कहा जाता है कि देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता है। देश की धिमी न्याय व्यवस्था पर कई बार सवाल उठते रहें हैं। इस व्यवस्था को सुधारने के लिए कई कदम सुझाए भी गए लेकिन सरकारी  स्तर पर इन उपायों को ज़मीन पर उतारने की शायद कभी ईमानदार कोशिश नहीं हुई, नतीजा यह है कि देश की ज़िला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 2 करोड़ 60 लाख से ज़्यादा हो गई है।  यह बात खुद सरकार ने मानी है। इतना ही नहीं इन अदालतों नें न्यायिक अधिकारियों के 5,984 पद खाली हैं। सरकार की तरफ से कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने यह जानकारी दी है। उन्होंने लोकसभा में राजेश भाई चुड़ास्मा, सीएन जयदेवन और जयश्री बेन पटेल के प्रश्न के लिखित जवाब में यह जानकारी दी।

पीपी चौधरी की ओर से सदन में पेश आंकड़ों के हिसाब से 22 दिसंबर, 2017 तक देश की ज़िला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 2,60,62,851 है।

कानून राज्य मंत्री द्वारा पेश किए गए आंकड़ें बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की ज़िला एवं अधीनस्थ अदालतों में सबसे ज़्याद 61,49,151 मामले लंबित हैं। महाराष्ट्र की बात करें तो यहां 33 लाख से ज़्यादा और पश्चिम बंगाल में 17 लाख से अधिक मामले ज़िला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित हैं। इतना ही नहीं निचली अदालतों में हज़ारों की संख्या में पद भी खाली हैं। सदन में मंत्री पीपी चौधरी ने कहा कि विभिन्न राज्यों के जिला एवं अधीनस्थ कोर्ट में इस समय16,693 न्यायिक अधिकारी काम कर रहे हैं, जबकि 5,984 पद खाली हैं।

सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति के आंकड़े भी बताते हैं कि 12 राज्य ऐसे हैं जहां पर हर एक राज्य में 5 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।  कुल मामलों में से लगभग 22.5 लाख मामले 10 वर्ष से भी ज़्यादा वक्त से चल रहे हैं। विधि आयोग ने प्रति 10 लाख लोगों की आबादी पर 50 जजों की नियुक्ति की सिफारिश की है लेकिन इस समय 10 लाख आबादी पर केवल 10 जज हैं।

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