सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटाने के मामले में गुरुवार(14 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने 1 मार्च 2018 तक 12 स्पेशल कोर्ट का गठन करने और उन्हें शुरू करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस योजना को हरी झंडी दिखा दी जिसमें उसने 7 राज्यों में 12 स्पेशल कोर्ट के गठन की बात कही गई थी। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने राज्यों को 7.80 करोड रुपये का फंड भी ज़ल्द बांटने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन राज्यों में यह स्पेशल कोर्ट बनने हैं वहां की राज्य सरकारें हाईकोर्ट के साथ सलाह करके इनका गठन करेंगी और हाईकोर्ट इन मामलों को स्पेशल कोर्ट में सुनवाई के लिए भेजेगा। मामले में अगली सुनवाई 7 मार्च 2018 को होगी और तभी सुप्रीम कोर्ट इन स्पेशल कोर्ट की संख्या बढ़ाने पर भी विचार करेगा।
सुप्रीम कोर्ट नें मामले मे याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की उस मांग को ठुकरा दिया जिसमें सासंदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का ब्यौरा इकट्ठा करने की ज़िमेदारी चुनाव आयोग को देने को कहा गया था। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वह सभी सांसदों और विधायकों से उनके लंबित आपराधिक मामलों का रिकॉर्ड 90 दिनों के अंदर मांगे और अगर कोई सांसद या विधायक जानकारी नहीं देता है तो उसका निर्वाचन रद्द कर दिया जाए। लेकिन कोर्ट ने केंद्र सरकार को सासंदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का पूरा ब्यौरा इकट्ठा करने के लिए दो महीने का समय दे दिया है।
पिछली सुनवाई में केद्र की तरफ से कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया गया था जिसमें केंद्र ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के तेज़ निपटारे के लिए 12 विशेष कोर्ट बनाने की बात कही है। केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर बताया कि इसके लिए 7.80 करोड़ रुपए आवंटित किए जा रहे हैं।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 2014 के चुनाव के दौरान 1581 उम्मीदवारों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों पर क्या किया गया है और इनकी अभी क्या स्थिति है ? कोर्ट ने सरकार से इस बात का ब्यौरा देने के लिए भी कहा था कि 2014 से 2017 के बीच जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं और उन पर क्या कार्रावाई हुई है।