Book Review: एक ट्रांसजेंडर बेटे का अपनी मां संग जुड़े रहने का जरिया बना है ‘पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नाला सोपारा’

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Book Review: एक ट्रांसजेंडर बेटे का अपनी मां संग जुड़े रहने का जरिया बना है 'पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नाला सोपारा'
Book Review: एक ट्रांसजेंडर बेटे का अपनी मां संग जुड़े रहने का जरिया बना है 'पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नाला सोपारा'

Book Review: अभी लेखिका चित्रा मुद्गल जी का उपन्यास ‘पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नालासोपारा’ पढ़कर पूरा किया। लंबे वक्त बाद किसी रचना ने इस तरह भावुक किया। इस उपन्यास में लेखिका ने ट्रांसजेंडर या थर्ड जेंडर कह लीजिए, के मुद्दे को उठाया है। ये रचना एक तरह से मां और बेटे के बीच का पत्र व्यवहार है।

इस उपन्यास में विनोद उर्फ बिन्नी उर्फ बिमली की कहानी कही गयी है। विनोद को लिंग दोष के चलते उसके परिजन किन्नरों को सौंपते हैं। मुंबई से होता हुआ विनोद दिल्ली के बदरपुर आ पहुंचता है। विनोद आजीविका के लिए और किन्नरों से इतर गाड़ियों की सफाई का काम करता है। हालांकि उसका रहना किन्नरों के बीच ही होता है।

Book Review: खत के जरिए जुड़ा रहा मां-बेटे का रिश्ता

विनोद की बचपन से लेकर अब तक की कहानी पत्रों के जरिए सामने आती जाती है। अपने घर, परिवार से दूर विनोद इग्नू के जरिए पढ़ाई जारी रखता है। हालांकि उपन्यास में बताया गया है कि विनोद को ट्रांसजेंडर को जेंडर के रूप में अदर्स लिखने से एतराज है। इसलिए विनोद जेंडर में मेल ही लिखता है।

जहां विनोद अपनी मां से दूर रहते हुए भी उसके पास है वहीं विनोद की मां का भी यही हाल है। विनोद की मां उसके जाने के बाद भी उसकी यादों को अपने में समेटे हुए है। बड़े बेटे के डर से विनोद की मां सीधे संपर्क रखने से कतराती है। पोस्ट बॉक्स नंबर 203 मां और बेटे के रिश्ते को जारी रखने का जरिया है।

इस रचना में बताया गया है कि विधायक जी के संपर्क में आते ही विनोद का राजनीतिक विकास होता है। विधायक जी और उनकी पार्टी चाहते हैं कि विनोद के जरिए ट्रांसजेंडर के वोटों को लामबंद किया जा सके। उपन्यास में जब आप ट्रांसजेंडर के बीच विनोद के भाषण को सुनेंगे तो आप उससे प्रभावित हुए बिना रह नहीं सकेंगे। पार्टी जहां कहती है कि विनोद को ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाना चाहिए। वहीं विनोद चाहता है कि पहले ट्रांसजेंडर के परिजन उन्हें स्वीकारें तो सही।

इस नॉवेल में विनोद के साथी ट्रांसजेंडर के साथ हुई यौन हिंसा की घटना बताती है कि कैसे ट्रांसजेंडर के साथ हुई यौन हिंसा के प्रति समाज मौन है। उस पर सब लीपापोती करते हैं। उपन्यास का अंत सबसे अधिक प्रभावित करता है। उपन्यास के अंत में विनोद की मां मरने से पहले अपने बेटे को उसी रूप में स्वीकार करती है जैसा वह है और अपनी गलती के लिए माफीनामा छपवाती है।

चित्रा मुद्गल जी इस रचना के जरिए ट्रांसजेंडर के मुद्दे को उठाने में इसलिए कामयाब रही हैं क्योंकि उन्होंने समाज की मूल इकाई परिवार को छुआ है। एक ट्रांसजेंडर के प्रति उसके खुद के परिवार की सोच कैसी है? इसको उन्होंने बखूबी लिखा है। ट्रांसजेंडर समाज की राजनीति और उनकी सामाजिक स्थिति को भी इस उपन्यास में दर्शाया गया है।

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