अफगानिस्तान दुनिया का एकमात्र ऐसे देश बन गया है जिसने लड़कियों की यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पर पूरी तरह बैन लगा दिया है। अमेरिका की 20 साल की मौजूदगी के बाद Afghanistan की सत्ता में लौटे में तालिबान (Taliban) के उच्च शिक्षा के मंत्री नेदा मोहम्मद नदीम ने सभी सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों को लिखे एक पत्र में लिखा कि “आप सभी को सूचित किया जाता है कि अगली सूचना तक लड़कियों की शिक्षा निलंबित करने के लिए दिये गए आदेश को तुरंत लागू किया जाये।”
अफगानिस्तान में इस समय विश्वविद्यालयों में सर्दियों की छुट्टियां चल रही हैं जो मार्च में खत्म होंगी। इन सभी छात्राएं को मार्च में शुरू हो रहे सत्र से अपनी आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना चाहती थी।
20 साल USA की सहायता से चला शासन
Taliban के दो शासनकाल (पहला 1996 से 2001 और दूसरा 15 अगस्त 2021 से अब तक) के बीच के 20 वर्षों में, लड़कियों (Girls) को स्कूल जाने की अनुमति दी गई थी इसके अलावा महिलाओं (Women) को देश के सभी क्षेत्रों में रोजगार तलाशने की आजादी दी गई थी। 9 सितंबर 2011 में अमेरिकी (USA) इतिहास के सबसे बड़े आतंकवादी हमले में 2,996 लोगों की मौत हो गई थी जिसमें तालिबान की संलिप्तता पाई गई थी। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में एक ऑपरेशन “Enduring Freedom” चलाते हुए अफगानिस्तान से तालिबान को खदेड़ दिया था।
Taliban के राज में महिलाओं की स्थिति
इससे पहले भी तालिबान ने अफगानिस्तान पर 15 अगस्त 2021 को कब्जा करने के बाद से ही लड़कियां की पढ़ाई को लेकर कई कानून बनाए हैं। इनमें हिजाब पहनने से लेकर लड़के, लड़कियों के बैठने के लिए अलग कक्षाएं भी शामिल है। इसके अलावा लड़कियों को केवल महिला शिक्षक या फिर बूढ़े पुरुष टीचर ही पढ़ा सकते हैं। तालिबान ने लड़कियों की सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई पर भी बैन लगा दिया गया था।
इससे पहले इसी साल मार्च में तालिबान ने लड़कियों को छुट्टियों के बाद माध्यमिक स्कूलों में लौटने से रोक दिया था, जिस दिन उन्हें फिर से खोलना था।
इसे अलावा महिलाओं को कई सरकारी नौकरियों से भी बाहर कर दिया गया है या उन्हें घर पर रहने के लिए कम वेतन दिया जा रहा है। महिलाओं को पुरुष रिश्तेदार के बिना यात्रा करने से भी रोक दिया जाता है। इसके साथ ही घर से बाहर जाते वक्त बुर्के को अनिवार्य कर दिया गया है। नवंबर में, उन्हें पार्कों, फन फेयर, जिम और स्विमिंग पूल में जाने पर रोक लगा दी गई थी।
1990 के दशक के दौरान किए गए शासन की तुलना में नरम रूख का वादा करने के बावजूद, तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय आक्रोश को दरकिनार करते हुए महिलाओं के जीवन से जुड़े हुए सभी पहलुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।
दुनियाभर से आ रही है तीखी प्रतिक्रिया
दुनियाभर में इस फैसले को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया आई हैं, संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक बयान जारी कर कहा कि “ये फैसला लड़कियों और महिलाओं के मानव अधिकारों का हनन करता है।” गुटेरेस के प्रवक्ता ने कहा कि “कोई भी देश तब तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक उसकी आधी आबादी को रोक कर रखा जाता है।”
इसके अलावा दुनिया के सबसे ताकतवर देश माने जाने वाले अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन (Antony Blinken) ने कहा कि “महिलाओं को विश्वविद्यालय शिक्षा के अधिकार से वंचित करने की तालिबान की घोषणा से वे बहुत निराश हैं। अफगान महिलाएं बेहतर शिक्षा की पात्र हैं। अफगानिस्तान के लोग बेहतर सुविधाओं के हकदार हैं। तालिबान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वीकार किए जाने के अपने उद्देश्य को निश्चित रूप से पीछे छोड़ दिया है।”
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSG) ने सितंबर 2022 में एक बयान जारी कर कहा था कि, “अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अफगान महिलाओं और लड़कियों को न भूला है और न ही भूलेगा।”
3 महीने पहले ही दिए थे एग्जाम
कल यानी मंगलवार को जारी किए गये आदेश से 3 महीने पहले ही तालिबान ने महिलाओं को यूनिवर्सिटी में दाखिले को लेकर होने वाली प्रवेश परीक्षा में बैठने की इजाजत दी थी। इस परीक्षा में अफगानिस्तान के कई राज्यों की हजारों युवतियों और महिलाओं ने भाग लिया था। हालांकि इस पेपस से पहले तालिबान ने यूनिवर्सिटी में विषयों के चयन को लेकर भी प्रतिबंध लगा दिए गए थे। आदेश के अनुसार महिलाएं इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, विज्ञान एवं कृषि जैसे विषय नहीं पढ़ सकती थीं।
क्या बोली छात्राएं?
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मेडिकल की पढ़ाई कर रही एक छात्रा ने समाचार एजंसी रिया से कहा कि वो देश जिसने अपनी छवि बदलने को कहा था “अंधेरे दिनों” में लौट रहा है। छात्रा ने कहा कि, “जब हम प्रगति की उम्मीद कर रहे थे, तो वे हमें समाज से दूर कर रहे हैं।”
महिलाओं के प्रति क्या है तालिबान की नीति?
तालिबान इस्लाम के एक कठोर संस्करण का पालन करता है। इसके अलावा वो अपने आंदोलन के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) और अफगान मौलवियों के रूख को मानता है जो लड़कियों और महिलाओं की आधुनिक शिक्षा के खिलाफ हैं। लेकिन ये फैसला काबुल में काम कर रहे तालिबान के कई अधिकारियों की उम्मीदों पर भी पानी फेरता है जिन्होंने उम्मीद की थी कि इस तालिबान के राज में लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति दी जाएगी।
पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में स्थित एक तालिबान कमांडर ने नाम न छापने की शर्त पर समाचार एजंसी एएफपी को बताया कि, “लड़कियों की शिक्षा पर तालिबान के अधिकारियों में गंभीर मतभेद हैं, और हालिया फैसला इन मतभेदों को और बढ़ाएगा।”
क्या कहता है तालिबान?
तालिबान के कई अधिकारियों का कहना है कि माध्यमिक शिक्षा को लेकर लगाये गए प्रतिबंध केवल अस्थायी है। तालिबान के अधिकारियों को कहना है कि धन की कमी से लेकर इस्लामी तर्ज पर पाठ्यक्रम को फिर से तैयार करने में लग रहा समय भी शिक्षा को रोकने का प्रमुख कारण है।
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