अगर Shaheed Bhagat Singh को नेहरू या सुभाष में से किसी एक को चुनना होता तो वे किसको चुनते?

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अगर Shaheed Bhagat Singh को नेहरू या सुभाष में से किसी एक को चुनना होता तो वे किसको चुनते?

Shaheed Bhagat Singh Anniversary: हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहां इतिहास को बेहद अलग तरीके से लोगों के सामने रखा जा रहा है। ये एक ऐसा वक्त है जहां इतिहास को सही ढंग से पढ़ना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। चूंकि इस समय देश में गैर-कांग्रेसी सरकार है इसलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू को लेकर अलग-अलग दावे न सिर्फ सरकार की ओर से किये जाते हैं बल्कि सत्तापक्ष के नेता भी , जो सरकार का हिस्सा नहीं हैं, अलग-अलग टिप्पणियां करते रहते हैं।

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Pt. Jawaharlal Nehru

वहीं मौजूदा सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाने के बहाने खुद को राष्ट्रवादी, देशभक्त दिखाने का प्रयास करती दिखती है। दिक्कत खुद के राष्ट्रवाद के प्रचार से नहीं है बल्कि दिक्कत इस बात से है, जिसमें सुभाष बनाम नेहरू की बहस की शुरूआत कर दी जाती है। जैसे कि ये दोनों नेता एक दूसरे के कड़े प्रतिद्वंद्वी रहे हों। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि देश के इतिहास को अच्छे से पढ़ा जाए। इस लेख का मकसद नेहरू का महिमामंडन करना नहीं है बल्कि ये बताना है कि इतिहास में जो चीजें मौजूद हैं आज उसको बेहद अलग तरीके से बताया जाता है।

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Netaji Subhash Chandra Bose Statue

मसलन आज के दिन को ही ले लीजिए, आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती है। इस मौके पर ये जानना बेहद दिलचस्प हो जाता है कि अगर भगत सिंह को नेहरू या सुभाष में से किसी एक को चुनना होता तो वे किसको चुनते? इस बाबत उनका एक लेख जुलाई ,1928 के ‘किरती’ अखबार में छपा था।

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Bhagat Singh

Bhagat Singh लिखते हैं कि सुभाष और नेहरू दोनों ही भारत की आजादी के कट्टर समर्थक हैं, समझदार और देशभक्त हैं। लेकिन दोनों नेताओं के विचारों में बहुत अंतर है। भगत सिंह नेताजी सुभाष को प्राचीन संस्कृति का उपासक और कोमल हृदयवाला भावुक शख्स कहते हैं जबकि नेहरू को पश्चिम का शिष्य और युगांतकारी बताते हैं। मालूम हो कि नेहरू और सुभाष दोनों ही कांग्रेस के गरम दल से संबंध रखते थे।

Bhagat Singh लिखते हैं कि सुभाष छायावादी हैं, उनमें कोरी भावुकता है और वे पुरातन युग में विश्वास करते हैं , वहीं नेहरू विद्रोही हैं। सुभाष की नजर में अपनी पुरानी चीजें अच्छी हैं वहीं नेहरू की नजर में इनका विरोध किया जाना चाहिए। सुभाष जहां अंग्रेजों के भारत पर शासन के खिलाफ हैं वहीं नेहरू भारत की पूरी सामाजिक व्यवस्था ही बदलना चाहते हैं। सुभाष युवाओं को सिर्फ दिल की खुराक दे रहे हैं जबकि नेहरू युवाओं को दिल के साथ-साथ दिमाग की भी खुराक देते हैं।

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Netaji Subhash Chandra Bose

Bhagat Singh जहां सुभाष की सोच को संकीर्ण पाते हैं वहीं नेहरू की सोच में खुलापन पाते हैं। भगत सिंह कहते हैं कि सुभाष जोश भरते हैं लेकिन कोई भी शख्स जोश से हमेशा भरपूर नहीं रह सकता। भगत सिंह ने लेख में युवाओं से अपील की कि उन्हें नेहरू के साथ लगकर काम करना चाहिए। हालांकि Bhagat Singh स्पष्ट करते हैं कि नेहरू का भी अंधा पैरोकार नहीं बनना है।

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