Uniform Civil Code : सुप्रीम कोर्ट के जानेमाने वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने की बात कही है। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने भारतीय नागरिक संहिता को भारतीय संविधान की आत्मा बताते हुए इसके लाभों से भी अवगत कराया है। देश के आम नागरिक के लिए समान नागरिक संहिता के स्थान पर अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होने से कई समस्याएं बनी हुई हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहु-विवाह करने की छूट है लेकिन अन्य धर्मो में ‘एक पति-एक पत्नी’ का नियम बहुत कड़ाई से लागू है। बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू, ईसाई और पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है।
इसके लिए IPC की धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का भी प्रावधान है इसीलिए कई लोग दूसरा विवाह करने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म अपना लेते हैं। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में चार निकाह जायज हैं जबकि इस्लामिक देश पाकिस्तान में पहली बीवी की इजाजत के बिना शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता।
Uniform Civil Code: विवाह की न्यूनतम उम्र समान नहीं
अगर बात की जाए देश की तो एक पति – एक पत्नी किसी भी प्रकार से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट, ह्यूमन राइट और राइट टू डिग्निटी का मामला है इसलिए यह जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए। विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए समान नहीं है। मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र तय नहीं है। अन्य धर्मो मे लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इस बाबत कई बार चेताया जा चुका है। उसके अनुसार 20 वर्ष से पहले लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होती।
मौखिक तलाक अभी तक मान्य
संसद में तीन तलाक अवैध घोषित होने के बावजूद अन्य प्रकार के मौखिक तलाक (तलाक-ए-हसन एवं तलाक-ए-अहसन) आज भी मान्य हैं। इसमें भी तलाक का आधार बताने की बाध्यता नहीं है और केवल 3 महीने प्रतीक्षा करना है जबकि अन्य धर्मों में केवल न्यायालय के माध्यम से ही विवाह-विच्छेद हो सकता है। हिंदू, ईसाई पारसी दंपति आपसी सहमति से भी मौखिक विवाह-विच्छेद की सुविधा से वंचित हैं।
मुस्लिम बेटियों को हमेशा भय के वातावरण में जिंदगी गुजारती हैं। मुस्लिम कानून में मौखिक वसीयत एवं दान मान्य है लेकिन अन्य धर्मों में केवल पंजीकृत वसीयत एवं दान ही मान्य है। मुस्लिम कानून मे एक-तिहाई से अधिक संपत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती है, जबकि अन्य धर्मों में शत-प्रतिशत संपत्ति की वसीयत की जाती है। ये मसला मजहबी नहीं बल्कि मानवाधिकार से संबंधित है।
उत्तराधिकार के कानून जटिल
मुस्लिम कानून में उत्तराधिकार की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है, पैतृक संपत्ति में पुत्र एवं पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है।उत्तराधिकार के कानून बहुत जटिल हैं। विवाह के बाद पुत्रियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है और विवाह के बाद अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं। उत्तराधिकार सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी जेंडर न्यूट्रल, रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए Uniform Civil Code होना चाहिए। तलाक का आधार भी सबके लिए एक समान नहीं है।
व्याभिचार के आधार पर मुस्लिम अपनी बीवी को तलाक दे सकता है, लेकिन बीवी अपने शौहर को तलाक नहीं दे सकती है। हिंदू पारसी और ईसाई धर्म में तो व्याभिचार तलाक का बेस ही नहीं है। कोढ़ जैसी लाइलाज बीमारी के आधार पर हिंदू और ईसाई धर्म में तलाक हो सकता है, लेकिन पारसी और मुस्लिम धर्म में नहीं। कम उम्र में विवाह के आधार पर हिंदू धर्म में विवाह विच्छेद हो सकता है लेकिन पारसी ईसाई मुस्लिम में यह संभव नहीं है। ऐसे में सभी के लिए सिविल कोड का होना बेहद जरूरी है।
पैतृक संपत्ति में धर्म और लिंग आधारित विसंगतियां
पैतृक संपत्ति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त नहीं है और धर्म क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगतियां है। ये मानवाधिकार का मामला है इसलिए यह भी पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए। भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से धर्म क्षेत्र लिंग आधारित विसंगतियां समाप्त होंगी
न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा
अनुच्छेद 44 के माध्यम से समान नागरिक संहिता की कल्पना तैयार की थी
हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के माध्यम से समान नागरिक संहिता की कल्पना की थी, ताकि सभी समान अधिकार और समान अवसर मिले और देश की एकता अखंडता मजबूत हो। वोट बैंक राजनीति के कारण ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया. जिस दिन ‘भारतीय नागरिक संहिता’ का एक ड्राफ्ट बनाकर सार्वजनिक कर दिया जाएगा, आम जनता विशेषकर बहन बेटियों को इसके लाभ के बारे में पता चल जाएगा, उस दिन कोई भी इसका विरोध नहीं करेगा।
ऐसे में जब तक भारतीय नागरिक संहिता का ड्राफ्ट प्रकाशित नहीं होगा तब तक केवल हवा में ही चर्चा होगी और समान नागरिक संहिता के बारे में सब लोग अपने अपने तरीके से व्याख्या करेंगे। भ्रम फैलाएंगे इसलिए विकसित देशों में लागू समान नागरिक संहिता और गोवा में लागू गोवा नागरिक संहिता का अध्ययन करने और भारतीय नागरिक संहिता का ड्राफ्ट बनाने के लिए तत्काल एक ज्यूडिशियल कमीशन या एक्सपर्ट कमेटी बनाना चाहिए।
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