अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के राज को 1 माह होने वाला है। संगठन ने सरकार बनाने की घोषणा तो कर दी है लेकिन इसकी कोई तैयारी नहीं दिख रही है। हालांकि इस बीच तालिबान ने उद्घाटन समारोह करने का फैसला किया है। इस समारोह में तालिबानियों ने भारत को छोड़ 6 देशों को न्योता दिया है। इसमे पाकिस्तान (Pakistan), चीन (China), रूस (Russia), ईरान (Iran), तुर्की (Turkey) और कतर (Qatar) का नाम शामिल है।
तालिबान एक बार फिर खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलवाने के लिए कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में उसने चीन जैसे देशों को न्योता दिया है। तालिबान खुद भारत से दूरी बना रहा है। तो यहां पर बात करेंगे कि, आखिरी तालिबान का यह 6 देश क्यों कर रहे हैं समर्थन
20 साल पहले तीन देशों ने दी थी मान्यता
बता दें कि आज के 20 साल पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनी थी तो तीन देशों ने उसे मान्यता दी थी जिसमे संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और पाकिस्तान था। पर दूसरी बार बंदूख की नोक पर सत्ता में वापसी के बाद बहुत ही कम दिख रहा है कि कोई देश उसे मान्यता देने से पीछे हट रहा हो। चीन पहले ही खुलकर समर्थन कर चुका है। कई इस्लामिक देशों ने तालिबान का अफगानिस्तान में स्वागत भी किया है।
इसलिए तालिबान के साथ है हमदर्दी
पाकिस्तान
अफगानिस्तान में 15 अगस्त को जब तालिबान ने कब्जा किया था तो पाकिस्तान में कई राजनीतिक पार्टियों ने स्वागत के साथ- साथ मिठाइया बांटी थी। साथ ही पाक पीएम इमरान खान (Imran Khan) ने भी कहा था कि, देश ने गुलामी की जंजीरे तोड़ दी हैं। वहीं पाक मंत्री शेख रासिद भी साफ तौर पर कह चुके है कि, पाकिस्तान तालिबान का सबसे बड़ा समर्थक है।
जग जाहिर है, तालिबान का जन्म पाकिस्तान में ही हुआ था। तालिबान को पाक काफी समय तक संरक्षण देता रहा है।
चीन
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना जाने के बाद चीन अब वहां पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। चीन वैसे भी कई बार कह चुका है कि वह तालिबान के साथ खड़ा है लेकिन सरकार को मान्यता देने पर ‘रुको और देखो’ की रणनीति पर काम करता दिख रहा है। बीजिंग अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विस्तार को लेकर अफगानिस्तान को एक अहम कड़ी मान रहा है लेकिन सुरक्षा और स्थिरता अभी भी चिंता का विषय है।
तुर्की
तुर्की नाटो गठबंधन में अमेरिका के साथ रहा है लेकिन अब तालिबान सरकार के साथ दिख रहा है। हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने कहा था कि वह तालिबान शासन के साथ सहयोग को तैयार हैं हालांकि पहले उन्होंने तालिबान की आलोचना की थी।
इस मुद्दे पर तो यही बात कही जा रहा है कि तुर्की और पाकिस्तान पक्के मित्र हैं। एक दोस्त ने दूसरे दोस्त को समर्थन के लिए मना लिया है।
ईरान
ईरान और तालिबान के संबंध इतिहास में खराब रहे हैं और शिया-सुन्नी संघर्ष इसका प्रमुख कारण रहा है। तेहरान ने तालिबान और अमेरिका के बीच ‘दोहा व्यवस्था’ से अलग बातचीत करने का एक और ट्रैक बनाया था।
ईरान ने तालिबान का समर्थन करते हुए कहा था कि, अफगानिस्तान में फौज की शिकस्त और अमेरिका की वापसी को शांति और सुरक्षा की बहाली के एक मौके के तौर पर देखा जाना चाहिए।
कतर
तालिबान की खुशी में कतर शामिल नहीं होगा ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि तालिबान का राजनीतिक दफ्तर कतर के दोहा में ही है। यह दुनिया का सबसे छोटा देश है। संयुक्त राज्य अमीरात ने ही तालिबान को आर्थिक रुप से मजबूत किया है।
रूस
रूस लगातार तालिबान से बातचीत कर रहा है लेकिन अब तक अपने पत्ते खोलने से बचता रहा है। रूस ‘मॉस्को फॉर्मेट’ पर काम कर रहा है। मॉस्को फॉर्मेट शब्द पहली बार 2017 में इस्तेमाल किया गया था। 2018 में रूस ने तालिबान के साथ एक हाई-लेवल डेलीगेशन में 12 अन्य देशों की मेजबानी की थी। इस बैठक का मुख्या उद्देश्य अफगानिस्तान में जल्द से जल्द शांति सुनिश्चित करना था।
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