डेढ सौ साल से भी पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में शुक्रवार (27 अप्रैल) को सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की। वक्फ बोर्ड की दलील थी कि इस फैसले का देश की सामाजिक संरचना पर असर पड़ सकता है। उधर रामलला की ओर से दलील दी गयी कि ये केवल मालिकाना हक का विवाद है और इसे इसी नजर से देखा जाना चाहिए।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पक्षकारों ने मामले को संविधान पीठ के पास भेजे जाने के पक्ष में और विरोध में दलीलें रखीं। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा ये मसला बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके फैसले का असर देश की सामाजिक ढांचे पर भी पड़ेगा इसलिए इसे संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। हाइकोर्ट के फैसले से दोनों पक्ष खुश नहीं है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट आये हैं।

इस दलील के विरोध में रामलला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस केस को भूमि विवाद के तौर पर ही देखा जाना चाहिए और मामला संविधान पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि 1992 की घटना के बाद इस मसले से जनता दूर जा चुकी है और इस मामले में राजनीतिक और धार्मिक चीजों को कोर्ट से बाहर ही रखना चाहिए।

रामलाल विराजमान की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील के परासरण ने कहा कि इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ में करना न कानूनी रूप से सही है न ही व्याहारिक। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संवैधानिक पेच नहीं है तो बड़ी बेंच या उससे बड़ी बेंच के सामने सुनवाई कर के समय खराब करने का कोई मतलब नहीं है।

मुस्लिम पक्ष की तरफ से मामले को 5 जजों की बेंच में भेजने की मांग करने वाले राजीव धवन अस्वस्थ होने के चलते शुक्रवार को मौजूद नहीं रहे। मामले की सुनवाई अब 15 मई को होगी।

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