Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजकीय डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता रहीं डॉ. सुशीला जोशी को उनके रिटायरमेंट के तीन साल बाद सेवा में नियमित करने का आदेश दिया है। डॉ.जोशी का नियमितीकरण उच्च शिक्षा विभाग ने शैक्षणिक अर्हता पूरी न करने के आधार पर रोक दिया था। हाईकोर्ट ने इसे सही नहीं माना और प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा और उच्च शिक्षा निदेशक के आदेश को रद्द करते हुए याची को न सिर्फ सेवा में नियमित करने का निर्देश दिया, बल्कि उनका सभी बकाया वेतन व अन्य भत्ते आदि का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है।

Allahabad HC: पेंशन में भी नियमितीकरण के सभी लाभ देने के निर्देश

कोर्ट ने याची को पेंशन में भी नियमितीकरण के सभी लाभ देने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि आदेश का पालन 12 सप्ताह में कर लिया जाए। उसके बाद आदेश का पालन करने पर याची को 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज का भी भुगतान करना होगा। सरकार चाहे तो ब्याज की रकम की वसूली विलंब के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से कर सकती है।
ये आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने डॉ सुशीला जोशी की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया।
याची के वकील अरविंद कुमार सिंह के अनुसार याची का चयन वर्ष 1987 में उत्तरकाशी गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में पार्ट टाइम लेक्चरर के रूप में हुआ था। वर्ष 2000 में उन्हें गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज हमीरपुर स्थानांतरित कर दिया गया। यहां भी उन्हें एडहॉक लेक्चरर के पद पर नियुक्ति दी गई। याची ने नियमितीकरण के लिए आवेदन किया।
उच्च शिक्षा निदेशक ने यह कहते हुए नियमितीकरण करने से इनकार कर दिया कि याची लेक्चरर पद के लिए निर्धारित योग्यता नहीं रखती हैं। क्योंकि लेक्चरर पद के लिए इंटरमीडिएट व ग्रेजुएशन में औसत 55 प्रतिशत या दोनों में अलग-अलग 50-50 प्रतिशत अंक होने चाहिए। याची के इंटरमीडिएट में 50 प्रतिशत व बीए में 45 प्रतिशत अंक हैं।
Allahabad HC: याची के वकील अरविंद कुमार सिंह की दलील थी कि 30 मार्च 1987 को जारी शासनादेश में सरकार ने न्यूनतम शैक्षिक अहर्ता को शिथिल कर दिया था। साथ ही न्यूनतम अंकों की आवश्यकता उन्हें नहीं है, जिन्होंने पीएचडी की है। याची ने वर्ष 1986 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। नियमितीकरण का दावा मंजूर न किए जाने के बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
Allahabad HC: डिग्री कॉलेज में पार्ट टाइम लेक्चरर के रूप में मिली थी नियुक्ति
याची के वकील अरविंद कुमार सिंह के अनुसार याची का चयन वर्ष 1987 में उत्तरकाशी गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में पार्ट टाइम लेक्चरर के रूप में हुआ था। वर्ष 2000 में उन्हें गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज हमीरपुर स्थानांतरित कर दिया गया। यहां भी उन्हें एडहॉक लेक्चरर के पद पर नियुक्ति दी गई।
याची ने नियमितीकरण के लिए आवेदन किया। लेकिन उच्च शिक्षा निदेशक ने यह कहते हुए नियमितीकरण करने से इनकार कर दिया कि याची लेक्चरर पद के लिए निर्धारित योग्यता नहीं रखती हैं। क्योंकि लेक्चरर पद के लिए इंटरमीडिएट व ग्रेजुएशन में औसत 55 प्रतिशत या दोनों में अलग-अलग 50-50 प्रतिशत अंक होने चाहिए। याची के इंटरमीडिएट में 50 प्रतिशत व बीए में 45 प्रतिशत अंक हैं।
Allahabad HC: याची के वकील अरविंद कुमार सिंह की दलील थी कि 30 मार्च 1987 को जारी शासनादेश में सरकार ने न्यूनतम शैक्षिक अहर्ता को शिथिल कर दिया था। साथ ही न्यूनतम अंकों की आवश्यकता उन्हें नहीं है, जिन्होंने पीएचडी की है। याची ने वर्ष 1986 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। नियमितीकरण का दावा मंजूर न किए जाने के बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा विभाग को याची के प्रत्यावेदन पर 1997 के शासनादेश मद्देनजर निर्णय लेने के लिए कहा था। इसके बावजूद याचिका प्रत्यावेदन उसी आधार पर रद्द कर दिया गया। जिस आधार पर पहले किया गया था। इस दौरान मई 2019 में याची रिटायर हो गईं। कोर्ट ने कहा कि 1997 के शासनादेश में स्पष्ट किया गया है कि एमए में 55 प्रतिशत और बीए में 45 प्रतिशत अंक नियमितीकरण के लिए अच्छी शैक्षणिक योग्यता मानी जाएगी।
Allahabad HC: याची के बीए में 45 प्रतिशत से अधिक अंक हैं और एमए में भी 55 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए हैं। याची पीएचडी डिग्रीधारक भी हैं इसलिए इंटरमीडिएट के अंक मायने नहीं रखते।कोर्ट ने याची को उसी तिथि से सेवा नियमितीकरण का लाभ देने का निर्देश दिया है, जिस तिथि से उसके समकक्षों को नियमित किया गया था तथा नियमितीकरण के बाद प्राप्त होने वाले सभी लाभ का भुगतान भी करने को कहा है।
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