2 June ki Roti: सोशल मीडिया पर आज सुबह से ही ‘2 जून की रोटी’ का मैसेज लगातार वायरल हो रहा है। जिसमें सभी से आग्रह किया जा रहा है कि आज 2 जून है इसलिए आज 2 जून की रोटी जरूर खाएं, सुप्रभात। 2 जून की रोटी वाक्य का संबंध क्या वाकई आज की तारीख 2 जून से जुड़ा है या नहीं ?
आप जरूर सोच रहे होंगे कि बचपन से लेकर अब तक इस वाक्य को कई बार सुना और खुद से बोला है।आखिर ये कोई लोकोक्ति है, मुहावरा, कहावत या जुमला। चलिये हम आपको बताते हैं कि ये कोई सामान्य वाक्य नहीं बल्कि एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है। जिसका मतलब किसी तारीख से नहीं बल्कि अवधी भाषा से है।

2 June ki Roti: ‘दो जून की रोटी’ को जनमानस में फेमस करने का श्रेय है हिंदी साहित्य को

हिंदी साहित्य में बहुत सारे मशहूर कहानीकारों और साहित्यकारों ने इस लोकोक्ति का भरपूर इस्तेमाल अपने लेखों में किया है। यही वजह रही कि आम जनमानस के बीच ये लोकोक्ति बड़ी ही आसानी से प्रचलित हुई। यहां दो जून की रोटी का अर्थ सिर्फ माह से ही नहीं है। बल्कि दिन के पहर से भी है। जून के महीने में चारे-पानी की कमी हो जाती थी, इसलिए इस माह में रोटी यानी खाने-पीने की चीज का महत्व बढ़ जाता था।
जिन लोगों को दो वक्त का भोजन मिलता था, बहुत बड़ी बात होती थी, इसलिए यह लोकोक्ति प्रचलन में आई। लोकोक्ति का मतलब अंग्रेजी के माह के नाम से नहीं बल्कि समय या वक्त से है। दरअसल वक्त या समय को अवधि भाषा में जून बोला जाता है।
दो जून का मतलब 2 वक्त और दो जून की रोटी का मतलब दो वक्त की रोटी से है। बोले तो सुबह-शाम की रोटी। उन्होंने कहा कि कई लोगों को इस लोकोक्ति का अर्थ तक नहीं मालूम। ऐसा माना जाता है कि इसका प्रचलन मध्य भारत या बिहार के लोगों द्वारा किया गया है।
2 June ki Roti: मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद ने खूब किया ‘दो जून की रोटी’ का इस्तेमाल अपने साहित्य में

दो जून की रोटी का मतलब दो वक्त की रोटी से होता है। यह लोकोक्ति तब प्रचलन में आई जब मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद जैसे बड़े साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में इसका भरपूर इस्तेमाल किया।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दरोगा’ में इस लोकोक्ति का जिक्र है।मशहूर साहित्यकारों का कहना है कि जून गर्मी का महीना है। इसमें अक्सर सूखा पड़ता है। सूखे की वजह से चारे-पानी की कमी हो जाती है। जून में ऐसे इलाकों में रह रहे परिवारों को दो वक्त की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इन्हीं हालातों में ‘दो जून की रोटी’ प्रचलन में आई होगी।
2 June ki Roti: दो जून की रोटी’ के लिए अन्नदाताओं का जताएं आभार
कृषि प्रधान देश भारत में रहते हुए अगर हमें समय पर भरपूर भोजन और पानी नसीब हो रहा है, तो हमें इसके लिए ईश्वर और अन्नदाता यानी हमारे किसानों का आभार जताना चाहिए। जिनकी दिनरात की मेहनत से उपजा अन्न हमें प्राप्त हो रहा है। आज के समय में जब कहीं खाद्यान का संकट होता है, भुखमरी और अकाल से खाने के लिए हाहाकार मचा है।ऐसे में हमें भोजन को बर्बाद करने रोकना होगा। लोगों को इसका अर्थ समझाना होगा कि आख्रिर
अन्न क्यों हमारे लिए जरूरी है।
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