Chaiti Chhath Puja Katha: कल से चैती छठ की शुरूआत हो चुकी है। आज चैती छठ का दूसरा दिन यानी खरना है। आज पूरे दिन व्रती बिना कुछ खाए-पिए रहेंगे और रात में गुड़ की खीर, रोटी और मौसमी फलों से अपना व्रत खोलेंगे। इसके बाद से वो 36 घंटे का निर्जला व्रत करेंगे। हालांकि चैती छठ के बारे में सभी लोगों को नहीं पता होगा लेकिन इसका महत्व कार्तिक छठ जितना ही होता है।
चैती छठ का ये पर्व मुख्य रूप से बिहार, पूर्वांचल के कुछ हिस्से और नेपाल में मनाया जाता है। जैसा कि हमें पता है सभी त्योहार और पर्व के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा छुपी होती है। ठीक वैसे ही इस पर्व के पीछे भी पौराणिक कथा है जो हम आपको इस खबर में बताएंगे।
Chaiti Chhath Puja Katha: आखिर किन्हें माना जाता है छठ मैया?
Chaiti Chhath Puja Katha: ऐसा माना जाता है कि चैत्र नवरात्र के पहले दिन सृष्टि का निर्माण हुआ था। इस दिन ब्रह्मा जी ने अपनी इच्छा से सृष्टि का निर्माण किया लेकिन उस समय चारों तरफ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा और सिर्फ जल था। इसी जल में श्रीहरि विश्राम कर रहे थे। सृष्टि निर्माण के छठे दिन सौरमंडल बनाया गया। श्रीहरि ने छठे दिन अपनी आंखे खोली जिससे सूर्य और चंद्रमा बने इसके बाद ब्रह्मा जी की शक्ति से देवसेना ने जन्म लिया। देवसेना सूर्य की पहली किरण कही जाती हैं। इसलिए सूर्य और देवसेना को भाई-बहन कहा जाता है। देवसेना को ही छठी मैया कहा जाता है।
Chaiti Chhath Puja Katha: राजा प्रियंवद की कथा
एक कहानी सतयुग की है। सतयुग में एक राजा थे प्रियंवद, इस राजा की कोई भी संतान न थी। एक बार इनके राज्य में ऋषि लोमश जिन्होंने इनको एक दैवीय फल दिया। ऋषि लोमश ने राजा से कहा कि इस फल को अपनी पत्नी को खिलाओ तुम्हे संतान अवश्य ही प्राप्त होगी। लेकिन रानी ने इसे एक आम फल समझा और दो भागों में काटकर खाया। इससे उन्हें संतान तो प्राप्त हुआ लेकिन वह मृत था।
अपने मृत पुत्र को लेकर राजा श्मशान घाट गए और वहां विलाप करने लगे। रात से सुबह होने को थी तभी वहां देवसेना आईं। राजा को यूं विलाप करता देख उन्हें दया आ गई। देवसेना ने राजा से कहा कि आप सूर्य देव की उपासना करें। साथ ही बताया कि वह ब्रह्मा के छठे अंश से उत्पन्न ब्राह्मी देवसेना हैं जो संसार के जन्म और मरण को संचालन करती हैं। देवी ने राजा को गहरे जल में खड़े होकर शुद्ध मन और शरीर से सूर्य उपासना करने को कहा।
आदेश पाते ही राजा ने कई वर्षों तक सूर्य की तपस्या की, जिसके बाद सूर्यदेव और छठ मैया ने उन्हें वरदान देकर पुत्र को जीवित कर दिया। देवसेना ने तभी राजा से कहा था कि तुमने जितने भी लंबे समय का व्रत किया है वह आने वाले समय में चार दिन के बराबर होगा। इसीलिए चैत्र मास की षष्ठी तिथि को चैती छठ मनाने की परंपरा है।
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