रेमी यहां मौजूद रहेंगे। भक्तों के लिए खास व्यवस्था मंदिर प्रबंधन करता है।
मंदिर में उत्सव का आयोजन
शरद पूर्णिमा को श्रीबांकेबिहारी मंदिर में विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है। परंपरागत रूप से होने वाले शरदोत्सव की तैयारियां इस बार भी शुरू हो गई हैं। इस बार श्रीबांकेबिहारी मंदिर में शरदोत्सव 30 अक्तूबर को मनाया जाएगा। साल का यह एकमात्र आयोजन है जब ठाकुर जी जगमोहन में बांसुरी धारण करते हैं।
दोपहर में होगी आरती
राजभोग आरती दोपहर एक बजे होगी तो रात में 10.30 बजे शयन आरती की जाएगी। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में भगवान श्रीकृष्ण ने महारास किया था।
अन्य देवी-देवता भी श्रीकृष्ण के इस महारास के दर्शनों के लिए यहां आते हैं। शरद पूर्णिमा पर ठाकुर बांकेबिहारी मोर-मुकुट, बासुरी धारण कर रत्न जड़ित सोने-चांदी के भव्य सिंहासन पर विराजमान होते हैं।