यौन उत्‍पीड़न मामले की सुनवाई करते हुए Supreme Court ने महिला न्यायिक अधिकारी को पुन: बहाली के दिए निर्देश

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Supreme Court : मध्‍य प्रदेश की एक पूर्व महिला न्‍यायिक अधिकारी के लिए गुरुवार का दिन राहत भरा रहा। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न की शिकायत करने वाली महिला न्यायिक अधिकारी के पुन: बहाली के निर्देश दिए। उत्पीड़न के मामले में न्याय न मिलने से हताश होकर पद से इस्तीफा दे चुकी महिला न्यायिक अधिकारी ने इस आधार पर बहाली की मांग की थी कि उन्हें 2014 में दबाव डालकर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था।

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कोर्ट बोला इस्‍तीफा स्‍वैच्छिक नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी के पक्ष में फैसला देते हुए उनकी न्यायिक अधिकारी के पद पर बहाली का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनका इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं हो सकता। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज के द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए अपना पद छोड़ दिया था। हालांकि कोर्ट ने कहा कि उन्‍हें पूर्व का वेतन भुगतान नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने डाली थी याचिका

मध्यप्रदेश की एक पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी ने जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की थी। पूर्व न्यायिक अधिकारी का कहना था हाईकोर्ट के जज द्वारा उसके साथ कथित यौन उत्पीड़न किए जाने के बाद उसे इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। इस्तीफा देने के लिए उसे मजबूर करने के आधार पर उसकी पुनः बहाली की मांग की थी।

रिपोर्ट की अनदेखी की

गौरतलब है कि महिला न्यायिक अधिकारी ने अपनी याचिका में कहा था कि उच्च न्यायालय ने 15 दिसंबर, 2017 की न्यायाधीशों की जांच समिति की रिपोर्ट के स्पष्ट निष्कर्ष की अनदेखी की। जिसमें अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पद से याचिकाकर्ता के 15 जुलाई 2014 के इस्तीफे को असहनीय परिस्थतियों में लिया गया कदम बताया गया था। याचिका में कहा गया है कि न्यायाधीशों की जांच समिति ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए क्योंकि उसने दबाव में इस्तीफा दिया था।

सॉलिसिटर जनरल ने किया था बहाली का विरोध

गौरतलब है कि जस्टिस एल नागेश्‍वर राव और बीआर गवई की पीठ के समक्ष हाई कोर्ट के महापंजीयक की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कुछ दिन पूर्व ही बहाली का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि केवल एक अनुचित स्थानांतरण मांग का उचित आधार नहीं हो सकता। जिसमें महिला को प्रताड़ित किया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। कोई न्यायिक अधिकारी आवेग में निर्णय नहीं ले सकता, क्योंकि उसका मुख्य काम किसी परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना निर्णय लेना है।

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