Shiv Sena Crisis: Supreme Court में शिवसेना पर अधिकार को लेकर तीखी बहस, निष्‍कर्ष नहीं निकलने पर सुनवाई टली

Shiv Sena Crisis: CJI ने पूछा चुनाव आयोग जाने का आपका उद्देश्य क्या है? साल्वे ने जवाब देते हुए कहा कि BMC के चुनाव की वजह से हम EC गए हैं। जिससे यह तय हो सके की असली पार्टी कौन सी है?

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Shiv Sena Crisis
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Shiv Sena Crisis: महाराष्ट्र में शिवसेना पर अधिकार को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर सुनवाई हुई।इस सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से तीखी बहस हुई। इन दलीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट से कुछ मुश्किल सवाल भी किए।कोई निष्कर्ष नहीं निकलने की वजह से आज की सुनवाई भी टाल दी गई और कल के लिए नई तारीख दी गई। CJI ने उद्धव गुट के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या आपके मुताबिक बैठक में शामिल न होना पार्टी की सदस्यता छोड़ना है?

सिब्बल ने जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने सदस्यता छोड़ दी है। उन्होंने एक अपना नया व्हिप नियुक्त किया है। इसके साथ ही एक नया नेता भी चुन लिया है। कहा कि उन लोगों ने EC के सामने भी माना है कि वे अलग हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि आप जिस पार्टी से चुनकर आए हैं। उसकी बात आपको माननी चाहिए। आप पार्टी की बैठक की बजाय गुवाहाटी में बैठक कर करते हैं कि हम असली राजनीतिक पार्टी हम हैं।

सिब्बल ने कहा कि उनके द्वारा दसवीं अनुसूची का उपयोग दलबदल को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यही है दसवीं अनुसूची का उद्देश्य? सिब्बल ने कहा कि अगर इसकी अनुमति दी जाती है तो इस तरह से किसी भी बहुमत की सरकार को गिराने के लिए किया जा सकता है।

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Shiv Sena Crisis: शिंदे गुट पर अवैध तरीके से सरकार चलाने का आरोप

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सिब्बल ने कहा कि अगर आप अयोग्य हो जाते हैं तो आप चुनाव आयोग के पास नहीं जा सकते। आप आयोग में आवेदन भी नहीं कर सकते है।उनके अयोग्य होने पर सब कुछ अवैध हो गया। सरकार का गठन, एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बनना और सरकार द्वारा लिए जा रहे फैसले सब कुछ अवैध हैं।

कपिल सिब्बल के बाद ठाकरे गुट की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने अपना पक्ष रखा।अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मुद्दा बहुत दिलचस्प है क्योंकि उन सभी के सामने एकमात्र बचाव का रास्ता विलय था जो उन्होंने नहीं किया।
फिलहाल शिंदे गुट सिर्फ महाराष्ट्र में अवैध तरीके से सरकार चला रहे हैं और तो और चुनाव आयोग के सामने दावा कर रहे हैं कि वह असली शिवसेना है।

सिंघवी ने कहा कि अभी मामला कोर्ट में लंबित है बावजूद इसके शिंदे ग्रुप ने चुनाव आयोग में याचिका दाखिल की जोकि पूरी तरह से गलत है। अब उनके पास यही रास्ता बचा है कि वे चुनाव आयोग के सामने जाएं और आयोग उन्हें मान्यता दे दे।

शिंदे गुट की से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हम पर दलबदल कानून लागू नहीं होता क्योंकि हम पार्टी से अलग नहीं हुए हैं। हम पार्टी छोड़ रहे हैं कि हम पार्टी में किसी दूसरे नेता को चाहते हैं।आज की तारीख में एक राजनीतिक दल के भीतर बंटवारा है। सीधा सीधा यह पार्टी के दो गुटों के बीच आंतरिक गतिरोध है।
इसे एंट्री पार्टी नहीं बल्कि इंट्रा पार्टी कहेंगे।

कई विधायक नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं तो इसे पार्टी विरोधी नहीं कहा जाएगा। ये अंदरूनी मतभेद है।हम पार्टी में हैं हम किसी दूसरी पार्टी में नहीं हैं। हमने केवल नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई है।कहा की आप नेता नहीं हो सकते। दो शिवसेना नहीं बल्कि यहां दो अलग अलग गुट हैं। जिसके दो अलग अलग नेता हैं।

साल्वे ने कहा किसी पार्टी में दो वास्तविक पार्टी नहीं हो सकती। पार्टी में केवल एक लीडरशिप हो सकती है और वो हम हैं।
चुनाव आयोग में जो कार्यवाही चल रही है।उससे अयोग्यता का कोई लेना देना है। वो सुनवाई अलग है और यह सुनवाई अलग है। यह पार्टी का अंदरूनी मामला है। इसमे एक ग्रुप कह रहा है कि उनको दूसरे ग्रुप की लीडरशिप मंजूर नहीं। बस इतना ही मसला है।

साल्वे ने कहा कि हम पार्टी में ही हैं। हम किसी दूसरी पार्टी में नहीं गए हैं। हमने केवल नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई है। हमने बस यह कहा है कि आप (उद्धव ठाकरे) हमारे नेता नहीं हो सकते। यह दो शिवसेना नहीं बल्कि शिव सेना में दो अलग-अलग गुट हैं। जिनके दो अलग-अलग नेता हैं। हमने ना तो पार्टी से इस्तीफा दिया है ना ही पार्टी की कार्यसमिति की बैठक में हमें हटाया गया है। हम अभी भी पार्टी के सदस्य हैं।

Shiv Sena Crisis: BMC चुनाव की वजह से EC पहुंचा शिंदे गुट

CJI ने पूछा चुनाव आयोग जाने का आपका उद्देश्य क्या है? साल्वे ने जवाब देते हुए कहा कि BMC के चुनाव की वजह से हम EC गए हैं। जिससे यह तय हो सके की असली पार्टी कौन सी है? साल्वे ने कहा कि जिनके पास दो तिहाई से ज्यादा विधायक सांसद और तामाम कार्यकर्ता या फिर एक तिहाई सदस्य।

CJI ने पूछा कि आप दोनों पक्षों में से पहले कोर्ट कौन आया?साल्वे ने कहा कि हम आये थे क्योंकि हाउस में स्पीकर कई सालों से नहीं थे। डिप्टी स्पीकर तुरंत फैसला नहीं ले सकते थे।CJI ने कहा कि कर्नाटक केस में हमने फैसला दिया था की ऐसे मामलों में स्पीकर तय करें।

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