बिलकिस बानो मामले पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार द्वारा निर्णय गलत तरीके से लिया गया। इस मामले मे महाराष्ट्र राज्य की बात नहीं सुनी गई,केंद्र को पार्टी नहीं बनाया गया। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल दोषी राधेश्याम के आवेदन के संबंध में था जबकि गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को सजा में छूट दे दी और तो और पीड़ित होने के नाते बिलकिस तक फैसले के बारे में पता ही नहीं था।
बिलकिस की ओर से कहा गया कि यह जल्दबाजी में लिया गया मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने उस दौरान पीड़ित पक्ष के तर्क पर विचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि इस मामले में अन्य दोषियों के लिए समयपूर्व रिहाई के आदेश राधेश्याम मामले में पारित आदेश के आधार पर ही तैयार किए गए। जबकि ADGP की ओर से भी आपत्ति जताई गई थी।
बिलकिस की ओर से कहा गया कि नियमों के तहत उन्हें दोषी ठहराने वाले जज से राय लेनी होती है। जिसमें महाराष्ट्र के दोषी ठहराने वाले जज द्वारा कहा गया कि दोषियों को छूट नहीं दी जानी चाहिए। जबकि 13 मई 2022 को सरकार के निर्णय में इस तथ्य का कोई उल्लेख नहीं है और सरकार ने भी जज की राय से अलग राय होने का कोई कारण भी नहीं बताया।
शोभा गुप्ता ने कहा यह छूट के लिए उपयुक्त मामला नहीं है। भले ही आजीवन कारावास की सज़ा को 14 साल के रूप में देखा जाए, फिर भी लगाए गए जुर्माने का भुगतान न करने पर उन्हें 6 साल की कैद काटनी होगी। उन्हें छूट नहीं दी जा सकती।
उन्होंने कहा कि दोषियों पर लगाया गया जुर्माना भी उन्होंने नहीं भरा है। इसलिए जुर्माना न भरने पर उन्हें भी सजा काटनी चाहिए। कानून यह है कि अदालत को बड़े पैमाने पर जनता पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करना चाहिए। पीड़िता पर भी भारी असर पड़ा है। बिलकिस की तरफ से दलील पूरी करते हुए कहा गया कि प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस घटना ने समाज की चेतना को झकझोर कर रख दिया।सजा माफी को लेकर देशभर में आंदोलन हुए।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केवल कानूनी तर्कों, योग्यताओं के आधार पर ही सुनवाई करेगा। हम जन आक्रोश को लेकर इस मामले पर विचार नहीं करेंगे। जस्टिस बीवी नागरत्न ने कहा हम केवल केस की मेरिट पर सुनवाई करेंगे। केवल कानूनी पहलूओं पर विचार करेंगे। मान लीजिए कि कोई सार्वजनिक आक्रोश नहीं है तो क्या रिहाई के आदेश को बरकरार रखना चाहिए? वहीं यदि सार्वजनिक आक्रोश है, तो क्या हमें आदेश को गलत कहते हुए उसे रद्द कर देना चाहिए?