Justice UU Lalit: भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एन वी रमणा 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उससे पहले उन्होंने आज अपने नए उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश की है। भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के चयन के लिए मौजूदा CJI एन वी रमणा ने जस्टिस उदय उमेश ललित के मान की सिफारिश की है। CJI रमणा ने अपना सिफारिश पत्र कानून और न्याय मंत्री को सौंपा है।
अगर जस्टिस यूयू ललित के नाम की सिफारिश पर मुहर लग जाती है तो देश को अपना नया CJI मिल जाएगा। यूयू ललित अगर CJI बनते हैं तो वो देश के 49वें CJI होंगे। बता दें कि जस्टिस एन वी रमणा 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं।

गौरतलब है कि किरन रिजिजू ने CJI एन वी रमणा को पत्र लिखकर उनसे अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने का अनुरोध किया था।
परंपरा के मुताबिक अपने सेवानिवृत्ति से करीब 1 महीने पहले चीफ जस्टिस बंद लिफाफे में अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश कानून और न्याय मंत्रालय के जरिए राष्ट्रपति को सौंपते हैं। आमतौर पर इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश का नाम ही होता है।
पारंपारिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अपनी वरिष्ठता के आधार पर CJI के रूप में कार्यभार संभालते हैं। चीफ जस्टिस के तौर पर वैसे तो कोई कार्यकाल निर्धारित नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु संविधान के अनुसार 65 साल तय की गई है।

Justice UU Lalit: कौन हैं जस्टिस यूयू ललित
जस्टिस यूयू ललित इस समय सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज हैं। जस्टिस ललित महाराष्ट्र के जाने-माने वकील रह चुके हैं। उन्होंने जून 1983 में वकालत की शुरुआत की थी। उन्होंने दिसंबर 1985 तक बंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की और एक साल बाद यानी 1986 में दिल्ली आ गए और राजधानी में वकालत शुरू की। वह पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ भी काम कर चुके हैं। जस्टिस ललित अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने। इसके बाद वे कई पदों पर रहे। 13 अगस्त 2014 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज के पद पर नियुक्त किया गया।
Justice UU Lalit: कई बड़े केसों में निभाई अहम भूमिका
जस्टिस उदय उमेश ललित ने अपने कार्यकाल में कई बड़े केसों में अहम भूमिका निभाई है। 22 अगस्त 2017 को तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ 3 तलाक बोलने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार देने वाली 5 जजों की बेंच के वह सदस्य थे। इस मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ लिखे साझा फैसले में उन्होंने कहा था कि इस्लाम में भी एक साथ 3 तलाक को गलत माना गया है।

30 अप्रैल 2021 को जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A की वैधता पर केंद्र को नोटिस जारी किया। इस मामले में कोर्ट ने मणिपुर के पत्रकार किशोरचन्द्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ला की याचिका सुनने पर सहमति दी।
बता दें कि जस्टिस ललित ने भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को चार महीने की सजा सुनाई थी। उन्होंने बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए अहम आदेश दिए थे। पॉक्सो एक्ट के तहत उन्होंने अहम फैसला लिया था। ऐसे ही आम्रपाली के फ्लैट खरीदारों को राहत देते हुए इसमें जांच के आदेश दिए थे।
अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी न करने का आदेश भी जस्टिस ललित की सदस्यता वाली बेंच ने दिया था। हालांकि, बाद में केंद्र सरकार ने कानून में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को दोबारा बहाल कर दिया था। ऐसे ही कई अहम फैसलों में जस्टिस यूयू ललित अहम हिस्सा रहे हैं।
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