जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई के पूर्व नेता Kanhaiya Kumar पिछले महीने ही शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) की जयंती के अवसर पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। Congress Party में शामिल होने के बाद उन्होंने पार्टी में अपना आगाज शानदार भाषण से किया था। Bihar की बात करें तो राज्य में 30 अक्टूबर को दो सीटों पर उपचुनाव है। उपचुनाव में एक तरफ NDA का गठबंधन है तो वहीं दूसरी तरफ पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा रहने वाली RJD और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ रहें हैं और वो एक दूसरे पर हमलावर भी हैं। पार्टी में नए-नए शामिल हुए कन्हैया कुमार भी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। प्रचार के दौरान कन्हैया कुमार ने इशारों-इशारों में आरजेडी, तेजस्वी यादव और मनोज झा पर हमला बोला।
कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह कहा जा रहा है कि उनके आने से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन जैसा कि कहावत है कि जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता उसके पास पाने के लिए बहुत कुछ होता है। यह बात सच है कि कन्हैया के आने से बिहार में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती। लेकिन इस चीज को भी नकारा नहीं जा सकता कि इस समय कांग्रेस पार्टी बिहार में बहुत ज्यादा कमजोर है और उसको एक मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है। इन कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि कन्हैया के आने से पार्टी को कुछ तो फायदा होगा।
युवाओं को आकर्षित करने की क्षमता
कन्हैया कुमार की बात करें तो 2016 में हुए जेएनयू कांड के बाद उन्हें जेल जाना पड़ा था। लेकिन 2016 से लेकर 2019 के बीच उनके सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए जिसके बाद लोगों ने कन्हैया कुमार को जाना और समझा। कन्हैया अपने वीडियो में बेरोजगारी, शिक्षा, महंगाई, रोजगार, संविधान और समानता जैसे मुद्दों के बारे में बात करते थे और इन्हीं सब चीजों ने लोगों को बहुत प्रभावित किया। इसी के चलते बहुत ही कम समय में उन्हें देश में प्रसिद्धि मिल गई। बिहार की राजनीति की बात करें तो यह सत्य है कि वहां की राजनीति जाति पर आधारित होती है और हर पार्टी का वोट बैंक है। लेकिन हर जाति और हर धर्म में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जाति से ऊपर उठकर महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा जैसे मुद्दे पर वोट देते हैं और ऐसे लोगों को जोड़ने की क्षमता कन्हैया कुमार के पास है।
बहुत ही शानदार वक्ता
अटल बिहारी वाजपेयी, कांशीराम और नरेंद्र मोदी जैसे नेता जिन्होंने अपने संघर्ष से सत्ता पाई उनकी यह खासियत है कि यह सब अच्छे वक्ता रहे हैं। आज राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के सामने कहीं ना कहीं इसीलिए कमजोर हैं क्योंकि नरेंद्र मोदी उनसे ज्यादा अच्छे वक्ता हैं। किसी भी पार्टी के समर्थक को यह चीज प्रभावित करती है कि उनका नेता विरोधी पर बहुत ज्यादा आक्रामक हो। कांशीराम की बात करें तो जिस तरह से वह अपने विरोधी पर आक्रामक होते थे तो उनकी प्रसिद्धि बहुत ही कम समय में दलितों के बीच बढ़ गई और वो दलित नेता बन गए।
आज असदुद्दीन ओवैसी जो धीरे-धीरे मुसलमानों के बीच पॉपुलर हो रहे हैं उसके दो कारण हैं: पहला वो अच्छे वक्ता हैं और दूसरा की वो हर मुद्दे पर अपनी विरोधी बीजेपी पर आक्रामक रहते हैं। बिहार की राजनीति की बात कर रहे हैं तो लालू यादव को कैसे भूल सकते हैं? लालू यादव की प्रसिद्धि का कारण भी उनके भाषण ही हैं। बिहार की वर्तमान राजनीति की बात करें तो युवा हैं तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और कन्हैया कुमार। इन तीनों में यह बात तो आप किसी से भी पूछेंगे की अच्छा वक्ता कौन है? तो सब यही कहेंगे कन्हैया कुमार। कन्हैया कुमार में बहुत अच्छी तरह से लोगों को जोड़ने की क्षमता है।
चुनाव में हार हुई लेकिन टक्कर दी
कुछ लोगों का कहना है कि कन्हैया कुमार कुछ नहीं कर सकते क्योंकि 2019 में वो गिरिराज सिंह से चुनाव हार गए थे लेकिन लोग भूल जाते हैं कि कन्हैया ने किस पार्टी और किन परिस्थितियों में चुनाव लड़ा था। नरेंद्र मोदी की लहर में जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी (अमेठी) जैसे नेता चुनाव हार गए वहां सीपीआई से चुनाव लड़के दूसरे नंबर में आना बहुत बड़ी बात है। कन्हैया को चुनाव में 2,69,976 वोट मिले थे जबकि उनके खिलाफ तनवीर हसन भी खड़े थे। मुस्लिम यादव समीकरण होने के बावजूद उन्हें तकरीबन 2 लाख वोट मिले। कन्हैया कुमार ने बेगूसराय सीट पर चुनाव किसी भी गठबंधन के साथ नहीं लड़ा था लेकिन उसके बावजूद उन्होंने अपने दम पर तनवीर हसन से ज्यादा वोट हासिल किए। यह दिखाता है कि कन्हैया की खुद की भी एक पहचान है और इसका कांग्रेस को भी फायदा मिलेगा।
मुस्लिम वोट खींचने की क्षमता
कन्हैया कुमार पूरे देश में प्रसिद्ध हुए हैं अपनी एंटी मोदी छवि के कारण। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें तो इसमें एक चीज निकल कर सामने आई कि जो आमतौर पर आरजेडी का समीकरण माना जाता है एमवाई यानी मुस्लिम यादव उसमें मुस्लिम ने आरजेडी को संदेश दे दिया कि हमारे पास भी विकल्प है और हम सिर्फ आरजेडी को वोट नहीं देंगे इसी के चलते सीमांचल में ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटें जीतीं। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उसमें मुख्य कैंडिडेट थे गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन।
कन्हैया और गिरिराज दोनों भूमिहार समुदाय से आते हैं लेकिन अगर वोटों के शेयर को देखा जाए तो इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ज्यादातर भूमिहारों का वोट गिरिराज सिंह को ही गया लेकिन जो मुस्लिम का वोट है वो तनवीर हसन को भी गया और कन्हैया कुमार को भी गया। चुनाव में दोनों को लगभग एक समान ही वोट मिले थे जहां कन्हैया को 2,69,976 वोट मिले तो वहीं तनवीर हसन को तकरीबन 2 लाख वोट मिले। बेगूसराय में मुस्लिम कैंडिडेट होने के बावजूद भी आधे मुसलमानों ने एक विकल्प की तलाश की और कन्हैया को वोट दिया। अगर कन्हैया की एन्टी मोदी छवि के कारण कांग्रेस अगर उनको आगे करती है तो जिन सीटों पर कांग्रेस थोड़ा मजबूत है कांग्रेस की जीतने की संभावना है वहां पर मुसलमान आरजेडी को वोट ना देकर कांग्रेस के साथ जा सकते हैं।
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(लेखक: अभय पांडेय युवा पत्रकार हैं। देश-विदेश के विषयों पर लिखते रहे हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं, कई सामाजिक आंदोलन में भी इनकी हिस्सेदारी रही है )
(डिस्क्लेमर :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति APN न्यूज उत्तरदायी नहीं है)