आज के पाकिस्तान का ये प्रांत होता भारत का हिस्सा, जानें कहां हो गई थी गलती

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क्या आपको पता है कि पाकिस्तान का एक प्रांत भारत का हिस्सा हो सकता था। जी हां सुनने में अजीब लगेगा पर सच है। हम बात कर रहे हैं कि पाकिस्तान के सूबे खैबर पख्तूनख्वां की। आजादी से पहले इस सूबे को नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर कहा जाता था।लेखिका प्रियम गांधी मोदी ने अपनी किताब ‘वट इफ देयर वाज नो कांग्रेस’ में बताया है कि अंग्रेज किसी भी कीमत पर इस सूबे को भारत को नहीं देना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारत की आजादी के बाद भी इस सूबे पर ब्रिटेन का प्रभाव बना रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी सीमा अफगानिस्तान से लगती है। भारत में दाखिल होने का यह एक दरवाजा जैसा था।

द्वितीय सिख युद्ध (1848-49) के बाद इस सूबे पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने कब्ज़ा कर लिया था तो ये क्षेत्र पंजाब का एक हिस्सा बन गया। बाद में यह अलग प्रांत बना। अब सवाल ये कि ये प्रांत भारत से अलग हुआ कैसे? दरअसल 1937 से 1939 के बाद यहां कांग्रेस की प्रांतीय सरकार थी। उसके बाद एक बार फिर 1945-47 तक कांग्रेस की सरकार रही। हालांकि इस बीच मुस्लिम लीग के नेता इस सूबे में लगातार माहौल खराब करने की कोशिश करते रहे।

आखिर में जब ब्रिटिश सरकार ने हिंदुस्तान छोड़ने का फैसला किया तो इस प्रांत में जनमत संग्रह कराया गया। हालांकि कांग्रेस ने इसका विरोध नहीं किया। लेखिका लिखती हैं कि मुमकिन है कि अगर उस समय जनमत संग्रह न किया गया होता तो यह सूबा भारत के साथ होता।

दरअसल स्वतंत्रता अवधि के दौरान प्रांत में कांग्रेस सरकार थी। जिसका नेतृत्व धर्मनिरपेक्ष पश्तून नेता कर रहे थे। जिन्होंने पाकिस्तान के बजाय भारत में शामिल होना पसंद किया। धर्मनिरपेक्ष पश्तून नेतृत्व का यह भी विचार था कि यदि भारत में शामिल होना कोई विकल्प नहीं है तो उन्हें पाकिस्तान के बजाय एक स्वतंत्र पश्तून देश बनाने दिया जाए।

जून 1947 में, मिर्ज़ाली खान, बाचा खान और अन्य खुदाई खिदमतगारों ने बन्नू संकल्प की घोषणा की, जिसमें मांग की गई कि पश्तूनों को ब्रिटिश भारत के सभी पश्तून बहुसंख्यक क्षेत्रों को मिलाकर पश्तूनिस्तान का एक स्वतंत्र देश बनाने का विकल्प दिया जाए। हालांकि ब्रिटिश हुकूमत ने यह बात नहीं मानी।

उस समय इस सूबे के मुख्यमंत्री डॉ खान साहिब थे, जो कि अब्दुल गफ्फार खान के बड़े भाई थे। डॉ खान साहिब को लगा कि उनके ही लोगों ने उन्हें धोखा दिया है। अब्दुल गफ्फार खान ने कहा था, “आपने (कांग्रेस) हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है।” बिना लड़े ही कांग्रेस ने ये सूबा पाकिस्तान को दे दिया। खान साहिब, उनके भाई अब्दुल गफ्फार खान और खुदाई खिदमतगार ने जुलाई 1947 में हुए जनमत संग्रह का बहिष्कार किया।

मतदान 6 जुलाई 1947 को शुरू हुआ और जनमत संग्रह के नतीजे 20 जुलाई 1947 को सार्वजनिक किए गए। परिणामों के अनुसार, 99.02% वोट पाकिस्तान के पक्ष में पड़े।

About ‘What if ther was no congress ‘

Writer – Priyam Gandhi Mody

Publisher- Rupa publications

Pages- 284

Price- ₹ 695 (hardcover)

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