Bihar Diwas:10 बिहारी साहित्यकार जिन्होंने हिंदी साहित्य को किया समृद्ध, यहां पढ़ें पूरी लिस्ट…

गोपालसिंह नेपाली का जन्म चम्पारण जिले के बेतिया नामक स्थान पर कालीबाग दरबार के नेपाली महल में हुआ था।

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Bihar Diwas:10 बिहारी साहित्यकार जिन्होंने हिंदी साहित्य को किया समृद्ध
Bihar Diwas:10 बिहारी साहित्यकार जिन्होंने हिंदी साहित्य को किया समृद्ध

Bihar Diwas: 22 मार्च को हर साल बिहार दिवस मनाया जाता है। साल 1912 में आज ही के दिन बिहार राज्य की स्थापना की गई थी। बिहार दिवस पर लोग अलग-अलग तरीकों से बिहारवासियों को शुभकामनाएं दे रहे हैं। बिहार अलग-अलग चीजों के लिए लोकप्रिय है। लेकिन आज हम आपको बिहार की साहित्यिक धरोहर के बारे में बताएंगे। विशेषकर हिंदी भाषा की बात करें तो समय-समय पर बिहार भूमि ने बड़े-बड़े साहित्यकारों को जन्म दिया है। आइए ऐसे 10 शीर्ष बिहारी साहित्यकारों के बारे में आपको बताते हैं:-

Bihar Diwas: विद्यापति और भिखारी ठाकुर
Bihar Diwas: विद्यापति और भिखारी ठाकुर

Bihar Diwas:10 शीर्ष बिहारी साहित्यकार

विद्यापति- विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली भाषा के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनका संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश एवं मातृ भाषा मैथिली पर समान अधिकार था। विद्यापति की रचनाएँ संस्कृत, अवहट्ट, एवं मैथिली तीनों में मिलती हैं। इनके काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। इन्हें वैष्णव और शैव भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है। मिथिला के लोगों को ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का सूत्र दे कर इन्होंने उत्तरी-बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का महती प्रयास किया है। मिथिलांचल के लोकव्यवहार में प्रयोग किये जाने वाले गीतों में आज भी विद्यापति की शृंगार और भक्ति रस में पगी रचनाएँ हैं। पदावली और कीर्तिलता इनकी अमर रचनाएँ हैं।

भिखारी ठाकुर- भिखारी ठाकुर (जन्म: 18 दिसम्बर 1887 बिहार – मृत्यु: 10 जुलाई, 1971) भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, नारी विमर्श एवं दलित विमर्श के उद्घोषक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। राहुल सांकृत्यायन ने उनको ‘अनगढ़ हीरा’ कहा था तो जगदीशचंद्र माथुर ने ‘भरत मुनि की परंपरा का कलाकार’। उनको ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर’ भी कहा गया।

आचार्य शिवपूजन सहाय- आचार्य शिवपूजन सहाय ( जन्म- 9 अगस्त, 1893, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 21 जनवरी, 1963, पटना) हिन्दी साहित्य में एक उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख ‘लक्ष्मी’, ‘मनोरंजन’ तथा ‘पाटलीपुत्र’ आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने 1934 ई. में ‘लहेरियासराय’ (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र ‘बालक’ का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय ‘बिहार राष्ट्रभाषा परिषद’ के संचालक तथा ‘बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की ओर से प्रकाशित ‘साहित्य’ नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।

रामधारी सिंह दिनकर- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (जन्म: 23 सितंबर, 1908, बिहार; मृत्यु: 24 अप्रैल, 1974, तमिलनाडु) हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक, कवि एवं निबंधकार थे। ‘राष्ट्रकवि दिनकर’ आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। उनको राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, क्रांतिपूर्ण संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी कविताओं के कारण असीम लोकप्रियता मिली। दिनकर जी ने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। साहित्य के रूप में उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेज़ी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था।

