Hygreev Mandir:भारत के मंदिर यहां की आस्था ही नहीं बल्कि कई पौराणिक कहानियों के भी केंद्र हैं।ऐसा ही एक मंदिर भारत के दक्षिण में स्थित है। यहां भगवान नारायण यानी श्री विष्णु जी की पूजा हयग्रीव के रूप में की जाती है।यानी अश्वमुखी देवता का मंदिर,इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी होगी। हयग्रीव जिसका अर्थ है घोड़े का सिर। पुडुचेरी स्थित भगवान हयग्रीव मंदिर में बड़ी संख्या में लोग भगवान की पूजा-अर्चना और दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर में भगवान विष्णु जी की पूजा हयग्रीव के रूप में की जाती है।आइए जानते हैं इस मंदिर और हयग्रीव की कहानी के बारे में यहां।

Hygreev Mandir: जानिए हयग्रीव मंदिर की कहानी

Hygreev Mandir: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ऐसे ही एक जीव ने वेद चुरा लिए और समुद्र के नीचे जाकर छिप गया। इस कारण भगवान विष्णु जी को स्वयं मछली का रूप लेकर उसे ढूंढ़कर नष्ट करना पड़ा।
जबकि दूसरी कहानी के अनुसार इस दानव को वरदान मिला था कि उसे अश्व के सिर वाला दूसरा जीव ही मार सकता था। इसलिए विष्णु इस जीव के साथ युद्ध करने लगे।जब भीषण लड़ाई के बावजूद वे उसका वध नहीं कर सके तो थककर विश्राम करने अपने निवास स्थान बैकुंठ लौट आए।वे अपनी ठुड्डी को अपने धनुष की एक ओर रखकर दानव के वध करने की योजना बनाने लगे।
देवताओं ने विष्णु को नींद से जगाकर हयग्रीव के साथ फिर से लड़ने का अनुरोध किया। लेकिन चिंतन में तल्लीन विष्णु की आंखें बंद ही रहीं। इसलिए देवताओं ने दीमकों का रूप धारण कर प्रत्यंचा को खा लिया। तंग प्रत्यंचा के टूटते ही धनुष का डंडा तुरंत सीधा हो गया। प्रत्यंचा इतने बल से घूमी कि वह विष्णु की गर्दन को लगकर उसे चीर गई।
इससे भयभीत होकर देवता विष्णु की सहचरी लक्ष्मी से मदद मांगने गए। देवी ने उन्हें शांत करते हुए समझाया कि जो कुछ भी होता है, वह किसी उद्देश्य से ही होता है। उन्होंने देवताओं को अश्व का सिर काटकर उसे विष्णु की कटी हुई गरदन पर रखने के लिए कहा। ऐसा करने पर विष्णु ने अश्व के सिर वाले हयग्रीव के रूप में अश्व के सिर वाले दानव को हराया और वेदों को सुरक्षित कर लिया।
Hygreev Mandir: ज्ञान के स्रोत के रूप में होती है पूजा
Hygreev Mandir: जानकारी के अनुसार भगवान विष्णु का यह रूप दक्षिण भारत में कई जगहों पर पूजा जाता है। इस रूप में वे शंख, चक्र, जपमाला और पुस्तक धारण किए हुए होते हैं। यह मान्यता है कि ज्ञान और शिक्षा से जुड़े इस रूप में विष्णु ने ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ अपना सभी ज्ञान बांटा।
हयग्रीव को ज्ञान के स्रोत के रूप में पूजा जाता है। वे सूर्य के साथ भी जुड़े हैं। कहते हैं कि सूर्य ने अश्व के सिर वाले जीव का रूप लेकर याज्ञवल्क्य को वेदों का रहस्य बताया था।
अक्सर हयग्रीव की छवि लक्ष्मी के साथ जोड़ी जाती है और फिर उन्हें लक्ष्मी हयग्रीव कहते हैं।
कहते हैं कि उडुपी (कर्नाटक) के श्रीकृष्ण मठ में वदिराजतीर्थ नामक महाभक्त हयग्रीव की प्रशंसा में मंत्र जपता था। अपने सिर पर जई का प्रसाद रखता था। हयग्रीव एक सुंदर श्वेत अश्व का रूप लेते और पीछे से आकर जई खा जाते।
पुराणशास्त्र में तुम्बुरु नामक एक और अश्व के सिर वाला जीव के बारे में भी बताया गया है। जो गंधर्व और संगीतकार है। उसे अक्सर विष्णु और नारद के निकट खड़ा दिखाया जाता है। उसमें और नारद में विश्व के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के पद के लिए अक्सर स्पर्धा होती।
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