फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Fortis Memorial Research Institute) में डॉ. उद्गीथ धीर, डायरेक्टर एवं हेड(Dr. Udgeeth Dhir, Director & Head), सीटीवीएस और डॉक्टरों की टीम ने मिलकर 25 वर्षीय युवक के सीने से 13.85 किलोग्राम वज़न का दुनिया का सबसे बड़े आकार का (Tumor Surgery) सफलतापूर्वक निकाला है, चिकित्सा जगत में एक बेहद चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ किस्म की सर्जरी को अंजाम दिया है। इससे पहले छाती में सबसे बड़े आकार का ट्यूमर गुजरात में एक मरीज़ के सीने से निकाला गया था जिसका वज़न 9.5 किलोग्राम था।
Tumor ने 90 फीसदी छाती को घेर लिया था
डॉ. उद्गीथ ने बताया कि मरीज देवेश शर्मा को बेहद गंभीर हालत में जब फोर्टिस, गुरुग्राम आया तो वह सांस नहीं ले पा रहा था। पिछले 2-3 महीनों से उसे सीधे लेटकर सोने में भी दिक्कत थी। अस्पताल में जांच के बाद, पल्मोेनोलॉजिस्टल ने उन्हें छाती का सीटी स्कैन करवाने की सलाह दी। रिपोर्ट से पता चला कि उनके सीने में एक बड़े आकार का ट्यूमर था जो छाती में करीब 90 फीसदी जगह घेरे हुए था और इसने न सिर्फ हृदय को ढक रखा था, बल्कि दोनों फेफड़ों को भी अपनी जगह से हिला दिया था और इसके चलते फेफड़े सिर्फ 10 प्रतिशत क्षमता से ही काम कर रहे थे।
दुर्लभ ब्लड ग्रुप – एबी नेगेटिव के कारण स्थिति गंभीर थी
सर्जरी चुनौतीपूर्ण था और मरीज का दुर्लभ ब्लड ग्रुप – एबी नेगेटिव ने इसे और भी गंभीर बना दिया। जब मरीज़ों के सीने में बड़े आकार के ट्यूमर मौजूद होते हैं तो ऐसे में एनेस्थीसिया देना काफी मुश्किल होता है। दरअसल, एनेस्थीसिया देते समय, ट्यूमर के वज़न की वजह से हृदय पर दबाव बढ़ता है, जिसके चलते रक्त्प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है और ऐसे में ब्लड प्रेशर काफी गिर जाता है। इस स्थिति से बचने और सर्जरी के जोखिम को कम करने के लिए मरीज को लोकल एनेस्थीसिया देकर इमरजेंसी कार्डियक पल्मोटनेरी बायपास के लिए तैयार रखना पड़ता है।
मरीज की सर्जरी 4 घंटे चली और इस दौरान उनकी छाती को दोनों तरफ से खोला गया तथा बीचों-बीच मौजूद छाती की मुख्य हड्डी को काटना पड़ा था। तकनीकी तौर पर इसे क्लैम शैल इन्साइज़न कहा जाता है। इतने बड़े आकार के ट्यूमर को मिनीमल इन्वेसिव सर्जरी से हटाना नामुमकिन था और ऐसे में छाती को पूरा खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, मरीज़ के शरीर में पर्याप्त रक्त प्रवाह को बनाए रखना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था। इस प्रकार की सर्जरी में काफी सावधानी की जरूरत होती है, क्योंकि ज़रा सी भी चूक मरीज़ के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। भारी ट्यूमर के चलते यह काफी जोखिमपूर्ण सर्जरी थी और अनेक रक्तवाहिकाओं के चलते ऑपरेट करना मुश्किल था, क्यों कि ट्यूमर को नियंत्रित करना तथा ट्यूमर कैप्सूल को संभालना भी जरूरी था।
डॉ धीर ने बताया कि सर्जरी के बाद मरीज़ को पर्याप्त हिमोस्टेलसिस के बाद आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था और अगले दिन उनके शरीर से ट्यूब निकाल दी गईं। शुरू में वेंटिलेशन पर रखा गया और बाद में उससे भी हटा दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद खून में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने लगा, जिसकी वजह से शुरू में कुछ सिकुड़ चुके उनके फेफड़े फिर से फैलने लगे और इसके चलते री-एक्सेपेंशन पल्मो़नरी इडिमा (आरपीई) की शिकायत मरीज़ को हुई। 48 घंटे बाद मरीज़ को वापस वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। हालत देखते हुए हमने ट्रैकेस्टॅमी करने का फैसला किया, जिसके चलते उनकी गर्दन में एक मामूली छेद किया गया ताकि वहां से उनके शरीर में जमा हो रहे स्राव को निकाला जा सके, क्योंकि उनके हृदय में काफी जमाव होने लगा था। मरीज़ को 39 दिनों तक आईसीयू में रखा गया और इसके बाद कमरे में शिफ्ट किया गया तथा उनकी ट्रैकेस्टॅमी को हटाया गया। अब मरीज़ की हालत में सुधार हो रहा है और मामूली तौर पर ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता है।
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