फणीश्वरनाथ रेणु- फणीश्वरनाथ रेणु (जन्म: 4 मार्च, 1921 – मृत्यु: 11 अप्रैल, 1977) एक सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार थे। हिन्दी कथा साहित्य के महत्त्वपूर्ण रचनाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया ज़िला के ‘औराही हिंगना’ गांव में हुआ था। रेणु के पिता शिलानाथ मंडल संपन्न व्यक्ति थे। भारत के स्वाधीनता संघर्ष में उन्होंने भाग लिया था। रेणु के पिता कांग्रेसी थे। रेणु का बचपन आज़ादी की लड़ाई को देखते समझते बीता। रेणु ने स्वंय लिखा है – पिताजी किसान थे और इलाके के स्वराज-आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता। खादी पहनते थे, घर में चरखा चलता था। स्वाधीनता संघर्ष की चेतना रेणु में उनके पारिवारिक वातावरण से आयी थी। रेणु भी बचपन और किशोरावस्था में ही देश की आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गए थे। 1930-31 ई. में जब रेणु ‘अररिया हाईस्कूल’ के चौथे दर्जे में पढ़ते थे तभी महात्मा गाँधी की गिरफ्तारी के बाद अररिया में हड़ताल हुई, स्कूल के सारे छात्र भी हड़ताल पर रहे। रेणु ने अपने स्कूल के असिस्टेंट हेडमास्टर को स्कूल में जाने से रोका। रेणु को इसकी सज़ा मिली लेकिन इसके साथ ही वे इलाके के बहादुर सुराजी के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

नागार्जुन- नागार्जुन (जन्म: 30 जून, 1911; मृत्यु: 5 नवंबर, 1998) प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि थे। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य सेवा के क्षेत्र में क़दम रखा। शून्यवाद के रूप में नागार्जुन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। नागार्जुन का असली नाम ‘वैद्यनाथ मिश्र’ था। हिन्दी साहित्य में उन्होंने ‘नागार्जुन’ तथा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचनाओं का सृजन किया।

गोपाल सिंह नेपाली- गोपालसिंह नेपाली का जन्म चम्पारण जिले के बेतिया नामक स्थान पर कालीबाग दरबार के नेपाली महल में हुआ था। इन्होंने प्रवेशिका तक शिक्षा प्राप्त की, कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और फिल्मों के गीत लिखे। कविता क्षेत्र में नेपाली ने देश-प्रेम, प्रकृति-प्रेम तथा मानवीय भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है। मुख्य काव्य संग्रह हैं- ‘उमंग, ‘पंछी, ‘रागिनी तथा ‘नीलिमा। उन्होंने ‘प्रभात’ और ‘मुरली’ नाम से क्रमशः हिन्दी और अंग्रेज़ी में हस्तलिखित पत्रिकाएँ भी निकालीं। उन्हें “गीतों का राजकुमार” कहा जाता था।

देवकीनंदन खत्री- देवकीनन्दन खत्री ( जन्म- 29 जून, 1861 ई.; बिहार; मृत्यु- 1 अगस्त, 1913 ई., बनारस) हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होंने ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतति’, ‘काजर की कोठरी’, ‘नरेंद्र-मोहिनी’, ‘कुसुम कुमारी’, ‘वीरेंद्र वीर’, ‘गुप्त गोंडा’, ‘कटोरा भर’ और ‘भूतनाथ’ जैसी रचनाएँ कीं। ‘भूतनाथ’ को उनके पुत्र ‘दुर्गा प्रसाद खत्री’ ने पूरा किया था। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके उपन्यास ‘चंद्रकांता’ का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया था। इस किताब का रसास्वादन करने के लिए कई गैर-हिन्दीभाषियों ने हिन्दी भाषा सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने ‘तिलिस्म’, ‘ऐय्यार’ और ‘ऐय्यारी’ जैसे शब्दों को हिन्दी भाषियों के बीच लोकप्रिय बना दिया।

रामवृक्ष बेनीपुरी – रामवृक्ष बेनीपुरी (जन्म- 23 दिसम्बर, 1899, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार; मृत्यु- 9 सितम्बर, 1968, बिहार) भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और नाटककार थे। ये एक महान् विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी, साहित्यकार, पत्रकार और संपादक के रूप में भी अविस्मणीय हैं। बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य के ‘शुक्लोत्तर युग’ के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। ये एक सच्चे देश भक्त और क्रांतिकारी भी थे। इन्होंने ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ में आठ वर्ष जेल में बिताये। हिन्दी साहित्य के पत्रकार होने के साथ ही इन्होंने कई समाचार पत्रों, जैसे- ‘युवक’ (1929) आदि भी निकाले। इसके अलावा कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में भी संलग्न रहे।

मिथिलेश्वर- मिथिलेश्वर का जन्म 31 दिसंबर 1950 को भोजपुर (बिहार) में हुआ था। मिथिलेश्वर हिंदी कथा-साहित्य की साठोत्तरी पीढ़ी से संबद्ध प्रमुख कथाकार हैं। ग्रामीण कथानकों के धनी मिथिलेश्वर हिंदी कथा-साहित्य का जाना-पहचाना नाम हैं।

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