PMO और चुनाव आयोग के बीच बैठक को लेकर अब सियासत गर्मा गयी है। इस मामले में कांग्रेस नेताओं ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में चुनाव आयोग के कमिश्नर मीटिंग करेंगे तो ऐसे में आगामी चुनाव को लेकर शक करना लाज़मी है।

उन्होंने कहा कि कानून मंत्रालय की चिट्ठी के बाद यह मीटिंग हुई है जिसके चलते सवाल खड़े करना बनता है। खड़गे ने दावा किया कि चिट्ठी में कहा गया था कि पीएमओ (PMO) में प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने मीटिंग बुलाई थी। जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त को हाजिर रहने के लिए कहा गया था।
PMO ने मुख्य चुनाव आयुक्त को मीटिंग के लिए बुलाया
खड़गे ने कहा कि अगर पीएम के प्रधान सचिव चुनाव आयोग के अधिकारियों को मीटिंग के लिए बुलाते हैं तो ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है चुनाव स्वतंत्र रूप से होंगे। खड़गे ने कहा कि पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं ऐसे में अगर चुनाव आयोग के अधिकारियों को बुलाकर पीएमओ मीटिंग लेगा तो निश्चित तौर पर सवाल तो खड़े होंगे ही।
विदित हो कि ये पहला मौका नहीं है जब केंद्र पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं। इससे पहले भी विपक्ष शिकायत करता रहा है कि मोदी सरकार चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर हमला कर रही है। इस साल पश्चिम बंगाल चुनाव के समय पर सीएम ममता ने केंद्र की कटु आलोचना की थी। उस समय सीएम ममता ने कहा था कि मोदी सरकार ने पश्चिम बंगाल चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया।
सरकारी नोट में चुनाव आयुक्तों को PMO की बैठक में मौजूद रहने को कहा गया था

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कानून मंत्रालय की ओर से भेजे एक सरकारी नोट में चुनाव आयुक्तों को पीएमओ की एक बैठक में मौजूद रहने को कहा गया था। जबकि चुनाव आयुक्तों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी स्वतंत्रता और तटस्थता बनाए रखने के लिए सरकार से दूरी बनाकर रखेंगे। पीएमओ की बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) सुशील चंद्र और दो अन्य चुनाव आयुक्त, राजीव कुमार एवं अनूप चंद्र के शामिल होने के कारण विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
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