गुरुवार (14 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने ए और बी श्रेणी की लौह अयस्क खदानों में उत्पादन की सीमा को वर्तमान 30 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष से बढ़ाकर 35 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष करने की इजाज़त दे दी है। अदालत ने यह फैसला कोर्ट को दी गई इस सूचना के बाद लिया कि कर्नाटक में स्टील कारखानों को लौह अयस्क की कमी से जूझना पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई और आर बानुमती की पीठ आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के वन क्षेत्रों में प्राकृतिक संपदा और संसाधनों के अवैध रूप से खनन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
समाज परिवर्तन समुदाय नाम की एक संस्था की तरफ से सुप्रमि कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दायर की गई है जिसमें कहा गया है कि दोनों राज्यों आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में अवैध खनन का काम अभी भी पूरे जोरों पर चल रहा है। अवैध खनन और इसके अवैध परिवहन का यह काम राज्य के अधिकारियों, नेताओं और यहां तक कि राज्यों के मंत्रियों की मिलिभगत से किया जा रहा है।
आरोप यह भी है कि इस अवैध धंधे को रोकने के लिए ना तो केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय और ना ही आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की राज्य सरकारों की तरफ कोई ठोस कार्रवाई की गई।
यह भी कहा गया कि आधिकारिक मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गई है जिस वजह से यह अवैध काम हो रहे हैं। केंद्रीय और राज्य सरकारों की ओर से निष्क्रियता, उदासीनता और अवैध खनन को रोकने में उनकी विफलता के चलते वन और गैर-वन्य भूमि को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है और स्थानीय लोगों की आजीविका पर भी इसका गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।