Arjun Singh Punyatithi: पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह की शुक्रवार को पुण्यतिथि है। कांग्रेस के कद्दावर नेता की पुण्यतिथि पर देश के कई लोगों और राजनेताओं ने उन्हें याद किया और श्रद्धांजलि अर्पित की। तो चलिए आज उनकी पुण्यतिथि पर आपको उनके राजनीतिक करियर की पूरी कहानी के बारे में बताते हैं।
Arjun Singh ने पहला चुनाव लड़ा निर्दलीय
साल था 1957 का और मध्यप्रदेश का गठन होने के बाद राज्य में विधानसभा के पहले चुनाव हो रहे थे। प्रदेश की मझोली विधानसभा सीट से मैदान में निर्दलीय उतरा 26 साल का एक लड़का जिसका नाम था अर्जुन सिंह। जी हां वही अर्जुन सिंह जिनके पिता कांग्रेस के नेता और चुरहट के जमींदार थे। लेकिन कांग्रेस ने रिश्वतखोरी के आरोपों के चलते पार्टी से उनको निलंबित कर दिया था। इसी कारण चुनाव में बेटा कांग्रेस का झंडा बुलंद ना करके निर्दलीय चुनाव लड़ रहा था।
मझोली विधानसभा सीट से कांग्रेस ने मुन्नी प्रसाद शुक्ला को टिकट दिया था। वहीं पदम नाथ सिंह भारतीय जनसंघ से अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। म.प्र. विधानसभा के चुनाव हुए और राज्य में कांग्रेस ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और पार्टी को 288 विधानसभा सीटों में से 232 पर जीत मिली। हालांकि मझोली की बात करें तो यहां पर कांग्रेस का जादू नहीं चला और 3,601 वोट पा कर Arjun Singh निर्दलीय विधानसभा पहुंच गए।
1960 में कांग्रेस में हुए शामिल
1957 की जीत के बाद शुरुआत होती है Arjun Singh के एक लंबे राजनीतिक करियर की। अर्जुन सिंह के परिवार का चुरहट में अच्छा खासा रसूख था और चुनाव जीतने के बाद उनका कद और ज्यादा बढ़ जाता है। जिसके बाद 1960 में वो कांग्रेस पार्टी में शामिल हो जाते हैं।
1962 में पहली बार बने मंत्री
मध्यप्रदेश में 1962 में विधानसभा चुनाव के मतदान पड़े और एक बार फिर अर्जुन सिंह ने मझोली से मैदान फतह कर लिया। दूसरी बार विधानसभा पहुंचने पर उनको इनाम मिला और उन्हें डीपी मिश्र की सरकार में मंत्री बनाया गया। हालांकि जिनकी सरकार में वो मंत्री बने उन्हीं के साथ अर्जुन सिंह की तनातनी हो गई और इसी के चक्कर में 1967 का चुनाव वो चुरहट से हार गए।
1967 का चुनाव हारे लेकिन उपचुनाव से विधानसभा पहुंंचे
जिस Arjun Singh ने 1957 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय रहते हुए जीता था। वो 1967 में कांग्रेस के टिकट से हार गए थे। लेकिन भाग्य ने उनका साथ दिया और उसी साल कांग्रेस ने उमरिया विधानसभा सीट में हुए उपचुनाव के लिए उनको प्रत्याशी बना दिया। जिसके बाद चुनाव में जीत के बाद वो एक बार फिर विधानसभा पहुंच गए।
1972 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में वो उमरिया से न लड़के सीधी से आते हैं और उनको यहां से भी जीत मिलती है। जिससे वो चौथी बार मध्यप्रदेश विधानसभा में पहुंचते हैं। जिसके बाद उनको एक बार फिर मध्यप्रदेश की सरकार में मंत्री बनाया जाता है।
1977 में बने थे विपक्ष के नेता
1975 से लेकर 1977 तक हमारे देश में आपातकाल लगी थी। आपातकाल के बाद जिन राज्यों में चुनाव हुए थे। उनमें से ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की हार हुई थी। मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही हुआ। हालांकि Arjun Singh चुरहट सीट से पांचवीं बार विधानसभा पहुंच गए थे। जिसके बाद पार्टी ने 5 बार के विधायक को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए मध्यप्रदेश विधानसभा का विपक्ष का नेता बनाया और अगले 3 साल तक उन्होंने विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाई।
1980 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे Arjun Singh
देश में 1980 के लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर कांग्रेस की सरकार आ जाती है और सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी गैर कांग्रेसी सरकारों को भंग कर देती हैं। जिसके कारण 1980 में मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव होते हैं और प्रदेश में कांग्रेस की वापसी होती है।
