Pollution : दुनिया के टॉप 10 प्रदूषित शहरों में 3 भारत के, यहां पढ़िए क्यों धुंध की चादर में लिपटे हैं दक्षिण एशियाई देश..

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Pollution : सोमवार (13 नवम्बर) को दुनिया के टॉप 10 प्रदूषित शहरों की सूची में अब नई दिल्ली के साथ 2 अन्य भारतीय शहर भी शामिल हो गए। प्रकाश के वार्षिक हिंदू पर्व दिवाली के दौरान पटाखे फोड़ने के चलते शहरों की आबोहवा जहरीली हो गई। इस लिस्ट में राजधानी नई दिल्ली पहले स्थान पर रही। स्विट्ज़रलैंड की IQAir के अनुसार, दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 407 था, जो एक “खतरनाक” श्रेणी में आता है। जहां एक ओर मुंबई 157 AQI के साथ वर्ल्ड रैंकिंग में छठे स्थान पर रही, वहीं कोलकाता सिटी 154 AQI के साथ सातवें स्थान पर रही। वायु प्रदूषण से बुरा हाल सिर्फ भारत का ही नहीं है, बल्कि इसके पड़ोसी देशों समेत पूरे साउथ एशिया का यही हाल है। रिसर्च से पता चला है कि दुनियाभर के चार सबसे प्रदूषित देश साउथ एशिया में ही हैं। वहीं, अगर विश्वभर में प्रदूषित शहरों की तुलना करें तो सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर साउथ एशिया में ही हैं। तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि पूरे विश्व में सबसे अधिक प्रदूषण साउथ एशिया के देशों में ही क्यों होता है?

Pollution : क्यों धुंध की चादर में लिपटे हैं दक्षिण एशियाई देश?

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों में औद्योगीकरण, आर्थिक विकास और जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जिससे बेसिक सुवाधाओं की मांग भी बढ़ी है। बीते 2 दशकों में ईंधन की डिमांड में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बिजनेस के लिए इस्तेमाल होती फैकटरियों और सड़कों पर चल रही गाड़ियों से निकलने वाला धुआं वातावरण को धूमिल कर रहा है। वहीं खुले में शव दहन भी वायु प्रदूषण के बड़े कारणों में से एक है।

इसके अलावा, अगर बात करें सॉलिड फ्यूल की तो कोयला जलने और फसलों के काटने के बाद बचे हुए अवशेषों (पराली) को जलाने की वजह से इन देशों में प्रदूषण से आबोहवा बहुत खराब हो चुकी है।

Pollution : साउथ एशिया के देशों में वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास कारगर क्यों नहीं हो रहे हैं?

इन देशों ने वायु की गुणवत्ता सुधारने के लिए और प्रदूषण कम करने के लिए के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन योजनाएं बनाने, अधिक प्रदूषण निगरानी केंद्र स्थापित करने और स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने जैसे कदम उठाए हैं। लेकिन फिर भी प्रदूषण के लेवल में साल दर साल ज्यादा कमी नहीं देखी गई है। सर्दियों के आगमन के साथ ही प्रदूषण का उबाल इन देशों पर आ गिरता है।

उदाहरण के लिए भारत में केंद्र और राज्य सरकारों ने इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर सब्सिडी और टैक्स में छूट दे तो दी है, लेकिन लोगों ने इलेक्ट्रिक वाहनों को अभी ठीक से अपनाया नहीं है। और सरकार ने भी चुनिंदा वाहनों पर ही सब्सिडी दी है।

विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण को कम करने के लिए देशों के प्रयास कारगर ना होने का अहम कारण प्रदूषण कंट्रोल के प्रयासों में नियमितता की कमी है।अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषण के कण सैकड़ों किलोमीटर तक जा सकते हैं। जिससे एक देश की प्रदूषित हवा सीमाओं से सटे अन्य देशों के वातावरण को भी प्रदूषित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए अगर पंजाब में पराली जलायी जाएगी तो उसका असर पाकिस्तान के शहरों पर भी पड़ सकता है। ठीक उसी तरह अगर पाकिस्तान के लाहौर के उद्योग क्षेत्र और वाहनों से निकालने वाला धुआं नई दिल्ली के वातावरण को प्रभावित करता है।

प्रदूषण में कमी लाने के लिए क्या समाधान किए जा सकते हैं?

प्रदूषण को कम करने के लिए दक्षिण एशियाई देशों को अपनी मौजूदा नीतियों में समन्वय लाने की जरूरत है। इसके अलावा फसलों के बचे हुए अवशेषों और कचरे के प्रबंधन पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
उदाहरण के लिए, सरकार को वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए पुरानी डीजल और पेट्रोल की गाड़ियों को स्क्रैप करने का नियम लाना चाहिए। भारत में तो स्क्रैपिंग का नियम बने हुए हैं। लेकिन, बहुत से साउथ एशियाई देशों में सालों पुरानी गाड़ियां चलती रहती हैं। इन देशों में जिन भी शहरों में प्रदूषण अधिक मात्रा में रहता है, वहां क्षेत्रीय परिस्थितियों के हिसाब से समाधान बनाकर उन्हें लोगों के बीच प्रचारित करना होगा।

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