Supreme Court:समलैगिंक जोड़ों को शादी की मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने एक और हलफनामा दाखिल किया है।केंद्र ने समलैंगिक जोड़ों को शादी की मान्यता देने की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह सुप्रीम कोर्ट से किया है।केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि अदालत नहीं बल्कि केवल संसद ही है जो इस मुद्दे पर व्यापक विचार- विमर्श कर सकती है।
भारत के ताने-बाने से जुड़े सभी ग्रामीण और शहरी,अर्ध-ग्रामीण और शहरी संरचनाओं के साथ अलग- अलग धार्मिक संप्रदायों के विचार पर ध्यान दे सकती है।व्यक्तिगत कानूनों के अलावा विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है।

Supreme Court:समलैंगिक जोड़ों की शादी भारत के लोकाचार से परे
Supreme Court:केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि समलैंगिक जोड़ों की शादी भारत के लोकाचार से परे और शहरी और संभ्रांत अवधारणा है।इतना ही नहीं य़ह विषम लैंगिक जोड़ों की शादी से अलग जाकर विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने जैसा है।
हालांकि केंद्र सरकार समलैंगिक जोड़ों की शादी को मान्यता देने का विरोध करते हुए एक हलफनामा दाखिल कर चुका है।सीजेआई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
Supreme Court: 18 अप्रैल को इस याचिका पर सुनवाई
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट 18 अप्रैल को इस याचिका पर सुनवाई करेगा।केंद्र समलैगिंक जोड़ों को शादी की मान्यता देने की मांग वाली याचिका का विरोध करते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी पहुंचा है।
एनसीपीसीआर (नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स) ने समलैंगिक जोड़ों के विवाह को कानूनी मान्यता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी अर्जी में कहा है कि समलैंगिक माता-पिता द्वारा पालन पोषण किए गए बच्चों में पहचान की समझ प्रभावित हो सकती है।
ऐसे में समलैंगिक जोड़े द्वारा बच्चों को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
समलैंगिक जोड़ों के विवाह को मान्यता देने की मांग का मामला सीजेआई के सामने मामले को मेंनशन करते हुए कहा गया कि गुजरात, मध्य प्रदेश सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अर्जी दाखिल की गई है।कोर्ट ने कहा केंद्र, गुजरात,एमपी और एनसीपीसीआर के द्वारा दाखिल की गई अर्जियों पर भी मंगलवार को होनी वाली सुनवाई के साथ सुनवाई होगी।
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