Chaitra Navratri 2022: चैत्र नवरात्र यानी 2 अप्रैल 22 के साथ ही हिंदू नववर्ष का आगाज होने जा रहा है। मां आदि शक्ति अपने नौ स्वरूपों में भक्तों पर हमेशा ही कृपा बरसातीं हैं। ऐसे में इन नवरात्र आप दिल्ली-एनसीआर स्थित शक्तिपीठों पर जाकर मां के आनंदमयी स्वरूप के दर्शन के साथ उनसे मंगलकामना कर सकते हैं। चलिये बताते हैं आपको दिल्ली-एनसीआर के ऐसे ही शक्तिपीठों के बारे में जहां बरबस बरसती है देवी की असीम कृपा।
Chaitra Navratri 2022:यहां स्वयंभू रूप में विराजमान हैं देवी कालका
दिल्ली की बात मां कालका जी के नाम के बिना अधूरी है। राजधानी दिल्ली के दक्षिण में अरावली की श्रृंख्ला पर स्थित देवी कालका जी सिद्धपीठ हजारों वर्ष पुराना है। आम धारणा के अनुसार यहां देवी कालका जी की छवि एक स्वयंभू है, और यह कि मंदिर सतयुग में वापस आता है, जब देवी कालिका ने अवतार लिया था और राक्षस रूपीबीजा का वध किया था। आम धारणा यह है कि यहां देवी कालका की छवि एक स्वयंभू है।
इसका निर्माण भगवान श्रीकृष्ण ने किया। महाभारत कालीन समय में पांडव और कौरवों ने यहां सर्वशक्तिमान बनने की प्रार्थना की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब असुरों ने देवताओं को परेशान किया। देवता ब्रह्मा जी के पास गए, उन्होंने सभी को देवी पार्वती के पास जाने के लिए कहा। तभी माँ पार्वती के मुख से कौशकी देवी निकली, जिन्होंने असुरों का वध किया। जैसे ही रक्तबीज को मारा, उसके रक्त की बूंद धरा पर गिरते ही हजारों दानव जीवित हो गए। बावजूद इसके देवी कौशिकी लड़ती रहीं।
इसके बाद मां काली ने उसी जगह को अपना निवास स्थान बना लिया और तभी से उनकी पूजा उस स्थल की मुख्य देवी के रूप में की जाने लगी।आज भी यहां बड़ी संख्या में भक्त देश के कोने-कोने से दर्शन करने के लिए आते हैं।
यहां के पुजारी आशु का कहना है कि माई की शक्ति गजब है। नवरात्र की तैयारियां जोरों पर चल रहीं हैं। इसके लिए आवश्यक नियम और कोविड प्रोटोकोल के साथ ही स्थानीय पुलिस और प्रशासन का सहयोग भी लिया जा रहा है।
Chaitra Navratri 2022: सिद्धपीठ मां झंडेवाली
दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस के समीप और मध्य दिल्ली के करोल बाग में स्थित सिद्धपीठ मां झंडेवाली की मान्यता दूर-दूर तक है। मां झंडेवाली को देवी वैष्णो का अवतार माना जाता है।इस मंदिर की लोकप्रियता और भक्तों की आस्था के चलते भारत सरकार की ओर से इसे दिल्ली के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में भी रखा गया है।
जानकारी के अनुसार जिस स्थान पर मंदिर है वह अरावली श्रृंखला की हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ था। उस जमाने में चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध कपड़ा व्यापारी बद्री दास यहां आते थे। वे मां वैष्णो के भक्त थे, बद्री दास इस जगह नियमित रूप से सैर करने आते थे। यहीं पर ध्यान में लीन हुआ करते थे। इसी दौरान एक दिन उन्हें आभास हुआ, कि पास ही बह रही नदी के पास बनी गुफा में प्राचीन मंदिर दबा है। कुछ समय बाद उन्हें फिर सपने में वह मंदिर दिखाई दिया।
Chaitra Navratri 2022
खुदाई में मिली देवी की मूर्ति
उन्होंने वहां जमीन खरीद कर, खुदाई करवाई। खुदाई करवाने के दौरान उन्हें मंदिर के शिखर पर झंडा दिखा, उसके बाद खुदाई करते समय मां की मूर्ति प्राप्त हुई, मगर खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए, खुदाई में प्राप्त हुई मूर्ति को उसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया। मूर्ति के खंडित हाथों को चांदी के हाथ लगाए गए। दूसरी चट्टान की खुदाई में शिवलिंग दिखाई पड़ा, मगर खंडित ना हो इस भय से उसे वहीं रहने दिया गया, आज भी वह शिवलिंग मंदिर की गुफा में स्थित है।
