आज विश्व पृथ्वी दिवस है। इस सुंदर दुनिया को इंसानों ने 12 हजार साल पहले ही नष्ट करना शुरू कर दिया था। इस धरती पर फूलने फलने वाला इंसान इसी धरती का दुश्मन बन गया है लेकिन मां प्रकृति इतनी दयावान हैं कि, इंसानो के हर सितम को सहते जा रही हैं। पर कहते हैं न पापा का घड़ा एक दिन फूटता जरूर है। इसी तरह इंसानो द्वारा प्रकृति पर किया जा रहा जुल्म उसे ही निगलने वाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर पेड़ का कटना, प्लास्टिक का इस्तेमाल चलता रहा तो 2070 तक यह धरती रहने लायक नहीं बचेगी। यहां का तापमान सहने लायक नहीं होगा।

धरती को बचाने के लिए कई पर्यावरण प्रेमी मुहिम भी चला रहे हैं। पर इसकी सबसे पहले शुरूआत अमेरिका ने 22 अप्रैल सन 1970 में की थी। इसे आज विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन को माने का मकसद है कि, अधिक से अधिक लोगों को पृथ्वी पर किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ जागरूक किया जा सके। ताकि लोग अपनी धरती को बचाने के लिए खुद आगे आएं।

बता दें कि,  22 अप्रैल 1990 को अर्थ डे के बीसवें जन्‍मदिन पर 141 देशों में दो करोड़ से ज्‍यादा लोगों ने इसमें हिस्‍सा लिया था। आज यह पूरी दुनिया का एक अभियान ही नहीं बल्कि चिंता भी है कि इस घरती को रहने लायक कैसे रखा जाए। खास बात यह है कि विश्‍व पृथ्‍वी दिवस के दिन दुनिया के सक्षम और शक्तिशाली देश अपने मतभेदों को भुलाकर पृथ्‍वी को बचाने के लिए एक मंच साझा कर रहे हैं।

दुनिया में सक्षम देशों ने पृथ्वी पर हो रहे अत्याचार को लेकर चिंता भी दिखाई और प्रयास भी किए लेकिन उनके सारे जतन जमीन पर कम और कागजों पर ज्‍यादा दिखे। आखिर हम अपने इस धरती को हर पल तिल-तिल कर कैसे मार रहे हैं। आइए इस रिपोर्ट के जरिए आपको बताने का प्रयास करते हैं।

संयुक्‍त राष्‍ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भले ही पेरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ बढ़ रही है। ग्‍लोबन वॉर्मिंग की वजह से अगर दुनिया का औसत तापमान तीन डिग्री बढ़ गया तो एक बड़ी आबादी को इतनी गर्मी में रहना होगा कि वे जलवायु की सहज स्थिति के बाहर हो जाएंगे। इसका सबसे ज्‍यादा प्रभाव ऑस्ट्रेलिया, भारत, अफ्रीका, दक्षिण अमरीका और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में पड़ेगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एक डिग्री की वृद्धि से करीब एक अरब लोग प्रभावित होंगे।

जलवायु परिवर्तन के हिसाब से भारत बहुत संवेदनशील देश है। वर्ष 2017 में हुए एक अध्ययन में भारत जलवायु परिवर्तन के हिसाब से दुनिया का छठा सबसे अधिक संकटग्रस्त देश था। साल 2018 में एचएसबीसी ने दुनिया की 67 अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन के खतरे का आंकलन किया गया, जिसमें कहा गया कि क्लाइमेट चेंज की वजह से भारत को सबसे अधिक खतरा है। विश्व बैंक भी कह चुका है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण भारत को कई लाख करोड़ डॉलर की क्षति हो सकती है।

देश में पहले ही सूखे, बाढ़ और चक्रवाती तूफानों की मार झेल रहे भारत को इस सदी के अंत तक ग्लोबल वॉर्मिंग बड़ा संकट खड़ा कर सकती है। जलवायु परिवर्तन पर भारत सरकार की अब तक की पहली रिपोर्ट कहती है कि सदी के अंत तक (2100 तक) भारत के औसत तापमान में 4.4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाएगी। इसका सीधा असर लू के थपेड़ों (हीट वेव्स) और चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ने के साथ समुद्र के जल स्तर के उफान के रूप में दिखाई देगा।

बता दें कि, इंसानों को दुनिया के प्रति जागरूक करने के लिए गूगल ने खास अंदाज में डूडल बनाया है। जिसमे एक इंसान पेड़ लगा रहा…और वो पीढ़ी दर पीढ़ी पास किया जा रहा है। इंसान तो गुजर गया लेकिन पेड़ वहीं का वहीं है।

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