Centre for Constitution and Social Reform ने हाईकोर्ट में ई-दाखिले के निर्देश को बताया गैर-संवैधानिक, नए साल से होने हैं लागू

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Manish Sisodia in Delhi High Court
Delhi High Court

Centre for Constitution and Social Reform के राष्ट्रीय अध्यक्ष Amarnath Tripathi ने एक जनवरी 2022 से देश के सभी हाईकार्ट में ई-दाखिले के निर्देश को गैर-संवैधानिक करार दिया है। अमरनाथ त्रिपाठी ने कहा है कि यह स्थापित न्याय प्रणाली के विरुद्ध है। कोरोना काल की आपात व्यवस्था को स्थायी रूप से लागू करना वादकारी को न्याय प्रक्रिया से दूर करना है।

Supreme Court की E-Committee के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने देश के सभी हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों को 9 अक्टूबर 2021 को पत्र लिखकर एक जनवरी 2022 से सरकारी या अर्धसरकारी मामलों में ई- दाखिला करने का अनुरोध किया है। यह पेपरलेस कोर्ट की दिशा में शुरूआती कदम बताया जा रहा है। इसी क्रम में केंद्रीय विधि एवं न्याय सचिव अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने 3 दिसंबर 2021 को ई-कमेटी के आदेश के अनुपालन में सभी अपर व सहायक सॉलिसिटर जनरल को मुकद्दमों का ई-दाखिला करने का निर्देश दिया है।

SC की कमेटी को HC को निर्देश देने का अधिकार नहीं

ई-दाखिले के निर्देश को लेकर त्रिपाठी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 145 में सुप्रीम कोर्ट व अनुच्छेद 225 में हाईकोर्ट को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। दोनों ही संवैधानिक संस्था है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को यह अधिकार नहीं है कि वह हाईकोर्ट को निर्देश दे। हाईकोर्ट अधीनस्थ संस्था नहीं है। कोरोना काल में अपनायी गई अस्थाई व्यवस्था को स्थायी रूप से नहीं अपनाया जा सकता। त्रिपाठी ने कहा कि देश में सभी विभागों व संस्थाओं में काम हो रहा है। कोरोना का असर लगभग समाप्त हो चुका है। कोर्टों को भी जांची परखी न्याय प्रणाली के तहत काम करना चाहिए और वादकारी की मौजूदगी में पारदर्शी न्याय दिया जाय। जिनके लिए न्यायपालिका स्थापित है उन्हीं को न्याय प्रक्रिया से दूर करना उचित नहीं होगा।

त्रिपाठी ने आश्चर्य प्रकट किया कि इतने बड़े कदम पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया व प्रदेश बार काउंसिलों से चर्चा नहीं की गई और न ही कोई इससे पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर बोल रहा है। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के संबद्ध बार एसोसिएशन भी चुप्पी साधे हुए हैं। त्रिपाठी का कहना है कि उ.प्र. की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण परिवेश की है। इंटरनेट कनेक्टिविटी व तकनीकी सुविधा से दूर अधिकांश अधिवक्ताओं के लिए कााम आसान नहीं होगा।


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