मंदिर के निर्माण में जिस जगह माता की मूर्ति मिली थी उसी के ठीक ऊपर देवी की नई मूर्ति स्थापित कर उसकी विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। इस अवसर पर मंदिर के शिखर पर माता का एक बहुत बड़ा ध्वज लगाया गया, जो पहाड़ी पर स्थित होने के कारण दूर-दूर तक दिखाई देता था इसी कारण से यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया।
शक्ति को समर्पित छतरपुर का आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ
दिल्ली के साउथ वेस्ट में बने आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ मंदिर कहें या मशहूर छतरपुर मंदिर एक भव्य हिंदू मंदिर होने के साथ ही अपनी सुंदरता के लिए भी मशहूर है। ये मंदिर मां दुर्गा के कात्यायनी रूप को समर्पित है। गुड़गांव-महरौली मार्ग के निकट छतरपुर में इसका शिलान्यास 1974 में किया गया था।
इसकी स्थापना कर्नाटक के संत बाबा नागपाल ने की थी। जानकारी के अनुसार पहले मंदिर स्थल पर एक कुटिया हुआ करती थी। धीरे-धीरे मंदिर का क्षेत्रफल 70 एकड़ तक फैल गया। मां कात्यायनी का स्वरूप अलौकिक है। इनकी भक्ति और दर्शन मात्र से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष फलों की प्राप्ति होती है।
मां काली की कृपा बरसती है ‘कालीबाड़ी मंदिर’ में
नई दिल्ली स्थित कालीबाड़ी मंदिर अंग्रेजों के समय से ही भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है।बिड़ला मंदिर के निकट स्थित बंगाली समुदाय का मंदिर काली मां को समर्पित है। नवरात्रि के दौरानभव्य समारोह आयोजित किया जाता है। काली मां को देवी दुर्गा का ही रौद्र रूप माना जाता है।
मंदिर दिखने में छोटा और साधारण अवश्य है लेकिन इसकी मान्यता बहुत अधिक है। मंदिर के अंदर ही एक विशाल पीपल का पेड़ है। भक्त इस पेड़ को पवित्र मानते हैं और इस पर लाल धागा बांध कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। मंदिर में देवी काली की मूर्ति कोलकाता के बड़े प्रधान कालीघाट काली मंदिर की प्रतिमा से मिलती जुलती बनाई गई है। मंदिर की समिति को सुभाष चंद्र बोस ने औपचारिक रूप दिया था।
मां शीतला के आशीर्वाद से फलते-फूलते हैं भक्त
हरियाणा के जिला गुरुग्राम स्थित माता शीतला का मंदिर एक शक्तिपीठ होने के साथ ही भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां वर्ष में दो बार मेला लगता है। माता शीतला के 500 साल प्राचीन मंदिर का संबंध महाभारत काल से जोड़ा जाता है। कहा जाता है की यहीं पर आचार्य दोणाचार्य कौरवों और पांडवों को अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण देते थे।
महर्षि शरद्वान की पुत्री तथा कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ गुरु दोणाचार्य का विवाह हुआ था जब गुरु दोणाचार्य महाभारत के युद्ध में द्रोपद पुत्र धृष्ट्द्युम्न के हाथो वीरगति को प्राप्त हुए थे तो उनकी पत्नी कृपी सोलह श्रृंगार कर गुरु दोणाचार्य के साथ उनकी चिता में बैठीं।
लोगो ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया परन्तु अपने पती के चिता में सती होने का निर्णय ले चुकी कृपी ने लोग की बात नहीं मानी। सती होने से पूर्व उन्होंने लोगों को आशीर्वाद देते हुए कहा की मेरे इस सती स्थल पर जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामना लेकर पहुंचेगा वे अवश्य पूरी होगी।
भरतपुर नाम के एक राजा ने 1650 यहां भव्य मंदिर बनवाया तथा उस मंदिर में सवा किलो सोने से निर्मित माता कृपी की मूर्ति स्थापित की। माता कृपी का शीतला माता नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर (Sheetla mata mandir gurgaon) लोगो की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। मान्यता है कि मंदिर में माता शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को कभी चेचक का रोग नहीं होता। लोग अपने बच्चे का प्रथम मुंडन भी करवाते हैं।
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