Supreme Court:सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोपी और केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे की जमानत याचिका का विरोध किया। इस मौके पर यूपी सरकार की तरफ से वकील गरिमा प्रसाद ने आशीष के अपराध को जघन्य और गंभीर बताया।सुनवाई के दौरान, अदालत द्वारा जब जमानत याचिका का विरोध करने का आधार पूछा गया तो उन्होंने कहा, “यह एक गंभीर और जघन्य अपराध है।ऐसे में जमानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।”

Supreme Court: जमानत का विरोध
यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि इस मामले ट्रायल शुरू हो गया है।इस मामले में कुछ और आरोपी जेल में हैं।आशीष मिश्रा की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि पिछले एक साल से जेल में है।एक बार उन्हें जमानत मिली फिर सुप्रीम कोर्ट ने बेल खारिज कर दी।इस मामले में 400 से ज्यादा गवाह हैं जिनका बयान होना अभी बाकि है।इस स्थिति में 5 साल तक मामले में ट्रायल चलेगा?ऐसे में क्या होगा।उन्होंने कहा कि दूसरे एफआईआर जो दर्ज किए गए। उसमें आरोपों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है।इस मामले में कोई चश्मदीद सामने नहीं आया है। यूपी सरकार की तरफ से बताया गया कि इस मामले 4 आरोपियों की जमानत का ट्रायल कोर्ट में विरोध किया है।लिहाजा हम जमानत का विरोध करते हैं।
जस्टिस सूर्यकांत ने सरकार से पूछा आपका जमानत का विरोध के पीछे की अप्रिहेंशन क्या है? जस्टिस सूर्यकांत ने यूपी सरकार से पूछा कि जब चार्जशीट फाइल हो चुकी है।चार्ज फ्रेम हो चुका है तो से में जमानत पर बहस करें।पीड़ित पक्ष को वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि जघन्य अपराध के मामले में सुप्रीम कोर्ट को आरोपियों को जमानत नहीं देनी चाहिए।
Supreme Court: कोर्ट ने कहा- क्या हम मूकदर्शक बने रहें?
Supreme Court: जस्टिस सूर्यकांत ने कहा यो क्या हम मूक दर्शक बने रहें?कानून के तहत जमानत की मांग की सुनवाई करना और निर्णय देना हमारी शक्ति के तहत है। आप दायरे का ख्याल रखें।वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है।आरोपी और उसके मंत्री पिता ने पीड़ितों को डराया धमकाया है।कोर्ट ने कहा कि आरोपी के पिता मंत्री हैं,लेकिन इस मामले में आरोपी नहीं हैं।
इस पर दुष्यंत दवे ने कहा कि मंत्री पिता को भी आरोपी बनाया जाना चाहिए।जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आरोपियो की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट विचार नहीं करेगा तो फिर कौन करेगा?दुष्यंत दवे ने कहा कि अगर आरोपी आशीष मिश्रा को जमानत मिलती है। मैं अपने 44 साल के बार के अनुभव के आधार पर कहता हूं कि निचली अदालत में मुकदमा सही दिशा में नहीं चल पाएगा।दुष्यंत दवे ने आरोपी के पिता जो एक मंत्री है।घटना से दो तीन दिन पहले एक सभा में विरोध प्रदर्शन करने वालों को खुलेआम धमकी दी गई थी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मुकदमा हमेशा दोनों पक्षों में संतुलन को ध्यान में रखकर आगे बढ़ाया जाता है। किसी को मनमुताबिक तरीके से या अनिश्चित समय के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता।उन्होंने कहा कि यह जमानत की पहली याचिका नहीं है। जिस पर हम सुनवाई कर रहे हैं। अगर मामले में किसी एक को जेल नहीं मिलती तो औरों को भी नहीं मिलेगी।दवे ने कहा कि आप क्यों चिंतित हो रहे हैं।कोर्ट ने पूछा चिंतित होने का क्या मतलब है आपका?वकील दवे ने कहा FSL जांच में यह कन्फर्म किया है कि हथियारों का उपयोग किया गया था।
Supreme Court: जेल नहीं बेल जरूरी बोले -रोहतगी
Supreme Court: आशीष मिश्रा कि ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा यह कोई पूर्व सुनियोजित घटना नहीं थी।यह हीट ऑफ द मूवमेंट था।मुकुल ने कहा कि सवाल यह है कि पहले कार पर हमला हुआ या कार ने पहले लोगों को कुचला।उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या मैं जमानत का इसलिए अधिकारी हूं क्योंकि कि मेरे पिता मंत्री हैं। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम मे यह कैसी दलील है।रोहतगी ने यह बात दुष्यंत दवे के उस दलील पर कहीं जहा उन्होंने कहा कि आरोपी के पिता केंद्र में मंत्री हैं।
रोहतगी ने कहा कि क्रिमिनल ज्यूरिसप्रूडंस में कहां लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट जमानत नहीं दे सकता। जबकि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट जमानत खारिज कर चुकी है।रोहतगी ने दलील देते हुए कहा कि कई फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जेल नहीं बेल जरूरी है।दवे ने कहा कि NCRB का डाटा कहता है कि हत्या के मामले में 13 हजार मामले यूपी मे अंडर ट्रायल पेंडिंग है।कोर्ट ने कहा यह ऐसा केस है जिस पर लगातार निगरानी की जरूरत है। हम मामले की निगरानी करने के इच्छुक हैं।कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह हमारी ओर से अनुचित होगा कि हम ट्रायल को मामले पर डे टू डे सुनवाई करने को कहें क्योंकि और भी मामले में हैं जो चल रहे हैं।कोर्ट ने कहा कि इस मामले में किसान भी जेल में हैं। यह पक्षों के अधिकारों को संतुलित करने के बारे में है।हालांकि कोर्ट ने सभी पक्षो की दलील सुनने के बाद कहा हम इसपर आदेश जारी करेंगे।
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