चुनाव के बाद Arjun Singh छठवीं बार विधायक बनते हैं। वो 1960 से कांग्रेस के विधायक थे और 1980 का समय आ गया था और ऐसे में पार्टी में इतने साल की सेवा का फल उनको तो मिलना ही था। वो सीएम बनने की रेस में थे। हालांकि उनके मुख्यमंत्री बनने के बीच में आ रहे थे प्रकाश चंद्र सेठी, विद्याचरण शुक्ल और शिव भानु सिंह सोलंकी। लेकिन अंत में सबको पीछे छोड़ते हुए अर्जुन सिंह 9 जून 1980 को मध्यप्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री बन जाते हैं।
सीएम रहते हुए उनके कार्यकाल में ही मध्यप्रदेश के इतिहास की सबसे भयावह घटना भोपाल गैस ट्रेजेडी होती है। जिसके कारण करीब 4 हजार लोगों की मौत हुई है और लाखों लोग इससे संक्रमित हुए हैं।
1 दिन के लिए दूसरे बार बने थे सीएम
गैस ट्रेजेडी की घटना के अगले साल म.प्र. में विधानसभा के चुनाव होते हैं और कांग्रेस की जीत होती है। कांग्रेस को 320 विधानसभा सीटों में 246 पर जीत मिलती है। Arjun Singh भी अपना चुनाव जीत जाते हैं और दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ ले लेते हैं। लेकिन एक दिन बाद ही उनसे इस्तीफा मांग लिया जाता है। दरअसल इसके पीछे की कहानी यह है कि अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी जो दोनों एक ही क्षेत्र यानी विंध्य के रहने वाले कांग्रेसी नेता थे और इनकी आपस में एक नहीं बनती थी। माना जाता है कि श्रीनिवास तिवारी के कारण ही अर्जुन सिंह की सीएम चेयर चली गई थी।
पंजाब के राज्यपाल भी बने थे
सीएम पद से इस्तीफे के बाद तत्कालीन पीएम राजीव गांधी उन्हें पंजाब भेज देते हैं। जहां वो राज्यपाल का पद संभालते हैं और राज्य में शांति बहाल करने के लिए जुट जाते हैं। हालांकि सिर्फ 8 महीने के बाद ही राजनीति का खिलाड़ी गवर्नर के पद से इस्तीफा देकर एक बार फिर चुनावी मैदान में आ जाता है। नवंबर 1985 में दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीत हासिल कर वो संसद में पहुंच जाते हैं। जिसके बाद उन्हें राजीव गांधी की सरकार में संचार मंत्री बनाया जाता है।
1988 में फिर होती है MP में वापसी
1988 में एक बार फिर Arjun Singh की मध्यप्रदेश में वापसी होती है और वो राज्य के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनते हैं। लेकिन उनके साथ चुरहट लॉटरी विवाद जुड़ जाता है और जिसके चलते 11 महीने बाद ही उनकी कुर्सी फिर से चली जाती है।
1991 से की केंद्र की राजनीति
माना जाता है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधान मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के कारण 1991 में उन्होंने अपनी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था और सतना से चुनाव जीतकर वो लोकसभा पहुंचे थे। हालांकि पी वी नरसिम्हा राव प्रधान मंत्री बनते हैं और उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया जाता है।
विवादित ढांचा गिरने के बाद उन्होंने पीएम पीवी नरसिम्हा राव के खिलाफ सार्वजनिक रूप से असंतोष व्यक्त किया था और 1994 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
कांग्रेस से की थी बगावत
1996 में उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व से बगावत करके नारायण दत्त तिवारी के साथ अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) का गठन किया था। हालांकि, वो 1996 में सतना से हार गए थे। जिसके बाद कांग्रेस में सोनिया गांधी के आने से वो पार्टी में लौट आए थे।
1998 में उन्होंने होशंगाबाद से चुनाव लड़ा था लेकिन उनको वहां जीत नसीब नहीं हुई थी। अर्जुन सिंंह 2000 से लेकर 2011 तक राज्यसभा के सदस्य थे। इस दौरान उन्हें 2000 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बता दें कि उन्होंने 2004 से 2009 तक मनमोहन सिंह कैबिनेट में मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में भी कार्य किया था।
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