दिन में दो बार समुद्र से निकलता गुजरात का अनोखा स्तम्भेश्वर मंदिर

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sthambheshwar temple
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गुजरात में स्थित स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर भारत के रहस्यमयी मंदिरों में एक है। ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर दिन में कुछ वक़्त के लिए पूरी तरह से गायब हो जाता है। गायब होने के बाद इस मंदिर का कोई भी भाग दिखाई नहीं देता। यह मंदिर गुजरात में अरब सागर और कैम्बे की खाड़ी के किनारे मौजूद है और हाई टाइड के दौरान ये मंदिर रोजाना जलमग्न हो जाता है और हाई टाइड का स्तर नीचे जाने पर ये मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है |

दिखाई देने के बाद , फिर इस मंदिर को भक्तों के लिए खोला जाता है। प्रकृति के इस असाधारण नजारे को देखने के लिए यहां हजारों की भीड़ में लोग आते हैं। भले ही भारत में समुद्र के अंदर कई तीर्थस्थल हैं, लेकिन उनमें से ऐसा कोई मंदिर नहीं है जो पानी में पूरी तरह से डूब जाता हो लेकिन स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जो दिन में दो बार समुद्र की गोद में समा जाता है और इसी वजह से ये मंदिर इतना अनोखा है।

इसके पीछे का कारण प्राकृतिक है, दरअसल सारा दिन में समुद्र का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरी तरह से डूब जाता है और फिर पानी का स्तर कम होने के बाद ये मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। ऐसा सुबह शाम दो बार होता है और लोगों द्वारा इसलिए इसे शिव का अभिषेक माना जाता है।

शिवपुराण में है मंदिर की गाथा

इस तीर्थ का उल्लेख श्री महाशिवपुराण की रुद्र संहिता में मिलता है। इस मंदिर में करीब 4 फीट ऊंचा और 2 फीट चौड़ा शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के आसपास अरब सागर का नजारा बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को ज्वार-भाटे के समय का विशेष ध्यान रखना होता है।

कार्तिकेय स्वामी ने की थी मंदिर की स्थापना

माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापन शिवपुत्र कार्तिकेय ने स्वयं की थी। इस बारे में एक कथा भी प्रचलित है कि पुराने समय में देवी सती ने दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। इसी कारण शिव जी वियोग में थे। उस समय तारकासुर को वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु शिव जी के पुत्र के हाथों ही होगी।

वरदान मिलने के बाद तारकासुर का आतंक बढ़ गया था। तब देवताओं और ऋषि-मुनियों ने शिव जी से अनुरोध किया कि वे देवी पार्वती से विवाह कर लें। देवी पार्वती ने भी शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। तप से प्रसन्न होकर शिव जी देवी पार्वती से विवाह कर लिया और जब कार्तिकेय का जन्म हुआ तो कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था।

बाद में जब कार्तिकेय को मालूम हुआ कि तारकासुर शिव भक्त था तो उन्हें बहुत ही दुःख हुआ। तब भगवान विष्णु ने कार्तिकेय स्वामी से कहा था कि उस स्थल पर जहां तारकासुर का वध किया है, वहां शिव मंदिर की स्थापना करनी चाहिए, इससे आपको मन की शांति मिल सकती है। विष्णु जी की बात मानकर कार्तिकेय स्वामी ने स्तंभेश्वर महादेव की स्थापना की थी।

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