जहां एक तरफ पश्चिम बंगाल की धरती बंटवारे की आग से जल रही है वहीं अब माओवादियों की बढ़ती सक्रियता का भी खतरा उसके ऊपर मंडराने लगा है। राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों का दावा है कि पृथक गोरखालैंड की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहा जीजेएम अब पड़ोसी मुल्कों के माओवादियों से हाथ मिला चुका है। लंबा सशस्त्र आंदोलन चलाने की तैयारी कर रहा जीजेएम माओवादियों का सहारा लेकर अपने कैडरों को प्रशिक्षण देगा और उनके साथ मिलकर रणनीति तैयार करेगा। एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अनुज शर्मा ने बताया कि हमें खुफिया एजेंसियों से जानकारी मिली है कि जीजेएम ने पड़ोसी मुल्कों से माओवादियों को भाड़े पर लिया है। इसके विपरीत जीजेएम नेताओं ने माओवादियों से सहायता लेने के आरोपों को ‘सिरे से खारिज’ किया है।
वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक जीजेएम ने 25-30 माओवादियों को अपने कैडर को ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया है। ये लोग स्थिति को और विकट करने के लिए सरकारी संपत्तियों और वरिष्ठ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों को निशाना बना सकते हैं। अधिकारियों के मुताबिक जीजेएम के पास बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद है। वहीं जीजेएम के नेता रोशन गिरी ने कहा कि यह एक बेबुनियाद आरोप है। ऐसे बयानों से हमारी छवि को खराब किया जा रहा है ताकि इस लोकतांत्रिक आंदोलन को मिटाया जा सके ।
राज्य सरकार ने राज्य में कई ऐसे आदेश पारित किए हैं जिससे गोरखालैंड की मांग करने वालों को यह बहुत नागवार गुजरा है। इन्हीं आदेशों में एक है कि सरकार ने राज्य के सभी स्कूलों में बंगाली भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी है। इसको लेकर गोरखालैंड के लोगों का विरोध और तेज हो गया। यह आंदोलन काफी समय से चल रहा है। बता दें कि अलग संस्कृति,भाषा और परंपरा होने के नाते गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा के लोग एक अलग राज्य की मांग काफी समय से कर रहे हैं।