अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में आज 7 साल बाद सुनवाई हुई, जिसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई को 5 दिसंबर तक के लिए टाल दिया। कोर्ट ने लगभग चार महीने का यह समय सभी पक्षकारों को दस्तावेजों के अनुवाद के लिए दिया है।

सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से दस्तावेजों के अनुवाद के लिए कुछ समय मांगा। वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस केस से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज अरबी, उर्दू, फारसी और संस्कृत में हैं और उनका अनुवाद नहीं हो पाया है। उन्होंने इसी आधार पर कोर्ट से अनुवाद के लिए कुछ समय मांगा और कोर्ट ने अगली सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए टाल दी।

इससे पहले सुसरकार का पक्ष रखते हुए एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि इस केस की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी होनी चाहिए। इस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह एक जटिल केस है और इसकी सुनवाई सही प्रक्रिया का इस्तेमाल किए बगैर जल्दबाजी में नहीं हो सकता। इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दस्तावेजों के अनुवाद के लिए समय की मांग की, जिसे कोर्ट ने मान लिया।

कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह पहले तीनों मुख्य पक्षों की दलीले सुनेगी, बाद में आपका नंबर आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में रामलला के प्रतिनिधि पहले पक्षकार के तौर पर हैं तो दूसरे और तीसरे पक्षकार के तौर पर सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा है।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायरा कर इस मामले में खुद को एक पक्ष बनाने के लिए कहा था। शिया वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि बाबरी ढांचा उसकी संपत्ति थी। वह विवादित भूमि की मुख्य जगह से इतर किसी मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाने को भी तैयार है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस रूख के बाद यह साफ हो गया है कि अभी मामले में तीन ही मुख्य पक्ष हैं और शिया वक्फ बोर्ड को पक्षकार नहीं माना गया है।

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