Supreme Court ने भारत के विधि आयोग (Law Commission) से देश में दहेज की सामाजिक बुराई के मुद्दे पर विचार करने के लिए कहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दहेज के लिए हत्या और घरेलू हिंसा के मौजूदा कानूनों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है और आयोग से इस मसले पर मौजूदा कानूनों को और बेहतर तथा सख्त करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि याचिका में की गई मांग विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए इस मामले में न्यायपलिका हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर Dowry Prohabitation Officer की नियुक्ति की मांग की गई थी। केरल के रहने वाले याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि केरल में दहेज प्रथा के हालात बहुत खराब है। दहेज के रूप में सोना दिए जाने की बहुत मांग है। दहेज के मामलो में कार्रवाई न होने पर पुलिस को सस्पेंड भी कर दिया गया है। ऐसे मामलो में हस्तक्षेप करने की जरूरत है।
दहेज को लेकर मौजूदा कानून
हमारे देश में दहेज प्रथा रोकने काे लिए दहेज निषेध अधिनियम, 1961 का कानून है। इस कानून के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। धारा 406 के तहत दहेज मांगने पर लड़की के पति और ससुराल वालों को 3 साल की सजा अथवा जुर्माना या दोनों हो सकती है।
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