उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की हलचल में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने एक नया रंग भर दिया है। गठबंधन को दोनों ही पार्टियां शायद इस तरह से देख रही हैं जैसे आधे से ज़्यादा युद्ध जीत लिया हो। लेकिन क्या गठबंधन के चुनावी रास्ते इतने आसान होंगे? सवाल इसलिए उभर रहे हैं क्योंकि गठबंधन के साथ ही कांग्रेस और सपा में ऐसे सुर भी उभरने लगे हैं जिनसे सियासी बगावत की बू आती है….नामांकन के दौर में कहीं वो चुनौतियां बनकर न उभर आयें। उम्मीदवारी की आस लगाये बैठे कई नेता, गठबंधन में बलिदान चढ़े अपने टिकट को लेकर गुस्से में चुनावी मैदान में उतरकर मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
सोमवार 23 जनवरी को एपीएन न्यूज़ के ख़ास कार्यक्रम मुद्दा में समाजवादी पार्टी के आपसी विवाद और चुनावी गठबंधन पर चर्चा हुई। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन न्यूज), ज़ीशान हैदर (कांग्रेस प्रवक्ता), संजीव मिश्रा (सपा प्रवक्ता), हरी नारायण राजभर (सांसद बीजेपी) व पार्सा वेंकटेश्वर राव (वरिष्ठ पत्रकार) शामिल थे। इस कार्यक्रम का संचालन एंकर अरविन्द ने किया।
जीशान हैदर ने कहा कि जब कोई भी पार्टी कभी भी चुनाव में लोक सभा हो, विधान सभा हो बहुत से ऐसे महत्वकांक्षी लोग होते हैं। हर आदमी चाहता है कि उसको टिकट मिले, अगर दस लोग टिकट मांग रहे हैं तो उसमें से किसी एक आदमी को टिकट मिलता है, तो नौ आदमी के अंदर कहीं न कहीं नाराज़गी होती है कि उनको टिकट नहीं मिला। कांग्रेस ऐसी पार्टी है जहाँ हर चीज़ दिमाग से होती है, दिल से होती है। जिस तरह से सांप्रदायिक ताकतें प्रदेश में और देश में हाथ बढ़ा रही हैं, उनको रोकने के लिए हमें लगा कि हमें साथ आ जाना चाहिए तो आराम से हम उनको रोक लेंगे। हमें लगता है कि कानून व्यवस्था में और सुधार की जरुरत है और अगर हमारी सरकार बनेगी तो उसमें और सुधार किये जाएंगे। 2007 से 2012 के बीच में कांग्रेस ने काफी बढ़ोतरी की थी, तो यह गठबंधन कहीं न कहीं सपा और कांग्रेस के लिये फायदेमंद होगा। बीजेपी जिस तरह से झूठ बोलती है, जुमले देती है, उन्होंने देश की जनता को ठगा है।
संजीव मिश्र ने कहा कि चुनावी बिगुल बज चुका है तो बहुत साफ सी बात है, कि सपा और जो हमारे गठबंधन के सहयोगी है वे लोग अब जीतते हुए उम्मीदवारों को उतार रहे है। हम इस बार बड़े पैमाने पर जीत कर आएंगे क्योंकि ऐसे दलों को जनता वैसे भी नकार रही है तो हमारा यह प्रयास रहेगा कि इनकी दुकाने हम बंद करने का काम करें।
हरी नारायण राजभर ने कहा कि हम लोगों को कोई मुश्किल नहीं आएगी, इनके गठबंधन से और हम लोग ठीक ठाक स्थिति में जा रहे हैं। जनता तो समाजवादी पार्टी और बसपा दोनों को नकार चुकी है। हम कितना झूठ बोल रहे है इनके कहने से होगा नहीं जनता हमारी बात को कितना पसंद करती है हमें इससे मतलब है।
गोविन्द पंत राजू ने कहा कि गठबंधन का भविष्य तो अभी बहुत दूर की बात है मुझे तो गठबंधन का वर्तमान ही बहुत ठीक ठाक नहीं दिखाई दे रहा है। जिस तरह से गठबंधन की शुरआत हुई है गठबंधन को लेकर जो शर्ते थी उनको लेकर काफी खींचतान है। राहुल गाँधी के खेमे से जो कोशिश हो रही थी शायद वो कोशिश इस लायक नहीं थी, शायद उन कोशिशों से कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। इसलिए कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी, जिनकी परिवार के स्तर पर तो मान्यता बहुत ज्यादा हो सकती है लेकिन कांग्रेस के संगठन के स्तर पर उनकी वैसी मान्यता नहीं है फिर भी हस्तक्षेप उनका चला। एक बात तो साफ़ है कि सबकुछ बहुत सहज नहीं है। गठबंधन जो हुआ है न तो बराबरी का भाव है न सहजता का भाव है।
पार्सा वेंकटश्वर राव ने कहा कि ये गठबंधन जनता की भलाई के लिये नहीं बल्कि दोनों पार्टीयों ने मज़बूरी में अपनी डूबती हुई नैया को बचाने के लिए किया है, ये एक मौका प्रस्त है दोनों के लिये। रणनीति क्या है दोनों पार्टी की, मुस्लिम वोट को कैसे उनके पास रखे पर कहीं न कहीं शक़ है कि मुस्लिम वोट सपा की तरफ नहीं जाएगा, तो वो लोग कांग्रेस के विकल्प पर आ जाएंगे। मुझे नहीं लगता कि ये रणनीति जो बन रही है वो ज्यादा नुकसान पहुचाएगा। क्योंकि अगर सपा और कांग्रेस चाहती है कि हम मुस्लिम वोट के साथ यहां जीतेंगे तो बीजेपी को फायदा होगा बीजेपी चाहती है कि पोलॅरिज़ेशन हो और ये लोग मौका दे रहे है। पोलॅरिज़ेशन के लिए सबका कहना है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ना है तो सिर्फ जाति के बुनियाद पर लड़ना है किसी और मुद्दे पर नहीं चलता है। यह अफ़सोस की बात है पर यही हकीकत है।