Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में अविवाहित महिलाओं को भी MTP एक्ट के तहत गर्भपात का अधिकार है।शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत में अविवाहित महिलाओं को भी एमटीपी एक्ट के तहत गर्भपात कराने का अधिकार है।देश में गर्भपात कानून के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं में किसी प्रकार का भेद नहीं है।गर्भपात के उद्देश्य से रेप में वैवाहिक रेप भी शामिल है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसे अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है।एकल और अविवाहित महिलाओं को भी गर्भावस्था के 24 सप्ताह में उक्त कानून के तहत गर्भपात का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात के अधिकार को मिटा दिया। कोर्ट ने फैसले मे कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी MTP एक्ट से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है।लिव-इन रिलेशनशिप और सहमति से बने संबंधों से गर्भवती हुई महिलाएं भी गर्भपात करा सकेंगी।इसके बाद अब सिर्फ विवाहित ही नहीं, अविवाहित महिलायें भी 24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी MTP संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए यह फैसला सुनाया है।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन की स्वायत्तता गरिमा और गोपनीयता का अधिकार एक अविवाहित महिला को ये हक देता है, कि वह विवाहित महिला के समान बच्चे को जन्म दे या नहीं।सुप्रीम कोर्ट का एमटीपी कानून और इससे संबंधित नियमों के बदलाव को लेकर बड़ा फ़ैसला दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में करते हुए अविवाहित महिला को भी 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात करने का अधिकार दिया।

Supreme Court: एम्स के मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया
Supreme Court: कोर्ट ने 21 जुलाई 22 को एक- पक्षीय अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि गर्भपात से केवल इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि एक महिला अविवाहित है।अविवाहित महिलाओं को एमटीपी अधिनियम के दायरे से बाहर करने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है।इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया था। जो इस बात को देखेगा कि गर्भपात से जीवन को कोई खतरा तो नहीं है। मेडिकल बोर्ड के निष्कर्ष में यह पाया जाता है कि कोई खतरा नहीं है तो गर्भपात कराया जाएगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने अविवाहित महिला को गर्भपात की इजाजत नहीं दी थी। महिला लिव इन रिलेशनशिप में थी और सहमति से संबंध बनाए जिस कारण वह गर्भवती हुई थी।

Supreme Court: याचिकाकर्ता महिला को एक्ट के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता
Supreme Court: शीर्ष अदालत ने इस मसले पर पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी एक्ट 2021 में जो बदलाव किया गया है। उसके तहत एक्ट में महिला और उसके पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया है।वहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है न कि पति शब्द का। ऐसे में एक्ट के दायरे में अविवाहित महिला भी कवर होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला को इसलिए एक्ट के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह अविवाहित महिला है।जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विधायिका ने जो कानून बनाया है। उसका मकसद सिर्फ वैवाहिक रिलेशनशिप से अनचाही गर्भावस्था तक मामला सीमित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला अनचाहे गर्भधारण से सफर कर रही है और यह कानून की भावना के खिलाफ है।
Supreme Court: गर्भपात से रोकना एकल महिलाओं के अधिकार का उल्लंघन
यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि उक्त कानून के नियम 3 बी के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करना अनुचित है। यह संविधान के अनुच्छेद- 14 के तहत सभी के समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात से रोकना और सिर्फ विवाहित महिलाओं को अनुमति देना संविधान में दिए गए नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन है।
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