मेजर ध्यान चंद खेल रत्न एक ऐसा रत्न है जो भारत में दिए जाने वाला सबसे बड़ा खेल पुरस्कार है। इस पुरस्कार का नाम पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर रखा गया था। 6 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके नाम बदलने की घोषणा की थी। सरकार ने इस पुरस्कार का नाम हॉकी के ‘जादूगर’ कहे जाने वाले खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखा था।
खेल रत्न की शुरुआत
मेजर ध्यान चंद खेल रत्न भारत में दिया जाने वाला खिलाड़ियों का सबसे बड़ा सम्मान होता है। इस पुरस्कार का नांम पहले राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार था। इस सम्मान की शुरुआत 1991 से 1992 तक कर दी गई थी। यह पुरस्कार खिलाड़ियों को खेल के प्रति और अधिक उत्साहित करने के लिए प्रदान किया जाता है। इसलिए राजीव गांधी खेल रत्न की शुरुआत खेल के क्षेत्र में सराहना और जागरूकता लाने के लिए कर दी गई थी। खेल में विजेता घोषित किये जाने वाले खिलाड़ियों को राजीव गांधी खेल रत्न जो कि अब मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। राष्ट्रीय खेलों में अच्छा प्रदर्शन के साथ जीत दर्ज करने वाले खिलाड़ियों को मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
पुरस्कृत व्यक्तियों को यह मिलती है सुविधाएं
इस पुरस्कार मे एक पदक, एक प्रशस्ति पत्र और नगद राशि पुरस्कृत व्यक्ति को दिए जाते हैं। साल 2018 में यह राशी 7.5 लाख रुपये थी। लेकिन अब यह राशि बढ़ाकर 25 लाख कर दिया गया है। सम्मानित व्यक्तियों को रेलवे की मुफ्त पास सुविधा प्रदान की जाती है जिसके तहत मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार विजेता राजधानी या शताब्दी गाड़ियों में प्रथम और द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित कोचों में मुफ्त में यात्रा कर सकते हैं।
हॉकी के जादूगर थे Dhyan Chand
हॉकी के ‘जादूगर’ कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का हॉकी में बेहद अविश्वसनीय योगदान रहा है। उन्होंने अपने आखिरी ओलंपिक बर्लिन 1936 में कुल 13 गोल दागे थे। इस तरह एम्स्टर्डम, लॉस एंजेलिस और बर्लिन ओलंपिक को मिलाकर ध्यानचंद ने कुल 39 गोल किए थे।
मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हमारे देश में हर साल खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिया जाता है। इस पुरस्कार की शुरुआत 1991-92 में की गई थी। ध्यानचंद की उपलब्धियों का सफर भारतीय खेल इतिहास को गौरवान्वित करता है। लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाले ध्यानचंद को हर कोई याद रखता है।
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